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गुरुवार, 11 जून 2020

वानरवीर अंगद ( Vaanarveer Angad )

|| जय श्री राम || 

|| वानरवीर अंगद || 




अंगद बालि के पुत्र थे। बालि इनसे सर्वाधिक प्रेम करता था। ये परम बुद्धिमान, अपने पिता के समान बलशाली तथा भगवान श्रीराम के परम भक्त थे। अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी और सर्वस्व हरण करने के अपराध में भगवान श्रीराम के हाथों बालि की मृत्यु हुई। मरते समय बालि ने भगवान राम को ईश्वर के रूप में पहचाना और अपने पुत्र अंगद को उनके चरणों में सेवक के रूप में समर्पित कर दिया। प्रभु राम ने बालि की अन्तिम इच्छा का सम्मान करते हुए अंगद को स्वीकार किया। सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य मिला और अंगद युवराज बनाये गये। सुग्रीव के भाई बालि के पुत्र अंगद की माता का नाम तारा था जो एक अप्सरा थीं।जब प्रभु श्रीराम ने अंगद के पिता वानरराज बालि का वध कर दिया था तो बालि ने मरते वक्त अपने पुत्र को पास बुलाकर उसे ज्ञान की तीन बातें बताई थी। बालि ने कहा, पहली बात ध्यान रखना देश, काल और परिस्थितियों को हमेशा समझकर कार्य करना। दूसरी बात यह कि किसके साथ कब, कहां और कैसा व्यवहार करें, इसका सही निर्णय लेना।

Angad was the son of Bali. Bali loved them the most. He was supremely intelligent, as powerful as his father, and an ardent devotee of Lord Shri Ram. Bali died at the hands of Lord Shri Ram in the guilt of killing his younger brother Sugriva and all. While dying, Bali recognized Lord Rama as God and dedicated his son Angad as a servant at his feet. Lord Ram accepted Angad while respecting Bali's last wish. Sugriva got the kingdom of Kishkindha and Angad was made the crown prince. The mother of Angad, the son of Sugriva's brother Bali, was Tara who was an nymph. When Lord Sriram killed Angad's father Vanararaj Bali, Bali called his son near and told him three things of wisdom when he died. Bali said, the first thing to keep in mind is to always work by understanding the country, time and circumstances. The second is to make the right decision with whom, when, where and how to behave.


अंत में बालि ने तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात कही कि पसंद-नापसंद, सुख-दु:ख को सहन करना और क्षमाभाव के साथ जीवन व्यतीत करना। यही जीवन का सार है। बालि ने अपने पुत्र अंगद से ये बातें ध्यान रखते हुए कहा कि अब से तुम सुग्रीव के साथ रहो और हमेशा प्रभु श्रीराम की शरण में रहना वे त्रैलोक्यपति हैं। बालि के कहने पर ही अंगद ने सुग्रीव के साथ रहकर प्रभु श्रीराम की सेवा की। अंगद ने प्रभु श्री राम के द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को बखूबी संभाला। बालि वध के बाद सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य मिला और अंगद युवराज बनाए गए। सीता की खोज में वानरी सेना का नेतृत्व युवराज अंगद ने ही किया। सम्पाती से सीता के लंका में होने की बात जानकर अंगद समुद्र पार जाने के लिये तैयार हो गये, किन्तु दल का नेता होने के कारण जामवन्त ने इन्हें जाने नहीं दिया और हनुमान लंका गये।

In the end, Bali said the third most important thing is to like, dislike, tolerate happiness and sorrow and lead a life of forgiveness. This is the essence of life. Bali said this to his son Angad, keeping in mind that from now on you stay with Sugriva and always remain in the shelter of Lord Shri Ram, he is the Trilokyapati. Angad served Lord Shree Ram by staying with Sugriva at the behest of Bali.After the Bali slaughter Sugriva got the kingdom of Kishkindha and Angad was made the crown prince. Yuvraj Angad led the forestry army in search of Sita. Knowing that Sita was in Lanka from Sampathi, Angad agreed to go across the sea, but being the leader of the party, Jamwant did not let him go and Hanuman went to Lanka.
 
 
हनुमान, अंगद और जामवंत जैसे कई विद्वान प्राण विद्या में पारंगत थे। राम ने अंगद से कहा कि हे अंगद! रावण के द्वार जाओ। कुछ सुलह हो जाए, उनके और हमारे विचारों में एकता आ जाए, जाओ तुम उनको शिक्षा दो। 

Many scholars like Hanuman, Angad and Jamwant were proficient in Pran Vidya. Ram said to Angad, O Angad! Go to Ravana's door. Let there be some reconciliation, there should be unity between them and our thoughts, go teach them.

जब अंगद रावण की सभा में पहुंचे तो वहां नाना प्रकार के वैज्ञानिक भी विराजमान थे, वण और उनके सभी पुत्र विराजमान थे। रावण ने कहा कि आओ! तुम्हारा आगमन कैसे हुआ? अंगद ने कहा कि प्रभु मैं इसलिए आया हूं कि राम और तुम्हारे दोनों के विचारों में एकता आ जाए। तुम्हारे यहां संस्कृति के प्रसार में अभाव आ गया है, अब मैं उस अभाव को शांत करने आया हूं। चरित्र की स्थापना करना राजा का कर्त्तव्य होता है, तुम्हारे राष्ट्र में चरित्र हीनता आ गई है, तुम्हारा राष्ट्र उत्तम प्रतीत नहीं हो रहा है इसलिए मैं आज यहां आया हूं। रावण ने कहा कि यह तो तुम्हारा विचार यथार्थ है परन्तु मेरे यहां क्या सूक्ष्मता है?अंगद वहां श्रीराम का संदेश लेकर राजदूत बनकर जाते हैं लेकिन जब रावण उन्‍हें बैठने के लिए आसन नहीं देता है तो वे स्‍वयं की पूंछ का आकार बढ़ाकर उसी का आसन बनाकर वहीं बैठ जाते हैं। यह आसन रावण के आसन से भी ऊंचा होता है। यह देख रावण सहित समस्‍त असुर हतप्रभ रह जाते हैं।

When Angad reached the assembly of Ravana, there were many types of scientists sitting there, Vana and all his sons were sitting. Ravana said come! How did you arrive Angad said that Lord I have come so that the thoughts of both Rama and you may come together. There has been a lack of spread of culture here, now I have come to calm that deficiency.Ravana said that this is your idea of ​​reality but what is fine with me? Angad goes there as an ambassador with the message of Shri Ram, but when Ravana does not give him the seat to sit, he increases the size of his tail and makes it his own posture. Sit there. This posture is also higher than the posture of Ravana. Seeing this, all the demons including Ravana are shocked.
 
अब अंगद बोले तुम्हारे यहां चरित्र की सूक्ष्मता है। राजा के राष्ट्र में जब चरित्र नहीं होता तो संस्कृति का विनाश हो जाता है। संस्कृति का विनाश नहीं होना चाहिए, संस्कृति का उत्थान करना है। संस्कृति यही कहती है कि मानव के आचार व्यव्हार को सुन्दर बनाया जाए, महत्ता में लाया जाए, एक दूसरे की पुत्री की रक्षा होनी चाहिए। वह राजा के राष्ट्र की पद्धति कहलाती है।

Now Angad said, you have a subtlety of character here. When there is no character in the king's nation, the culture is destroyed. Culture should not be destroyed, culture has to be uplifted. Culture says that the behavior of human beings should be made beautiful, brought in importance, each other's daughter should be protected. He called the nation down the king.
 
रावण ने पूछा क्या मेरे राष्ट्र में विज्ञान नहीं? अंगद बोले कि हे रावण! तुम्हारे राष्ट्र में विज्ञान है परन्तु विज्ञान का क्या बनता है? एक मंगल की यात्रा कर रहा है परन्तु मंगल की यात्रा का क्या बनेगा, जब तुम्हारे राष्ट्र में अग्निकांड हो रहे हैं। हे रावण! तुम सूर्य मंडल की यात्रा कर रहे हो, उस सूर्य की यात्रा करने से क्या बनेगा, जब तुम्हारे राष्ट्र में एक कन्या का जीवन सुरक्षित नहीं। तुम्हारे राष्ट्र का क्या बनेगा?

Ravana asked, Is there no science in my nation? Angad said that O Ravan! There is science in your nation, but what is made of science? One is traveling to Mars, but what will become of the journey to Mars, when there are fireballs in your nation. Hey Ravana! You are traveling to the solar system, what will happen when you travel to that sun, when a girl's life is not safe in your nation. What will happen to your nation?
 
रावण ने कहा कि यह तुम क्या उच्चारण कर रहे हो, तुम अपने पिता की परंपरा शांत कर गए हो। अंगद ने कहा कदापि नहीं, में इसलिए आया हूं कि तुम्हारे राष्ट्र और अयोध्या दोनों का समन्वय हो जाए।

Ravana said what are you saying, you have calmed down your father's tradition. Angad said, no, I have come so that both your nation and Ayodhya can be coordinated.
 
इस पर रावण मौन हो गया। नरायान्तक बोले कि भगवन! इसको विचारा जाए, यह दूत है, यह क्या कहता है? अंगद बोले यदि भगवन! राम से तुम अपने विचारों का समन्वय कर लोगे तो राम माता सीता को लेकर चले जाएंगे।

Ravan became silent on this. Narayanatak said that God! Consider it, this is the messenger, what does it say? Angad said if God If you coordinate your thoughts with Rama, then Rama will go with Mother Sita.
 
रावण ने कहा कि यह क्या उच्चारण कर रहा है? मैं धृष्ट नहीं हूं। अंगद बोले यही धृष्टता है संसार में, किसी दूसरे की कन्या को हरण करके लाना एक महान धृष्टता है। तुम्हारी यह धृष्टता है कि राजा होकर भी परस्त्रीगामी बन गए हो। जो राजा किसी स्त्री का अपमान करता है उस राजा के राष्ट्र में अग्निकाण्ड हो जाते हैं।

Ravana said what is it chanting? I am not reckless. Angad said that this is the audacity in the world, it is a great audacity to take away another girl. It is your audacity that even after being a king, you have become transcendental. The king who insults a woman gets set on fire in that king's nation.
 
