|| जय सिया राम ||
|| लव कुश ||
गुरु वाल्मीकि के आश्रम में माता सीता ने भगवान् राम के जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम गुरु वाल्मीकि ने कुश तथा लव रखा। गुरु वाल्मीकि जी के आश्रम में भगवान राम के दोनों पुत्रों ने शिक्षा ग्रहण की| गुरु वाल्मीकि जी के द्वारा ही उन्हें अस्त्र शस्त्र की विद्या प्राप्त हुई | बाल्य काल से ही लव कुश बड़े मेधावी छात्र थे | दोनों ने बड़ी लगन से रामायण अपने गुरु से सीखी और दोनों ही भगवान् राम के चरित्र से बड़े प्रभावित हुए , किन्तु माता सीता के त्याग को वो अनुचित मानते थे | दोनों ही इस सत्य से अनजान थे की उनकी माता जिन्हे वो वनदेवी के नाम से जानते हैं वास्तव में वही देवी सीता हैं और उनके पिता ही अयोधया के राजा रामचंद्र हैं | वालमीकि आश्रम में उन्होने बालयकाल में ही युद्ध एवं शास्त्र दोनों में कुशलता पा ली थी | उनकी कुशलता को देखकर गुरु वाल्मीकि जी ने उन्हें रामायण महाकाव्य का गुणगान करने के लिए अयोधया नगरी में जाने का आदेश दिया |
लव और कुश ने अयोधया नगरी में जब रामायण का गुणगान किया तब अयोधया वासियों को बड़ा हर्ष हुआ किन्तु सीता माता के त्याग का प्रसंग आने पर सबकी आँखें भर आयी | नगरवासियों को अपनी गलती का बोध हो गया तथा उनके अश्रुओं ने इस भूल का प्रायश्चित भी किया | दोनों बालको की प्रसिद्धि जब राजमहल पहुंची तो माताओं ने और राजा राम ने उन्हें निंमंत्रण दिया की रामायण का गुणगान दोनों राजमहल में करें | उन दोनों के मुख से मधुर वाणी में रामायण का पाठ सुन सभी लोग हर्षित हो उठे |
कुछ समय पश्चात राजा राम को गुरु वशिष्ठ ने परामर्श दिया की उन्हें अश्वमेध यज्ञ करना चाहिए | यज्ञ करने के लिए पति पत्नी दोनों को ही पूजा में बैठना होता है किन्तु माता सीता की अनुपस्थिति में यह संभव नहीं था | राजा राम को एक और विवाह करने के लिए कहा गया तो उन्होंने मर्यादा का पालन करते हुए और सीता जी के प्रति अपने प्रेम को सर्वोपरी मानते हुए मना कर दिया | तब सीता जी की स्वर्ण प्रतिमा बनवाई गयी और यज्ञ किया गया |
अवश्मेध यज्ञ का घोड़ा जहाँ भी जाता वहां के राजा भगवान् राम के अधीन होते गए और ढेरों भेंट भी अर्पण करते गए किन्तु वापसी में ही उस घोड़े को लव और कुश ने आश्रम के समीप पकड़ के एक पेड़ से बाँध दिया | सेनापति ने बालको से घोड़े को छोड़ने का आग्रह किया किन्तु उन्होंने घोड़े पर लिखी चुनौती को स्वीकार करते हुए ऐसा करने से मना कर दिया | सेना से युद्ध में लव कुश ने ऐसा पराक्रम दिखाया की सेना भाग खड़ी हुई | भरत , लक्षमण तथा शत्रुघ्न बारी बारी से इन बालको से परास्त हो गए जो वास्तव में उनके चाचा थे | राम जी ने बजरंग बलि को युद्ध के लिए भेजा | बजरंग बलि ने उन्हें देखते ही पहचान लिया की इन बालकों का प्रभु राम से क्या सम्बन्ध है और उन्होंने लव कुश पर कोई प्रहार नहीं किया | लव कुश ने बजरंग बलि को खेल खेल में बांध दिया | तब भगवान् राम उन बालको के समक्ष पहुंचे तभी वहां माता सीता भी आ गयी और उन्होंने लव कुश को बताया की जिनसे तुम युद्ध करने वाले हो वास्तव में वही उनके पिता हैं | लव कुश अपने पिता के चरणों में गिर गए और क्षमा मांगने लगे भगवान् राम ने उन्हें गले लगा लिया |
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