रावण ने कहा कि यह कटु उच्चारण कर रहा है। अंगद ने कहा कि मैं तुम्हें प्राण की एक क्रिया निश्चित कर रहा हूं, यदि चरित्र की उज्ज्वलता है तो मेरा यह पग है इस पग को यदि तुम एक क्षण भी अपने स्थान से दूर कर दोगे तो मैं उस समय में माता सीता को त्याग करके राम को अयोध्या ले जाऊंगा। अंगद ने प्राण की क्रिया की और उनका शरीर विशाल एवं बलिष्‍ठ बन गया।
Ravana said that it is bitter. Angad said that I am making you an action of life, if there is a brightness of the character, this is my foot, if you remove this step from your place even for a moment, then I will abandon Mother Sita in that time Ram Will take you to Ayodhya Angad performed the life of Pran and his body became huge and athletic.
 
राजसभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है। रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया।

There was no sacrifice in the Rajya Sabha that could take away his foot from his position even for a moment. When Angad's foot did not go away for a moment, Ravana went on his own at that time, but as soon as Ravana came, he said that it is the sovereign, it is not beautiful to take the steps from the authorities. He appointed his foot in his place and said, O Ravana! It is useless for you to touch my feet. If you touch the feet of Rama, you can be benefited. Ravana sat silently at his place.

बुधवार, 10 जून 2020

मंदोदरी ( Mandodari )

|| जय सिया राम || 
 

 
|| मंदोदरी || 


 

अहल्या द्रौपदी तारा कुंती मंदोदरी तथा।
पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥

 पंचकन्या वे पाँच कन्याएँ हैं, जिनका भारत के हिन्दू सम्प्रदाय और धर्मग्रंथों में विशिष्ट स्थान है। पुराणों के अनुसार ये पाँच कन्याएँ विवाहित होते हुए भी पूजा के योग्य मानी गई हैं।मंदोदरी पंचकन्याओं में से एक थी। मंदोदरी के पिता का नाम मयासुर था| मयासुर ने ही हनुमान जी के लंका दहन के बाद लंका का पुनरनिर्माण केवल तीन दिन में कर दिया था | मंदोदरी रावण की पटरानी तथा मेघनाद और अक्षयकुमार की माता थी | मंदोदरी बहुत पतिव्रता थीं तथा हमेशा रावण को समझाती रही कि सीता जी लंका तथा रावण का काल बनकर आयीं हैं कृपया उन्हें आदर के साथ प्रभु राम को लौटा दें किन्तु रावण ने कभी उसकी बात नहीं मानी तथा उपहास में ही उसको लिया | 

Panchakanya is the five girls who have a special place in the Hindu sect and scriptures of India. According to the Puranas, these five girls are considered worthy of worship even when they are married. Mandodari was one of the Panchkanis. Mandodari's father's name was Mayasur. It was Mayasur who reconstructed Lanka in just three days after the burning of Lanka by Hanuman. Mandodari was Patarani of Ravana and mother of Meghnad and Akshaykumar. Mandodari was very virtuous and always explained to Ravana that Sita ji has come as the era of Lanka and Ravana, please return her with respect to Lord Rama but Ravana never obeyed him and took him only in derision.
 
हिन्दू पुराणों में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक बार मधुरा नामक एक अप्सरा कैलाश पर्वत पर पहुंची और देवी पार्वती को वहां ना पाकर वह भगवान शिव को आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगी। तभी देवी पार्वती वहां पहुंचती हैं और क्रोध में आकर इस अप्सरा को श्राप देती हैं कि वह 12 साल तक मेढक बनकर कुएं में रहेगी। भगवान शिव के बार-बार कहने पर माता पार्वती ने मधुरा से कहा कि कठोर तप के बाद ही वह अपने असल स्वरूप में वापस आ सकती है। 

According to a legend recorded in the Hindu Puranas, once an apsara named Madhura reached Mount Kailash and tried not to find Goddess Parvati there, she started trying to attract Lord Shiva. Then Goddess Parvati reaches there and curses this nymph in anger that she will remain in the well as a paddock for 12 years. After repeatedly asking Lord Shiva, Mata Parvati told Madhura that only after rigorous penance can she return to her true form.                               
मधुरा लंबे समय तक कठोर तप करती है। इसी दौरान असुरों के देवता, मयासुर और उनकी अप्सरा पत्नी हेमा एक पुत्री की प्राप्ति के लिए तपस्या करते हैं। इसी बीच मधुरा की कठोर तपस्या से वह श्राप मुक्त हो जाती है। एक कुएं से मयासुर-हेमा को मधुरा की आवाज सुनाई देती है। मयासुर मधुरा को कुएं से बाहर निकालते हैं और उसे बेटी के रूप में गोद ले लेते हैं। मयासुर अपनी गोद ली पुत्री का नाम मंदोदरी रखते हैं। जिनसे रावण बाद में विवाह करता है।
 
Madhura performs prolonged rigorous penance. Meanwhile, the demon god, Mayasura and his nymph wife Hema perform penance for the attainment of a daughter. In the meantime, the curse of Madhura is severely curtailed. The sound of Madhura is heard to Mayasur-Hema from a well. Mayasura drives Madhura out of the well and adopts her as a daughter. Mayasur names his adopted daughter Mandodari. Whom Ravana later marries.

 

 


अशोक वाटिका में रावण ने क्रोध में जब चन्द्रहास खड्ग द्वारा सीता जी पर वार करना चाहा तो मंदोदरी ने ही रावण को रोक दिया और कहा की सीता को क्षमा कर दीजिये क्यूंकि इस समय यह लंका में आपकी अतिथि समान है | हनुमान जी के लंका को जला देने के पश्चात मंदोदरी ने अभिमानी रावण को चेताया की देखिये जिनके एक दूत ने आपकी सोने की लंका जला दी उनकी शक्ति का विचार करिये और युद्ध का निर्णय त्याग दीजिये किन्तु रावण कहाँ मानने वाला था। वह अभिमानी एक स्त्री की बाँतों को गंभीरता से कैसे लेता और अंततः भगवान् राम ने उसका कुल सहित नाश कर दिया | 

In Ashoka Vatika, when Ravana wanted to attack Sita ji by Chandrahas Khadg in anger, Mandodari stopped Ravana and said that forgive Sita because at this time it is your guest in Lanka. After Hanuman ji burnt Lanka, Mandodari warned the arrogant Ravana, look at the power of one of his messengers who burned your gold Lanka and abandon the decision of war, but where Ravana was going to believe. How would he take the arrogance of a proud woman seriously and eventually Lord Rama destroyed her clan as well.
रावण के वध के बाद मंदोदरी रणभूमि पर पहुंचती हैं। यहां पति-पुत्र के साथ-साथ अपनों के शव देखकर शोक में डूब जाती हैं। यहां श्रीराम उन्हें याद दिलाते हैं कि वे अब भी लंका की महारानी और अत्यंत बलशाली रावण की विधवा हैं। इसके बाद मंदोदरी लंका वापस लौट जाती हैं।एक किवदंती के अनुसार पति-पुत्र के दुख में मंदोदरी खुद को महल में कैद कर लेती हैं। वे पूरी तरह से बाहरी दुनिया से संपर्क तोड़ लेती हैं। इस दौरान विभीषण लंका का राजपाट संभालते हैं। कई सालों बाद मंदोदरी फिर से अपने महल से बाहर निकलती हैं और विभीषण से विवाह करने के लिए तैयार हो जाती हैं। विवाह के बाद मंदोदरी ने विभीषण के साथ मिलकर लंका के साम्राज्य को सही दिशा में आगे बढ़ाया।

After Ravana's slaughter, Mandodari arrives at the battlefield. Here the husband and son as well as their dead bodies are immersed in mourning. Here Shri Ram reminds her that she is still the Queen of Lanka and the widow of the extremely powerful Ravana. After this Mandodari returns to Lanka. According to a legend, Mandodari imprisons herself in the palace in the grief of husband and son. They completely cut off contact with the outside world. During this, Vibhishan takes over the reins of Lanka. Many years later Mandodari again exits her palace and agrees to marry Vibhishan. After marriage, Mandodari, along with Vibhishan, pushed the kingdom of Lanka in the right direction.
 

विभीषण (Vibhishana )

|| जय सिया राम || 
 
 
 
विभीषण 

घर का भेदी लंका ढाए अर्थात विभीषण ?? क्या विभीषण सच में इस अनादर का पात्र है यह बात समझने एवं जानने योग्य है | विभीषण को कुलद्रोही और आस्तीन का साँप कहना कहाँ तक उचित है | विभीषण तो प्रभु भक्त था तो भी जगत में उसका अनादर क्यूँ ?

Piercing the house in Lanka ie Vibhishan ?? Is Vibhishan really worthy of this disrespect, it is worth understanding and knowing. To what extent is it appropriate to call Vibhishan as a pillar and sleeve snake? Vibhishan was a devotee even if he was disrespected in the world.

रामायण में विभीषण राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी राम भक्त थे। राक्षस रावण के छोटे भाई विभीषण बचपन से ही नारायण भक्त थे, जब तीनों भाइयों रावण, कुंभकरण और विभीषण ने ब्रह्मा जी की तपस्या की तो विभीषण ने उनसे भक्ति का आशीर्वाद मांगा। रावण के सानिध्य  में रहने के बाद भी उन्होंने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी।विभीषण राक्षस होते हुए भी प्रभु की भक्ति में लीन रहते थे | तपस्या में जहाँ बाकि भाइयों ने शक्तियाँ मांगी विभीषण ने प्रभु भक्ति माँगी , इसलिए ही उन्हे प्रभु भक्ति का फल मिला और श्री राम प्रभु ने बिना मांगे एक क्षण में उन्हें लंका का राजा बना दिया|  

Rama was a devotee even after being born in the Vibhishana demon clan in Ramayana. Vibhishan, the younger brother of the demon Ravana, was a Narayan devotee since childhood, when all the three brothers Ravana, Kumbhakaran and Vibhishana did penance to Brahma Ji, Vibhishana sought blessings of devotion from him. Even after being in the company of Ravana, he did not give up his devotion. Despite being a demon, he used to indulge in devotion to the Lord. In austerities where the remaining brothers asked for powers, Vibhishana asked for devotion to God, that is why he got the fruits of Bhakti and Shri Ram Prabhu made him king of Lanka in an instant without asking.
 

रावण ने जब सीता जी का हरण किया, तब विभीषण ने परायी स्त्री के हरण को महापाप बताते हुए सीता जी को श्री राम को लौटा देने की उसे सलाह दी। किन्तु रावण ने उस पर कोई ध्यान न दिया। श्री हनुमान जी सीता की खोज करते हुए लंका में आये। उन्होंने श्री रामनाम से अंकित विभीषण का घर देखा। घर के चारों ओर तुलसी के वृक्ष लगे हुए थे। सूर्योदय के पूर्व का समय था, उसी समय श्री राम-नाम का स्मरण करते हुए विभीषण जी की निद्रा भंग हुईं। राक्षसों के नगर में श्री रामभक्त को देखकर हनुमान जी को आश्चर्य हुआ। दो रामभक्तों का परस्पर मिलन हुआ। श्री हनुमान जी का दर्शन करके विभीषण भाव विभोर हो गये। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि श्री रामदूत के रूप में श्री राम ने ही उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया है। श्री हनुमान जी ने उनसे पता पूछकर अशोक वाटिका में माता सीता का दर्शन देकर कृतार्थ किया है। श्री हनुमान जी ने उनसे पता पूछकर अशोकवाटिका में माता सीता का दर्शन किया। अशोकवाटिका विध्वंस और अक्षयकुमार के वध के अपराध में रावण हनुमान जी को प्राणदण्ड देना चाहता था। उस समय विभीषण ने ही उसे दूत को अवध्य बताकर हनुमान जी को कोई और दण्ड देने की सलाह दी। रावण ने हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने की आज्ञा दी और अशोक वाटिका तथा विभीषण के मन्दिर समान घर को छोड़कर सम्पूर्ण लंका जलकर राख हो गयी। भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। विभीषण ने पुन: सीता को वापस करके युद्ध की विभीषिका को रोकने की रावण से प्रार्थना की। इस पर रावण ने इन्हें लात मारकर निकाल दिया। सभी राजदरबारी तथा मेघनाद हसने लगे तब विभीषण बोले की ये तुम नहीं तुम्हारा काल तुम्हारे सर पर चढ़ के हँस रहा है | अपनी माता कैकसी से परामर्श करने के पश्चात ये श्री राम के शरणागत हुए। श्री राम ने पहली ही भेंट में उन्हें लंकापति कहकर पुकारा तो वह आश्चर्य चकित रह गए | प्रभु ने अपने भक्त को पहली नज़र में पहचाना तथा भक्त ने भी जाना की वह कितने कृपालु हैं | विभीषण ने अगर ऐसे दयालु स्वामी के लिए भातृद्रोह किया तो उसमे गलत क्या है | रावण ने तो लात मारकर खुद ही अपने भाई को निकाला फिर तो पहला दोष रावण का ही है | रावण ही क्या उसके भतीजे इंद्रजीत ने भी कभी अपने चाचा का सम्मान नहीं किया तथा लंका में सबने उसका तिरस्कार ही किया | ऐसे में अगर वह अधर्म को त्याग कर धर्म का साथ ना देता तो क्या करता |

एक सच्चा भक्त कब तक अपने प्रभु तथा उनकी भार्या सीता जी का अपमान सहता क्यूंकि विभीषण जैसे धर्मात्मा को तो भक्ति के सिवा कुछ आता ही नहीं था | एक राम भक्त का अपमान हमारे प्रभु का ही अपमान है लेकिन बहुत लोग अज्ञानवश ऐसा करते रहे हैं | 

When Ravana killed Sita, Vibhishan advised Sita to return Sita to Sri Rama, calling the alien woman's haranas a great sin. But Ravana paid no attention to him. Sri Hanuman ji came to Lanka searching for Sita. He saw the house of Vibhishana inscribed with Sri Ramnam. Tulsi trees were planted around the house. It was time before sunrise, at the same time Vibhishan ji's sleep was disturbed while remembering Shri Ram's name. Hanuman ji was surprised to see Shree Rambhakta in the city of demons. The two Rambhaktas got together. Vibhishan Bhav became enamored by seeing Shri Hanuman ji. It seemed to him that Shri Rama as Shri Ramdoot has shown his gratitude by giving him darshan. Shri Hanuman ji asked for his address and gave his gratitude by giving darshan of Mata Sita in Ashoka Vatika. Shri Hanuman Ji asked her address and saw Mata Sita in Ashokwatika. Ravana wanted to kill Hanuman ji in the crime of Ashokwatika demolition and the murder of Akshaykumar. At that time, Vibhishan advised him to punish Hanuman ji by telling him the messenger was impracticable. Ravana ordered Hanuman ji to set fire to the tail and the whole of Lanka became ashes by leaving the house like Ashoka Vatika and Vibhishan's temple. Lord Sri Rama marched on Lanka. Vibhishana again returned to Sita and prayed to Ravana to stop the catastrophe of the war. On this Ravana kicked them out. When all the courtiers and Meghnad started laughing, Vibhishan said that it is not you but your time is laughing by climbing on your head. After consulting with his mother Kaikasi, he took refuge in Shri Ram. Shri Rama called him as a Lankapati on the very first meeting, and he was surprised. God recognized his devotee at first sight and the devotee also knew how kind he is. If Vibhishan has committed treason to such a merciful master, what is wrong with him? Ravana kicked and pulled out his brother on his own, and then the first blame is for Ravana. Did Ravana not even his nephew Indrajit ever respect his uncle and everyone in Lanka despised him. In such a situation, what would he do if he did not renounce iniquity and support religion?
How long did a true devotee bear the insult of his lord and his gentleman Sita ji, because a god like Vibhishan did not know anything except devotion. Insulting a Ram devotee is an insult to our Lord, but many people have been doing this in ignorance


 
अनेक प्रकार से समय समय पर प्रभु राम की सहायता की तथा अपने अर्जित  भक्ति के वरदान के अनुरूप ही कार्य किये |विभीषण की पत्नी गन्धर्व कन्या सरमा थी और पुत्री का नाम त्रिजटा था | त्रिजटा अशोक वाटिका में मुख्य पद पर थी तथा अपने पिता की तरह राम भक्त थी | अशोक वाटिका में देवी सीता को कभी भी त्रिजटा ने हतोत्साहित नहीं होने दिया |  विभीषण का एक गुप्तचर था, जिसका नाम 'अनल' था। उसने पक्षी का रूप धारण कर लंका जाकर रावण की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया और इसकी सूचना भगवान श्रीराम को दी थी। विभीषण के गुप्तचरों ने ही इंद्रजीत के यज्ञ के बारे में राम-लक्ष्मण को अवगत कराया | लक्ष्मण विभीषण की अगुवाई में ही मेघनाद का वध कर सके | राम -रावण युद्ध के समय भी जब रावण के सर बार बार कट के फिर जुड़ जाने लगे तब विभीषण ने ही भगवान् राम को रावण की नाभि में अग्नि बाण मारने को कहा ताकि उसकी नाभि में मौजूद अमृत कुंड सूख जाए | रावण सपरिवार मारा गया। भगवान श्री राम ने विभीषण को लंका का नरेश बनाया और विभीषण भी भगवान् राम के साथ पुष्पक विमान में बैठ कर अयोध्या आए | भगवान् राम के राजतिलक में वह भी शामिल हुए | विभीषण जैसा निर्भीक राम भक्त और कौन होगा जो लंका में रहते हुए भी नारायण जाप में लगे रहते थे | रावण के दरबार में भी सत्य कहने से नहीं चुके यह तो रावण का अभिमान ही था जो उसे ले डूबा विभीषण तो एक निमित्त मात्र है | विभीषण ने वही किया जो एक भक्त को करना चाहिए था उसने पूर्ण समर्पण से भगवान् राम का साथ दिया | 

 In many ways, he helped Lord Rama from time to time and acted according to his gift of devotion. Vibhishan's wife Gandharva was the daughter of Sarma and daughter's name was Trijata. Trijata was in the main position in Ashoka Vatika and Ram was a devotee like her father. In the Ashoka Vatika, the Goddess Sita was never discouraged by the Trijata. Vibhishan had a detective named 'Anal'. Taking the form of a bird, he went to Lanka and discovered Ravana's defense system and military power and gave information to Lord Shri Ram. Vibhishan's spies informed Rama-Laxman about Indrajit's yajna. Lakshman was able to kill Meghnad under the leadership of Vibhishan. Even during the Rama-Ravana war, when Ravana's head started to be re-inserted again and again, Vibhishan asked Lord Rama to fire fire arrows in Ravana's navel so that the nectar pool in his navel would dry up. Ravana's family was killed. Lord Sri Rama made Vibhishan the king of Lanka and Vibhishan also came to Ayodhya with Lord Rama in a Pushpak plane. He also joined the coronation of Lord Rama. Who else would be a fearless Rama devotee like Vibhishan, who, while living in Lanka, used to be engaged in chanting Narayana. Even in the court of Ravana, who had not told the truth, it was Ravan's pride that took him away and Vibhishan is just an instrument. Vibhishan did what a devotee should have done, he supported Lord Rama with complete dedication.

रविवार, 7 जून 2020

कुंभकरण (Kumbhkarna)


||जय सिया राम || 
 
 
कुम्भकर्ण

कुम्भकर्ण ऋषि व्रिश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र तथा लंका के राजा रावण का छोटा भाई था। कुम्भ अर्थात घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण इसका नाम कुम्भकर्ण रखा गया था। यह विभीषण और शूर्पनखा का बड़ा भाई था। बचपन से ही इसके अंदर बहुत बल था, तथा खाता इतना था  कि एक बार में यह जितना भोजन करता था उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे। कुम्भकर्ण अपनी निद्रा और अत्‍यधिक भोजन करने की प्रवृत्ति के लिए जाना जाता था| रामायण के अनुसार कुंभकरण भले ही दैत्‍य था, लेकिन वह बेहद बुद्धिमान, बहादुर धर्मज्ञाता , बलवान और निष्‍ठावान था. यही वजह है कि देवताओं के राजा इंद्र को  भी उसकी शक्तियों से डर लगता था | खर, दूषण, कुम्भिनी, अहिरावण और कुबेर कुंभकरण के सौतेले भाई थे।कुंभकर्ण की पत्नी वरोचन की कन्या वज्रज्वाला थीं। उसकी एक दूसरी पत्नी का नाम कर्कटी था। कुंभपुर के महोदर नामक राजा की कन्या तडित्माला से भी कुंभकर्ण का विवाह हुआ। कुंभकर्ण के एक पुत्र का नाम मूलकासुर था जिसका वध माता सीता ने किया था। दूसरे का नाम भीम था। कहते हैं कि इस भीम के कारण ही भीमाशंकर नामक ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई थी।
 
Kumbhakarna was the son of sage Vrishrava and the demonic Kaikasi and younger brother of Ravana, the king of Lanka. Kumbh means pitcher and Karna means ear, it was named Kumbhakarna due to having large ears since childhood. He was the elder brother of Vibhishan and Shurpanakha. Since childhood, there was a lot of force inside it, and the food was so much that even the food of many cities could not do it together in one meal. Kumbhakarna was known for his sleep and tendency to overeat. According to the Ramayana, Kumbhakaran was a monster, but he was very intelligent, brave theologian, strong and loyal. This is the reason why Indra, the king of the gods, was afraid of his powers. Khar, Dushan, Kumbhini, Ahiravana and Kubera were the half brothers of Kumbhakaran. Kumbhakarna's wife was Vajrajwala, the daughter of Varochan. His second wife's name was Kirkati. Kumbhakarna was also married to Taditmala, the daughter of a king named Mahodar of Kumbhapur. Kumbhakarna had a son named Moolakasura who was slaughtered by Mother Sita. The other name was Bhima. It is said that it was due to this Bhima that a Jyotirlinga named Bhimashankar was established.
 
 अपने भाइयों रावण और विभिषण के साथ कुंभकरण ने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्‍या की थी. इन्द्र आदि देवताओं ने ब्रह्मा तथा शंकर जी से विनती की इन राक्षसों को सोच विचार कर ही वरदान दें | इसके बाद शिव जी ने और ब्रह्मा जी ने विशालकाय कुम्भकर्ण को देखकर सोचा कि यह अगर रोज भोजन करेगा तो पृथ्वी को नाश हो जायेगा।  तपस्‍या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी ने उससे वर मांगने के लिए कहा तभी मां सरस्‍वती उसकी जिह्वा पर जाकर बैठ गईं|  फिर क्‍या था उसे मांगना तो था 'इंद्रासन' लेकिन देवी सरस्‍वती के बैठे होने के कारण वह 'निद्रासन' मांग बैठा|

Kumbhakaran, along with his brothers Ravana and Vibhishana, did hard penance to please Brahma. The Gods of Indra and others pleaded with Brahma and Shankar ji to give blessings to these demons only after thinking. After this, Lord Shiva and Brahma Ji, seeing the giant Kumbhakarna, thought that if it would eat every day, the earth would be destroyed. Pleased with penance, when Lord Brahma asked him to ask for a bride, then mother Saraswati sat on his tongue. Then what was it that he had to ask for 'Indrasana' but due to the sitting of Goddess Saraswati, he sat asking for 'sleepless'.


ब्रह्मा के वरदान से कुंभकरण छह-छह महीने सोता रहता था| छह महीने लगातार सोने के बाद जब वह उठता था तो उसे इतनी ज्‍यादा भूख लगी रहती थी कि उसके सामने जो कुछ भी आता था वो उसे खा जाता था, चाहे वो इंसान ही क्‍यों न हों|
जब रावण युद्ध के मैदान में गया तब उसे श्री राम और उनकी सेना के सामने शर्मिंदा होना पड़ा. तब रावण ने फैसला किया कि मुश्किल की इस घड़ी में उसे अपने भाई कुंभकरण का साथ चाहिए. लेकिन उस वक्‍त कुंभकरण सो रहा था. उसे नींद के बीच से उठाना इतना आसान नहीं था. उसे उठाने के लिए अनेक तरह के यत्‍न किए गए. लेकिन वह तब भी नहीं उठा. आखिरकार उसके ऊपर एक हजार हाथी चलवाए गए
विभन्न प्रक्रार के व्यंजन , मदिरा तथा भैंसे उसके पास लाकर रख दिए गए | भोजन की सुंगंध से वह उठा और उठते ही अनेक भैसे सैकड़ो घड़े , मदिरा और वयंजनो को खा गया | उसके बाद क्रोधित हुआ की उसको समय से पहले क्यों जगाया गया | 
कुंभकरण को जब राम-रावण युद्ध के बारे में पता चला तब उसने अपने भाई को समझाने की बहुत कोशिश की. उसने रावण को बताया कि श्री राम साक्षात् नारायण के अवतार हैं और ऐसे में उनसे युद्ध में नहीं जीता जा सकता. वहीं, सीता मां लक्ष्‍मी का रूप हैं इसलिए उनका हरण करने का विचार भी मन में कैसे आ सकता है. कुंभकरण ने रावण को बताया कि वह गलत कर रहा है और उसे अपना हठ  छोड़कर सीता को श्रीराम के पास वापस भेज देना चाहिए. रावण ने कुंभकरण की एक न सुनी. रावण ने कुंभकरण को बताया कि वह उसका भाई है ऐसे में उसका धर्म उसकी तरफ से युद्ध के मैदान में जाना है. यह जानते हुए भी रावण गलत है इसके बावजूद कुंभकरण ने उसकी बात मानी और वह अपने भाई के प्रति निष्‍ठा का पालन करते हुए युद्ध लड़ने चला गया. 

Kumbhakaran used to sleep for six months with the blessings of Brahma. When he woke up after sleeping for six months continuously, he used to get so hungry that whatever he came in front of him would eat him, even if he was a human being. When Ravana went to the battlefield, he had to be embarrassed in front of Shri Ram and his army. Then Ravana decided that in this hour of difficulty he should support his brother Kumbhakaran. But Kumbhakaran was sleeping at that time. It was not so easy to lift him from the middle of sleep. Various efforts were made to lift it. But he still did not get up. Eventually a thousand elephants were carried over him Various types of dishes, wines and buffaloes were brought to him. He woke up from the smell of food and as soon as he got up he ate hundreds of buffaloes, wines and dishes. After that he was angry as to why he was awakened ahead of time. When Kumbakaran came to know about the Ram-Ravana war, he tried a lot to convince his brother. He told Ravana that Shri Rama is the incarnation of Sakshat Narayan and in such a situation he cannot be won in battle. At the same time, Sita is the form of Maa Lakshmi, so how can the idea of ​​killing her come to mind. Kumbhakaran tells Ravana that he is doing wrong and that he should leave his stubbornness and send Sita back to Shri Ram. Ravana did not listen to Kumbhakaran. Ravana told Kumbhakaran that he is his brother, so his religion has to go to the battlefield on his behalf. Despite knowing that Ravana is wrong, Kumbhakaran obeyed him and he went to fight the war, following his loyalty to his brother.
 
कुंभकरण ने रण क्षेत्र में पहुंचकर श्री राम की वानर सेना को कुचल दिया, श्री हनुमान को चोटिल कर दिया और सुग्रीव को मूर्छित कर उसे बंदी बना लिया. जब वह सुग्रीव को ले जा रहा था तभी श्री राम ने उसका वध कर दिया. रामायण के अनुसार कुंभकरण के दो बेटे कुंभ और निकुंभ थे. उसके बेटों ने राम के खिलाफ युद्ध लड़ा और वे भी मारे गए. 

Kumbhakaran reached the battlefield and crushed Shree Rama's monkey army, injured Shree Hanuman and imprisoned Sugriva. While he was taking Sugriva, Shri Ram killed him. According to Ramayana, Kumbhakaran had two sons, Kumbha and Nikumbh. His sons fought a war against Rama and were also killed.


वैसे रामायण के ज्‍यादातर चरित्र ऐसे हैं जो या तो अच्‍छाई के साथ हैं या बुराई के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं. लेकिन कुंभकरण का चरित्र अधिक जटिल है|  वह नीति-अनीति, धर्म-अधर्म का भेद जानता है|  वह कभी खुलकर रावण का विरोध नहीं करता, हालांकि वह रावण को समय-समय पर बहुत समझाता है.| यह जानते हुए भी कि रावण गलत है तब भी वह उसका साथ देता है|  रण क्षेत्र में जब कुंभकरण और विभिषण का आमना-सामना होता है तब दोनों बेहद भावुक हो उठते हैं|  विभिषण अपने बड़े भाई कुंभकरण को अधर्म का साथ छोड़कर श्री राम की शरण लेने के लिए कहता है|  कुंभकरण उसकी अवहेलना करते हुए उसे ही यह कहते हुए अधर्मी बता देता है कि उसने अपने भाई को धोखा दिया है|  जब दोनों भाई एक-दूसरे को नहीं समझा पाते और विदा लेते हैं तब कुंभकरण की आंखों से आंसू बहने लगते हैं| 
 इतना ही नहीं कुंभकरण को यह भी पता था कि युद्ध का क्‍या परिणाम होगा| अपने भाई विभिषण से अंत में वह यही कहता है कि उनके मरने के बाद पूरे विधि-विधान से रावण और उसका अंतिम संस्‍कार करे|  कुंभकरण कहता है कि इस युद्ध में विभिषण ही जिंदा बचेगा, जबकि रावण और उसकी मौत हो जाएगी. विभीषण को ही सबका अंतिम संस्कार करना होगा | 

 
By the way, most of the characters of Ramayana are those who are either with good or appear to be in favor of evil. But the character of Aquarius is more complex. He knows the difference between ethics, immorality, religion and unrighteousness. He never openly opposes Ravana, although he explains Ravana a lot from time to time. Even after knowing that Ravana is wrong, he still supports him. When Kumbhkaran and Vibhishan are confronted in the battle field, both of them get very emotional. Vibhishan asks his elder brother Kumbhakaran to take refuge with Shree Rama and take shelter. Kumbhakaran disregards him and tells him to be unrighteous, saying that he has cheated his brother. When both brothers are unable to explain to each other and leave, then tears start flowing from the eyes of Aquarius. Not only this, Kumbhkaran also knew what the outcome of the war would be. In the end he says to his brother Vibhishan that after his death, Ravana and his last cremation should be done with complete law. Kumbhakaran says that in this war, Vibhishan will remain alive, while Ravana and his death will die. Vibhishan will have to perform the last rites of all.

शनिवार, 6 जून 2020

मेघनाद (इंद्रजीत)

|| Jai Shree Raam ||
 
 
 
मेघनाद (इंद्रजीत)
 
 



 
मेघनाद अथवा इंद्रजीत रावण के पुत्र का नाम है। मेघनाद का अर्थ है बादलों के  समान गरजने वाला , जन्म लेते ही मेघनाद ने ऐसा अट्हास किया कि उसका नाम इंद्रजीत पड़ गया |अपने पिता रावण की तरह यह भी स्वर्ग विजयी था। इंद्र को परास्त करने के कारण ही ब्रह्मा जी ने इसका नाम इंद्रजीत रखा था। आदिकाल से अब तक यही एक मात्र ऐसा योद्धा है जिसे अतिमहारथी की उपाधि दी गई है। इसका नाम रामायण में इसलिए विशेष रूप से उल्लेखित है क्योंकि इसने राम- रावण युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका नाम उन योद्धाओं में लिया जाता है जो की ब्रह्माण्ड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पाशुपात अस्त्र के धारक कहे जाते हैं। इसने अपने गुरु शुक्राचार्य के सान्निध्य में रहकर तथा त्रिदेवों द्वारा कई अस्त्र- शस्त्र एकत्र किए। स्वर्ग में देवताओं को हरा कर उनके अस्त्र-शस्त्र पर भी अधिकार कर लिया। 
सती सुलोचना से विवाह के पश्चात मेघनाद और भी शक्तिशाली हो गया था क्यूंकि सुलोचना परम शिव भक्तिनी थी तथा वासुकि देव की पुत्री होने के कारण अनेक सिद्धियों को प्राप्त कर चुकी थी जो उसके पति मेघनाद को हमेशा सहायक सिद्ध होती थी |

मेघनाद पितृभक्त पुत्र था। उसे यह पता चलने पर की राम स्वयं भगवान है तथा लक्ष्मण स्वयं शेषनाग फिर भी उसने पिता का साथ नही छोड़ा। मेघनाद की भी पितृभक्ति प्रभु राम के समान अतुलनीय है। जब उसकी माँ मन्दोदरी ने उसे यह कहा कि मनुष्य मुक्ति की ओर अकेले जाता है तब उसने कहा कि पिता को ठुकरा कर अगर मुझे स्वर्ग भी मिले तो मैं ठुकरा दूँगा। जैसा सर्वविदित है मेघनाद ने घनघोर युद्ध किया और राम तथा लक्ष्मण को नाकों चने चबवा दिए |

मेघनाद रावण और मंदोदरी का सबसे ज्येष्ठ पुत्र था । क्योंकि रावण एक बहुत बड़ा ज्योतिषी भी था जिसे एक ऐसा पुत्र चाहिए था जो कि अजर,अमर और अजेय हो,इसलिए उसने सभी ग्रहों को अपने पुत्र कि जन्म-कुंडली के 11-वें (लाभ स्थान) स्थान पर रख दिया ,परंतु रावण कि प्रवृत्ति से परिचित शनिदेव 11- वें स्थान से 12- वें स्थान (व्यय/हानी स्थान) पर आ गए जिससे रावण को मनवांछित पुत्र प्राप्त नहीं हो सका। इस बात से क्रोधित रावण ने शनिदेव के पैर पर प्रहार किया था । इसलिए शनि कि चाल को टेढ़ी कहा जाता है | रावण ने शनिदेव को कैद भी कर लिया जिन्हें बाद में लंकादहन के समय हनुमान जी ने छुड़वा दिया |

मेघनाद के गुरु असुर-गुरु शुक्राचार्य थे। किशोरावस्था (12 वर्ष) कि आयु होते-होते इसने अपनी कुलदेवी निकुंभला के मंदिर में अपने गुरु से दीक्षा लेकर कई सिद्धियां प्राप्त कर लीं । एक दिन जब रावण को इस बात का पता चला तब वह असुर-गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में पहुंचा । उसने देखा कि असुर-गुरु शुक्राचार्य मेघनाद से एक अनुष्ठान करवा रहे हैं । जब रावण ने पूछा कि यह क्या अनुष्ठान हो रहा है, तब आचार्य शुक्र ने बताया कि मेघनाद ने मौन व्रत लिया है । जब तक वह सिद्धियों को अर्जित नहीं कर लेगा, मौन धारण किए रहेगा । अंततः मेघनाद अपनी कठोर तपस्या में सफल हुआ और भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए । भगवान शिव ने उसे कई सारे अस्त्र-शस्त्र, शक्तियां और सिद्धियां प्रदान की । परंतु उन्होंने मेघनाद को सावधान भी कर दिया कि कभी भूल कर भी किसी ऐसे ब्रह्मचारी का दर्शन ना करे जो 12 वर्षों से कठोर ब्रह्मचर्य और तपश्चार्य का पालन कर रहा हो । इसीलिए भगवान श्रीराम जी ने लक्ष्मण जी से 12 वर्ष तक कठोर तपस्या करवाई थी ।
वरदान पाने के बाद मेघनाद एक बार फिर से असुर गुरु शुक्राचार्य की शरण में गया और उनसे पूछा उसे आगे क्या करना चाहिए । तब असुर-गुरु शुक्राचार्य ने उसे सात महायज्ञों की दीक्षा दी जिनमें से एक महायज्ञ भी करना बहुत कठिन है । यह भी कहा जाता है कि मेघनाद का नाम उन योद्धाओं में लिया जाता है जोकि आदिकाल से इन महायज्ञ को करने में सफल हो पाए हैं ।
ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान श्रीविष्णु जी, रावण पुत्र मेघनाद और सूर्यपुत्र कर्ण के अतिरिक्त आदिकाल से ऐसा कोई नहीं है जो वैष्णव यज्ञ कर पाया हो ।
देवासुर संग्राम के समय जब रावण ने सभी देवताओं को इंद्र समेत बंदी बना लिया था और कारागार में डाल दिया था, उसके कुछ समय बाद एक समय सभी देवताओं ने मिलकर कारागार से भागने का निश्चय किया और साथ ही साथ रावण को भी सुप्त अवस्था में अपने साथ बंदी बनाकर ले गए । परंतु मेघनाद ने पीछे से अदृश्य रूप में अपने दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर देवताओं पर आक्रमण किया । देव सेनापति भगवान कार्तिकेय ठीक उसी समय देवताओं की रक्षा के लिए आ गए परंतु मेघनाद को नहीं रोक पाए । मेघनाद ने न केवल देवताओं को पराजित किया अपितु अपने पिता के बंधन खोलकर और इंद्र को अपना बंदी बनाकर वापस लंका ले आया । जब रावण जागा और उसे सारी कथा का ज्ञान हुआ तब रावण और मेघनाद ने यह निश्चय किया इंद्र का अंत कर दिया जाये ,परंतु ठीक उसी समय भगवान ब्रह्मा जी लंका में प्रकट हुए और उन्होंने मेघनाद को आदेश दिया कि वह इंद्र को मुक्त कर दे । मेघनाद ने यह कहा कि वह कार्य केवल तभी करेगा जब ब्रह्मदेव उसे अमरत्व का वरदान दे ,परंतु ब्रह्मदेव ने यह कहा यह वरदान प्रकृति के नियम के विरुद्ध है परंतु वह उसे यह वरदान देते हैं कि जब आपातकाल में कुलदेवी निकुंभला का तांत्रिक यज्ञ करेगा तो उस एक दिव्य रथ प्राप्त होगा और जब तक वह उस रथ पर रहेगा तब तक कोई भी ना से परास्त कर पाएगा और ना ही उसका वध कर पाएगा । परंतु उसे एक बात का ध्यान रखना होगा कि जो उस यज्ञ का बीच में ही विध्वंस कर देगा वही उसकी मृत्यु का कारण भी होगा । और साथ ही साथ ब्रह्मदेव ने यह वरदान भी दिया कि आज से मेघनाद को इंद्रजीत कहा जाएगा जिससे इंद्र की ख्याति सदा सदा के लिए कलंकित हो जाएगी ।
जब भगवान श्री राम ने हनुमान जी को माता सीता की खोज में भेजा और हनुमान जी जब लंका में अशोक वाटिका में माता सीता से मिले, उसके उपरांत हनुमान जी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस करना आरंभ कर दिया। रावण के सारे सैनिक एक एक करके या तो वीरगति को प्राप्त हो गए या तो पराजित होकर भागने लगे। जब रावण को इसी सूचना मिली तो उसने पहले सेनापति जांबुमालि और उसके उपरांत अपने पुत्र राजकुमार अक्षय कुमार को भेजा परंतु दोनों ही वीरगति को प्राप्त हो गए। अंत में रावण ने अपने पुत्र युवराज इंद्रजीत को अशोक वाटिका भेजा। जब इंद्रजीत और हनुमान जी के बीच युद्ध आरंभ हुआ तब इंद्रजीत ने अपनी सारी शक्ति अपनी सारी माया, अपनी सारी तांत्रिक विद्या, अपने सारे अस्त्र-शस्त्र सब प्रयोग करके देख लिए परंतु वह सब के सब निष्फल हो गए। अंत में इंद्रजीत ने हनुमान जी पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। हनुमान जी ने ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए उसमें बंध जाना स्वीकार कर लिया और उसके उपरांत वे दोनों रावण के दरबार की ओर चल पड़े।

कुंभकर्ण के अंत के बाद रावण के पास अब केवल एक उसका पुत्र इंद्रजीत ही रह गया था। उसने इंद्रजीत को आदेश दिया कि वह युद्ध की ओर कूच करे ।

 

इंद्रजीत ने अपने पिता के आदेश पर सबसे पहले कुलदेवी माता निकुंभला का आशीर्वाद लिया और उसके उपरांत हुआ रणभूमि की ओर चल पड़ा। जैसे ही युद्ध आरंभ हुआ एक-एक करके सारे योद्धा इंद्रजीत के हाथों या तो वीरगति को प्राप्त हो गए, या तो भागने लगे, या तो पराजित हो गए । अंत में लक्ष्मण जी और इंद्रजीत के बीच द्वंद होने लगा । जब इंद्रजीत के सारे अस्त्र विफल हो गए तो उसने अदृश्य होकर पीछे से सारी वानर सेना, भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी पर नागपाश का प्रयोग किया। तब ही हनुमान जी को एक युक्ति सूझी कि भगवान गरुण इस नागपाश को काट सकते है अतः हनुमान जी तुरंत ही गरुड़ जी को ले जाए और गरुड़ जी ने सभी को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया।

जब रावण को यह पता चला की सभी वानर सैनिक, भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी नागपाश से मुक्त हो गए हैं तो क्रोध में आकर उसने दूसरे दिन एक बार फिर इंद्रजीत को आदेश दिया कि वह एक बार फिर युद्ध-भूमि की ओर कूच करे ।

एक बार फिर अपने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करके माता निकुंभला का आशीर्वाद लेकर इंद्रजीत रणभूमि की ओर निकल पड़ा । इस बार उसने रणभूमि में घोषणा कि आज वह एक भी वानर सैनिक को जीवित नहीं छोड़ेगा और कम से कम दोनों भाइयों में से (अर्थात राम जी और लक्ष्मण जी में से) किसी एक को तो मार ही देगा । इसी उद्घोषणा के साथ वह पहले दिन से भी कहीं अधिक भयंकरता के साथ युद्ध करने लगा । उसकी इस ललकार को सुनकर लक्ष्मण जी भगवान श्रीराम की आज्ञा लेकर उसका सामना करने चल पड़े । दोनों के बीच भयंकर द्वंद छिड़ गया, परंतु दोनों ही टस से मस होने के लिए तैयार नहीं थे । जब लक्ष्मण जी मेघनाद पर भारी पड़ने लगे, तब मेघनाद को एक युक्ति सूची और वह अदृश्य होकर माया युद्ध करने लगा । इस पर लक्ष्मण जी उस पर ब्रह्मास्त्र चलाने की आज्ञा भगवान श्रीराम से लेने लगे । परंतु भगवान श्रीराम ने इसे निति-विरुद्ध कहकर रोक दिया और फिर एक बार लक्ष्मण जी भगवान श्रीराम की आज्ञा लेकर दोबारा से मेघनाद के साथ युद्ध करने लगे ।
माया युद्ध में भी जब लक्ष्मण जी इंद्रजीत पर भारी पड़ने लगे और दूसरी ओर वानर-सेना राक्षस-सेना पर भारी पड़ने लगी, तो क्रोध में आकर उसने लक्ष्मण जी पर पीछे से शक्ति अस्त्र का प्रयोग किया और सारी वानर सेना पर ब्रह्मशिरा अस्त्र का प्रयोग किया, जिससे कि कई वानर सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए, जो कि लगभग पूरा का पूरा वानर वंश था (स्रोत श्रीमद् वाल्मीकि रामायण)। जब हनुमान जी वानर सेना को बचाने दौड़े तो इंद्रजीत ने उन पर भी वैष्णव अस्त्र का प्रयोग किया, परंतु उन्हें भगवान श्रीब्रह्मा जी का वरदान होने के कारण कुछ नहीं हुआ और वे तुरंत ही सारे वानर सैनिकों और लक्ष्मण जी को बचाने निकल पड़े । इधर दूसरी ओर मेघनाद घायल लक्ष्मण जी उठाने का प्रयत्न करने लगा, परंतु उन्हें हिला भी नहीं सका । इस पर हनुमान जी ने यह कहा कि वह उन्हें उठाने का प्रयत्न कर रहा है जो साक्षात भगवान शेषनाग अनन्त के अवतार हैं, उस जैसे पापी से नहीं उठेंगे। इतना कहकर उन्होंने मेघनाद पर प्रहार किया जिससे मेघनाथ दूर जाकर गिरा और हनुमान जी लक्ष्मण जी को बचा कर ले आए । उसके बाद सुषेण वैद्य के कहने पर हनुमान जी संजीवनी बूटी ले आए जिससे लक्ष्मण जी का उपचार हुआ और वे बच गए ।
 
जब रावण को यह पता चला के लक्ष्मण जी सकुशल है तो इस बार उसने फिर से इंद्रजीत को यह आदेश दिया कि वह तुरंत ही माता निकुंभला का तांत्रिक यज्ञ करे और उनसे वह दिव्य रथ प्राप्त करें । जब गुप्तचरों से इस बात का विभीषण जी को पता चला तो उन्होंने तुरंत ही भगवान श्री राम को सारी सूचना दी । भगवान श्री राम ने विभीषण जी को आदेश दिया कि वह तुरंत ही उसका यज्ञ भंग कर दें । विभीषण जी की सहायता से, एक गुप्त मार्ग से सभी वानर सैनिक उस गुफा में पहुंच गए जहां पर इंद्रजीत यज्ञ कर रहा था । उस गुफा में घुस कर वानर सैनिकों ने उसका यज्ञ भंग कर दिया और उसे बाहर निकलने पर विवश कर दिया । क्रोधित इंद्रजीत ने जब देखा विभीषण जी वानर सेना को लेकर के आए हैं तो क्रोध में आकर उसने विभीषण जी पर यम-अस्त्र का प्रयोग किया । परंतु यक्षराज कुबेर ने पहले ही लक्ष्मण जी को उसकी काट बता दी थी । लक्ष्मण जी ने उसी का प्रयोग करके यम- अस्त्र को निस्तेज कर दिया । इस पर इंद्रजीत को बहुत क्रोध आया और उसने एक बहुत ही भयानक युद्ध लक्ष्मण जी से आरंभ कर दिया, परंतु उसमें भी जब लक्ष्मण जी इंद्रजीत पर भारी हो गए तो उसने अंतिम तीन महा अस्त्रों का प्रयोग किया जिन से बढ़कर कोई दूसरा अस्त्र इस सृष्टि में नहीं है । सबसे पहले उसने ब्रह्मांड अस्त्र का प्रयोग किया । इस पर भगवान ब्रह्मा जी ने उसे सावधान किया की यह नीति विरुद्ध है, परंतु उसने ब्रह्मा जी की बात ना मानकर उसका प्रयोग लक्ष्मण जी पर किया । परिणाम स्वरूप ब्रह्मांड अस्त्र लक्ष्मण जी को प्रणाम करके निस्तेज होकर लौट आया । फिर उसने लक्ष्मण जी पर भगवान शिव का पाशुपतास्त्र प्रयोग किया परंतु वह भी लक्ष्मण जी को प्रणाम करके लुप्त हो गया । फिर उसने भगवान विष्णु का वैष्णव अस्त्र लक्ष्मण जी पर प्रयोग किया परंतु वह भी उनकी परिक्रमा करके लौट आया ।
 
 
 
अब इंद्रजीत समझ गया लक्ष्मण जी एक साधारण नर नहीं स्वयं भगवान का अवतार है और वह तुरंत ही अपने पिता के पास पहुंचा और उसने सारी कथा का व्याख्यान दिया । परंतु रावण तब भी नहीं माना और उसने फिर से इंद्रजीत का युद्ध भूमि में भेज दिया । इंद्रजीत ने यह निश्चय किया यदि पराजय ही होनी है भगवान के हाथों वीरगति को प्राप्त होना तो सौभाग्य की बात है । और उसने फिर एक बार फिर एक महासंग्राम आरंभ किया । बड़ा भयंकर युद्ध हुआ । भगवान श्रीराम जी ने लक्ष्मण जी को पहले ही समझा दिया था की इंद्रजीत एकल पत्नी व्रत धर्म का कठोर पालन कर रहा है । इस कारण से उन्हें उसका वध करते समय इस बात का ध्यान रखना होगा की इंद्रजीत का शीश कटकर भूमि पर ना गिरे अन्यथा उसके गिरते ही ऐसा विस्फोट होगा की सारी सेना उस विस्फोट में समा कर नष्ट हो जाएगी । इसीलिए अंत में लक्ष्मण जी ने भगवान श्रीराम जी का नाम लेकर एक ऐसा बाण छोड़ा जिससे इंद्रजीत के हाथ और शीश कट गए और उसका शीश कटकर भगवान श्रीराम जी के चरणों में पहुंच गया ।

वानरराज बाली (Vaanar Raaj Baali)


|| जय सिया राम || 



| |  वानरराज बाली  | | 


 
 
वानरराज बाली और सुग्रीव दोनों ही भाई थे | बाली किष्किंधा का राजा था तथा इंद्र का पुत्र था | भगवान विष्णु के अवतार श्री राम ने उसका वध करके उसका उद्धार किया तथा वानरलोक में सुग्रीव को राजा बनाकर धर्म की स्थापना में अपना योगदान दिया |  बाली की पत्नी का नाम तारा था तथा उसके पुत्र का नाम अंगद था | बाली को  अपने पिता इंद्रदेव से एक दिव्य स्वर्णहार प्राप्त हुआ था जो ब्रह्मा जी ने अभिमंत्रित  करके इंद्रदेव को दिया था | उस स्वर्ण हार को पहनकर बाली जब भी किसी शत्रु के सामने जाता था तो उसके शत्रु की शक्ति क्षीण हो जाती थी तथा आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी | बाली भी रावण की तरह ही परम पराक्रमी और बलशाली होने के साथ-साथ अभिमान या दुराचारी था | एक बार उसने तो दुंदुभि नामक राक्षस का वध करके उसके शव को हवा में उछाल कर दूर फेंका | राक्षस शव के रक्त की कुछ बूंदें महर्षि मतंग के आश्रम में गिरी जो ऋषिमुख पर्वत में स्थित था | क्रोधित हो मतंग ऋषि ने बाली को शाप दिया कि उनके आश्रम के एक योजन के दायरे में अगर बाली आएगा तो वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा|  एक बार छली कपटी रावण ने देव मुनि नारद के भड़काने पर बाली पर पीछे से वार किया, किंतु बाली ने रावण को अपनी पूंछ में लपेटकर उसे बगल में दबा दिया तथा विश्व भर में घुमाता रहा ताकि सबको दिखा सकी रावण से डरने की जरूरत नहीं है  केवल बाली ही सर्वशक्तिशाली है | रावण ने अपनी हार मानकर बाली से क्षमा मांगी तथा मित्रता का हाथ बढ़ाया और बाली ने स्वीकार कर लिया | इस तरह दोनों दुराचारी और अभिमानी  एक हो गए |

King Janaka's guru was Ashtavakra. King Janaka was a spiritual and knowledgeable of the great Vedas. The conversation between King Janaka and Guru Ashtavakra is called the Ashtavakra Gita. Only after this great conversation, King Janak got answers to the questions of his inquisitive mind and attained enlightenment. Mithila was very lucky to have a ruler like King Janak. King Janaka loved Rama like Sita ji. Bali, like Ravana, was arrogant or vicious as well as being extremely powerful and powerful. Once he slaughtered a demon named Dundubhi and threw his body away in the air. A few drops of blood of the demon corpse fell in the ashram of Maharishi Matang, which was located in Rishimukh mountain. Enraged, Matang Rishi cursed Bali that if Bali comes within the scope of a plan of his ashram, he will die. Once the fraudulent Ravana attacked Bali on the instigation of Dev Muni Narada, but Bali wrapped Ravana in his tail and pressed him in the side and rotated around the world to show everyone that there is no need to fear Ravana. Only Bali is omnipotent. Ravana, accepting his defeat, apologized to Bali and extended a hand of friendship and Bali accepted. In this way both the vicious and arrogant became one.
 
 
दुंदुभि के वध के बाद के कुछ समय बाद उसके भाई मायावी ने बाली को ललकारा | दोनों में घनघोर युद्ध हुआ तथा मायावी  खुद को  पराजित होता देख भाग खड़ा हुआ , बाली उसे कहां छोड़ने वाला था | बाली भी दौड़ पड़ा  उसके पीछे पीछे और सुग्रीव बाली के पीछे पीछे भागे |  मायावी राक्षस डरकर एक गुफा में घुस गया तथा बाली ने अपने छोटे भाई सुग्रीव को आदेश दिया कि जब तक मैं बाहर ना आ जाऊं , तुम इस गुफ़ा के द्वार की रखवाली करना|  बाली गुफा में राक्षस को मारने चला गया और सुग्रीव अपने बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए भाग खड़े रहा | खड़े खड़े सुग्रीव पूरे एक साल तक गुफा के द्वार पर खड़ा इंतजार करता रहा 1फिर एक दिन के गुफा में उसे चीख सुनायी दी तथा रक्त की धारा अंदर से बाहर तक आई , सुग्रीव को लगा की उस मायावी राक्षस ने छल से बाली  भैया को मार दिया है| अब अगर मायावी राक्षस बाहर आ गया तो वह भी मारा जाएगा यह सोचकर सुग्रीव ने गुफा का मुंह पत्थर से बंद कर दिया|  वापस आकर जब उसने सभी परिवार जनों को यह बात बताई तो सबने उसे किष्किंधा का राजा बन जाने को कहा| राज्याभिषेक के समय ही बाली वापस आ गया और सुग्रीव का राजतिलक होता देख क्रोध में उसे पीटने लगा|  सुग्रीव ने बहुत समझाया पर बाली कहां मानने वाला था | बाली ने सुग्रीव को मारने की कोशिश की तो सुग्रीव वहां से भागकर ऋषिमुख पर्वत पर जाकर रहने लगा | मतंग मुनि के शाप के कारण वहां नहीं जा सकता था लेकिन दुराचारी बाली ने सुग्रीव की पत्नी रुमा को जबरदस्ती अपनी पत्नी बना लिया | रावण के समान बाली भी पराई स्त्रियों का हरण कर लेता था उसका वध भी बहुत ही जरूरी था | सुग्रीव ऋषि मुख पर्वत पर अपने कुछ मंत्रियों, हनुमान जी तथा जामवंत आदी के साथ रहने लगे | 
 
 Shortly after Dundubhi's slaughter, her brother Mayavi challenged Bali. A fierce battle ensued between the two and the elusive, seeing himself defeated, ran away, where was Bali to leave him. Bali also ran after him and Sugriva ran behind Bali. Fearing the elusive demon, he entered a cave and Bali ordered his younger brother Sugriva to guard the gate of this cave until I come out. Bali went to kill the demon in the cave and Sugriva kept running away, following the orders of his elder brother. Sugriva stood and waited at the entrance of the cave for a whole year. Then one day he heard a scream in the cave and a stream of blood came from inside to outside, Sugriva felt that the elusive monster killed Bali Bhaiya with deceit. Is Now if the elusive monster comes out, thinking that he will be killed, Sugriva closed the mouth of the cave with stone. When he came back and told this to all the family members, everyone asked him to become the king of Kishkindha. At the time of the coronation, Bali returned and after seeing Sugriva's coronation, he started beating him in anger. Sugriva explained a lot but where was Bali supposed to be? When Bali tried to kill Sugriva, Sugriva ran away from there and started living on Mount Rishimukh. Due to the curse of Matang Muni, he could not go there, but the vicious Bali forced Sugriva's wife Ruma to be his wife. Like Ravan, Bali also killed foreign women, her slaughter was also very important. Sugriva lived with some of his ministers, Hanuman ji and Jamwant Aadi, on the Rishi Mukh mountain.
 
एक बहुत ही रोचक प्रसंग बाली और भक्त शिरोमणि हनुमान जी के मध्य घटित हुआ उस का संक्षिप्त वर्णन  है :-
 
 A very interesting incident happened between Bali and devotee Shiromani Hanuman ji is a brief description of that: -
एक बार मदमस्त हाथी की भांति अपनी शक्ति के मद में चूर बाली वनों में घूम रहा था तब उसने हनुमान जी को देखा जो राम का नाम जाप करने में लगे हुए थे | घमंडी बाली ने हनुमान जी से कहा किस का जप करते रहते हो ,मैं ही सबसे शक्तिशाली हुँ किसी दिन बुला लाओ अपने प्रभु राम को उन्हें भी देखूं लूंगा बस इतना सुनते ही हनुमान जी ने कहा कि पहले प्रभु के भक्त को हरा कर दिखाओ तब उनको ललकारना | तय हुआ की दोनों में युद्ध होगा तो  युद्ध के ठीक पहले ब्रह्मा जी हनुमान जी के पास गए और बोले कि आप तो बहुत ही शांतिप्रिय भक्ति में लीन रहने वाले महाबली हो आपको बाली से युद्ध करने की आवश्यकता नहीं, वैसे भी उसके पास स्वर्णहार है जिस से बाली सामने वाले की आधी  शक्ति छीन लेता है  |  हनुमान जी बोले मेरे बारे बाली कुछ कहता तो कोई बात नहीं थी पर उसने मेरे प्रभु के बारे में अपशब्द कहे हैं इस अवस्था में अगर मैंने उसको सबक सिखाया तो मेरे प्रभु और मेरा अपयश होगा | ब्रह्मा देव ने समझ लिया की अब बाली की खैर नहीं और उनके द्वारा अभिमंत्रित स्वर्णहार भी निष्फल ना होजाये | कुछ विचारकर ब्रह्मा जी ने  कहा कि आप अपनी शक्ति का दसवां भाग लेकर उसके सामने जाइएगा और तथा बाकी शक्ति अपने प्रभु को अर्पण  कर दीजिए|  बजरंगबली ने ऐसा ही किया अपनी शक्ति का दसवां भाग अपने प्रभु भगवान् राम को अर्पण करके बाली के सामने पहुंचे | युद्ध शुरू होते ही बाली ने उनकी दसवीं का आधा भाग याने की पांचवा भाग अपने शरीर में खींचना शुरू किया किन्तु बाली हनुमान जी की शक्ति का पांचवा भाग भी सहन कर सका | हनुमान जी की शक्ति का अंश बाली में प्रविष्ट होते ही उसके शरीर में कंपन होने लगा, नसें फटने सी लगी, सर घूमने लगा तब उसने ब्रह्मा जी को पुकारा कि प्रभु आप का वरदान विफल क्यों हो रहा है? यह मुझे अपनी पीड़ा क्यों हो रही है? आपका वरदान विफल कैसे हो सकता है तब ब्रह्माजी प्रकट हुए उन्होंने अभिमानी बाली को समझाया कि बाली तुम शक्तिशाली होते हुए भी हनुमान जी की शक्ति को धारण नहीं कर सकते उनकी शक्तियां अनंत है| तुम इस योग्य नहीं की हनुमान जी की शक्ति का तिनका भी सह सको वो तो तुम्हारे प्राणों की रक्षा हेतु ही सिर्फ दसवां भाग ही बजरंग बलि धारण किये हुए हैं | अब  तुरंत यहां से दूर चले जाओ वरना तुम्हारे प्राण संकट में सकते हैं ब्रह्मा जी की बात सुनते ही बाली तुरंत वहां से भाग गया | 

Once, like a mad elephant, roaming in the Chur Bali forests under his power, he saw Hanuman ji, who was engaged in chanting the name of Rama. The arrogant Bali said to Hanuman ji that you keep chanting, I am the most powerful one day I will call my lord Rama to see him too. Just after listening to this, Hanuman ji said that first show the Lord's devotee by defeating him. Shout. It was decided that if there would be war between the two, Brahma Ji went to Hanuman ji just before the war and said that you are a Mahabali, who is living in very peaceful devotion. Takes away half the power of the front. Hanuman ji said that there was nothing to say about Bali to me, but he has said abusive words about my lord, in this stage if I taught him a lesson, then my lord and I will be in love. Brahma Dev understood that now Bali is not well and the goldsmiths invited by him should not fail. After some thought, Brahma Ji said that you will take one tenth of your power and go before him And offer the rest of the power to your lord. Bajrangbali did this by offering one-tenth of his power to his lord Lord Rama and reached in front of Bali. As soon as the war started, Bali started to draw half of his tenth in his body, but Bali could not bear even a fifth of Hanuman's power. As part of the power of Hanuman ji, his body started vibrating as soon as he entered Bali, the veins started bursting, the head started to rotate, then he called Brahma Ji, why is Lord's blessing failing? Why is this my pain? How could your boon fail, then Brahmaji appeared and explained to the arrogant Bali that Bali, despite being powerful, you cannot hold the power of Hanuman ji, his powers are infinite. You are not able to bear the straw of Hanuman's power, he is wearing only one tenth part of Bajrang sacrifice to protect your life. Now immediately go away from here or else your life may come in trouble, Bali immediately ran away from there on hearing Brahma ji.
 
किष्किंधा काण्ड के अनुसार भगवान् राम ने बाली के द्वारा प्रताड़ित 
सुग्रीव से मित्रता की | प्रभु राम के आश्वासन देने पर वह अपने मित्र की सहायता हेतु बाली का वध करेंगे , सुग्रीव ने बाली को ललकारा | बालि किष्किंधा नगरी के बाहर आया दोनों में घमासान युद्ध हुआ क्योंकि दोनों भाइयों का मुख् तथा शरीर एक सा था  इसी असमंजस में श्री राम जी ने बाण नहीं चलाया | बाली से अपनी जान बचाकर सुग्रीव घायलावस्था में प्रभु  श्री राम जी के पास गया और बोला प्रभु आपने ऐसा क्यों किया ? श्री राम जी ने जैसे ही सुग्रीव के सर पर हाथ रखा सुग्रीव के सारे जख्म भर गए तथा उसका  शरीर फिर से वज्र के समान हो गया | राम जी ने उसको दोबारा से युद्ध के लिए  बोला तथा लक्ष्मण जी द्वारा सुग्रीव को पुष्पमाला पहना दी ताकि दोबारा कोई संदेह ना हो | जब बाली ने दोबारा युद्ध सुग्रीव की ललकार सुनी तो उसके क्रोध का ठिकाना ना रहा |  सुग्रीव को दोबारा ललकारते हुए जानकर बाली की पत्नी तारा को शंका हुई | तारा  को  इस बात का आभास  हो गया था कि सुग्रीव को राम का संरक्षण हासिल है क्योंकि अकेले तो सुग्रीव बाली को दोबारा लड़ने की हिम्मत कदापि नहीं करता | तारा ने बाली को सावधान किया और उसने कहा कि सुग्रीव को किष्किंधा का युवराज घोषित कर बाली उसके साथ संधि कर ले |  किंतु बाली ने सुग्रीव का पक्ष लेने पर तारा को दुत्कार दिया | दोनों भाइयों में द्वंद युद्ध शुरू हुआ लेकिन इस बार राम जी ने दोनों को पहचानने में कोई गलती नहीं करी और बाली पर पेड़ की ओट से बाण चला दिया | बाण ने बाली के हृदय को भेद दिया तथा बाली  धराशाई होकर जमीन पर गिर गया गया | भगवान राम ने बाली पर छुपकर बाण चलाया और बाली को यह बात अनुचित लगी तब बाली ने उनसे कारण पूछा | 

According to the Kishkindha scandal, Lord Ram tortured by Bali Befriended Sugriva. On assuring Lord Rama that he would kill Bali to help his friend, Sugriva challenged Bali. Bali came out of the city of Kishkindha, there was a fierce battle between the two brothers, because the face and body of the two brothers were the same, in the same confusion Shri Ram Ji did not shoot an arrow. After saving his life from Bali, Sugriva went to Lord Shree Rama Ji in an injured condition and said why did you do this? As soon as Shri Ram ji placed his hand on Sugriva's head, all the wounds of Sugriva were filled and his body again became like a thunderbolt. Ram ji again asked him for war and Laxman ji gave Sugriva a wreath so that there is no doubt again. When Bali again heard the war cry of Sugriva, there was no trace of his anger. Bali's wife Tara doubted knowing Sugriva again. Tara was aware that Sugriva enjoys the protection of Rama because Sugriva alone does not dare to fight Bali again. Tara cautioned Bali and he said that by declaring Sugriva as the crown prince of Kishkindha, Bali should make a treaty with him. But Bali rebuked Tara for favoring Sugriva. Duel war started between the two brothers, but this time Ram ji made no mistake in identifying both and fired an arrow with a tree on the earring. Baan pierced Bali's heart and Bali fell and fell to the ground. Lord Rama hid the arrow on Bali and Bali found this to be inappropriate, then Bali asked him the reason.

 
वानरराज बाली के प्रश्नों का प्रभु श्री राम जी धर्मानुसार उत्तर  दिया  ने तब प्रभु के प्रवचनों को सुनकर बाली का अभिमान टूटा और बाली को संतोष हुआ | बाली अपने अंतिम क्षणों में प्रभु की प्रभुता पहचान गया तथा प्रभु राम के चरणों में गिर पड़ा |बाली ने अपनी पत्नी तारा एवं पुत्र अंगद को भी भगवान राम का अनुसरण करने को कहा | 

Lord Rama answered the questions of Vanararaj Bali as per religion, then upon hearing the discourses of Lord, the pride of Bali was broken and Bali was satisfied. Bali recognized the sovereignty of the Lord in his last moments and fell at the feet of Lord Rama. Bali also asked his wife Tara and son Angad to follow Lord Rama.


 
 
बाली तथा श्री राम संवाद
 
 
बाली :- प्रभु आपने धर्म की रक्षा केलिए पृथ्वी पर अवतार लिया किन्तु मुझे इस तरह छिपकर क्यों मारा ? क्या यह धर्मविरुद्ध नहीं ?

Bali: Lord, you took incarnation on earth to protect religion, but why did I hide and hide me like this? Is this not unethical?
  
प्रभु श्री राम :- बाली अपनी मृत्यु शैया पर तुम वानर होकर धर्म-अधर्म की बात करते हो तो अचरज होता है|   जो भी तुम्हारी शक्ति है तुमने तपस्या या ज्ञान से अर्जित नहीं की अपितु अपने पिता इन्द्र से पाई है | वास्तविकता में धर्म क्या है तुम जैसा अभिमानी पशु क्या जाने जो अपने अनुज भाई सुग्रीव की पत्नी रूमा के साथ दुराचार कर चुका हो | तथा जहां तक छिपकर बाण चलाने का प्रश्न है पशु आखेट तो ऐसे ही किया जाता है और क्षत्रिय होने के कारण मैं ऐसा कर सकता हूँ | और सिर्फ तुम्हें मानने के लिए किष्किंदा के दूसरे वानरों की हत्या में नहीं करना चाहता था जो कि निर्दोष है| 
(यहाँ वास्तव में प्रभु नहीं जताना चाहते की वह कौन हैं उनका विचार था की यदि  इंद्र का वरदान मेरे सामने आने पर विफल हो जाता इसलिए मेरा सामने ना आना ही उचित है )

Prabhu Shri Ram: - When you talk about righteousness and unrighteousness on your deathbed, Bali is astonishing. Whatever your power is, you have not gained from austerity or knowledge, but from your father Indra. What is religion in reality, what can a proud animal like you, who has misbehaved with Ruma, the wife of his estranged brother Sugriva? And as far as the shooting of the arrow is concerned, the animal shooting is done in this way and I can do it because of being a Kshatriya. And just to believe you, I did not want to kill Kishkinda's other apes, which is innocent.
( Here Lord does not really want to show who he is. He thought that if Indra's boon fails when he comes in front of me, then it is only right that I do not come in front of him)

 
 
 बाली :- प्रभु मेरी तो आपसे कोई भी शत्रुता नहीं फिर आपने मुझे क्यों मारा ?

Bali: - Lord, there is no enmity with you, then why did you hit me?
 
  प्रभु श्री राम :- तुम्हारी  दुश्मनी मुझसे सीधी तरह से तो  नहीं लेकिन मेरे मित्र सुग्रीव से है इस प्रकार हे बाली मेरे मित्र का शत्रु भी मेरा शत्रु है | 

Prabhu Shri Ram: - Your enmity is not directly related to me, but my friend is from Sugriva, thus, O Bali, my friend's enemy is also my enemy.
 
 
बाली :- प्रभु मैं आपकी मदद कर सकता था सीता जी को ढूंढने के लिए आकाश पाताल एक कर देता | रावण क्या चीज है उसे तो मैं बगल में दबाकर पृथ्वी की परिक्रमा कर चुका हूं | मैं सुग्रीव से अधिक बलशाली हूँ तथा राजा हूँ |

Bali: - Lord, I could have helped you, to find Sita ji, Akash would have done one thing. I have revolved around the earth by pressing what is Ravan. I am stronger than Sugriva and I am the king. 
 
 
प्रभु श्री राम :- जो खुद किसी और की पत्नी का हरण और परायी स्त्रियों के साथ अनाचार करता हो उससे मैं अपनी पत्नी को पानी के लिए सहायता कैसे मांग सकता हूँ | रावण की भाँती तुम भी पथभ्रष्ट हो ऐसा मैं समझता हूं एक अधर्मी का साथ में कभी नहीं दे सकता ना ही उसका साथ ले सकता हूँ | सुग्रीव भले ही तुम्हारी तरह बलशाली नहीं किन्तु उसने कभी धर्म आचरण नहीं छोड़ा तो उससे तुम्हारी तुलना व्यर्थ है | 
 
Prabhu Shri Ram: - How can I ask my wife for help from someone who herself abducts someone else's wife and abuses them with foreign women. Like Ravan, you too are misguided, I understand that you can never support a wrongdoer or take him along. Even though Sugriva is not as powerful as you, but he has never given up his religious conduct, your comparison with him is meaningless.
 
 बाली :- प्रभु में तो वानर जाती से हूं मेरी खाल तथा मांस भी आप किसी काम का नहीं, तो मेरा वध क्यों करा ?

Bali: - I am a monkey from the forest, my skin and flesh are also of no use to you, so why kill me?
 
प्रभु श्री राम:- मैं क्षत्रिय हूँ तथा वन में पशुओं का आखेट करना मेरा अधिकार है और यह धर्म विरुद्ध भी नहीं क्योंकि तुम पशु ही हो |

Lord Shri Ram: - I am a Kshatriya and it is my right to hunt animals in the forest and it is not even against religion because you are an animal.
 
बाली :- प्रभु में आपकी प्रजा भी नहीं हूं फिर मुझे दंड देने का अधिकार आपको  नहीं है क्योंकि आप अयोध्या के राजा हैं किष्किंधा के नहीं  फिर आप मेरा वध कैसे कर सकते हैं ?

Bali: - I am not your subject even in God, then you do not have the right to punish me because you are the king of Ayodhya, not of Kishkindha, then how can you kill me?
 
प्रभु श्री राम:- इस भूलोक पर सूर्यवंश का ही राज्य है सूर्यवंश का राजा होने के नाते तथा रघुवंशियो की परम्परानुसार मेरा अधिकार है कि मैं जो भी यहां अधर्म करें मैं उसको दंड दूं हमारे राज्य की सीमा के बाहर  भी अगर कोई ऐसा अधर्म करता है तो भी अपने मित्र की रक्षा के लिए मैं उसका वध कर सकता हूँ | 

Prabhu Shri Ram: - On this land, only the kingdom of Suryavansh is being the king of Suryavansh and according to the tradition of Raghuvanshi, I have the right to punish whoever commits wrong here, even outside the limits of our state, if anyone commits such wrongdoing. Even then I can kill my friend to protect him.
 
 
विष्णु जी के अवतार राम जी ने वास्तव में बाली का वध करके उद्धार किया था | यहाँ तक की प्रभु ने अपने अगले अवतार में बाली को अवसर दिया की वह उनकी इसी प्रकार हत्या कर सके | द्वापर युग में भगवान् राम ने श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया तथा बाली ने भील रूप में उनकी हत्या की इस प्रकार भगवान हमें बताते हैं की मृत्युलोक में अपने कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है तथा कर्मफल से  मुक्ति का उपाए भगवान् के पास भी नहीं| कर्म चक्र सदा समय के चक्र समान चलता रहता है मनुष्य अपने वर्तमान जन्म में किये गए पाप को अपने अगले जन्म में या जन्मो में भुगतता ही है | यही विधि का विधान है इसलिए तो इस संसार में कर्मजाल से मुक्ति का कोई उपाय नहीं इसलिए भगवान् ने भगवद गीता में यही कहा है की कर्म किये जाओ और फल की चिंता में ना सोचो |  

Lord Rama, the incarnation of Vishnu, actually saved Bali by killing him. Even the Lord in his next incarnation gave an opportunity to Bali to kill him in this way. In the Dwapar Yuga, Lord Rama was born as Shri Krishna and Bali killed him in a Bhil form, thus God tells us that one has to bear the fruits of our deeds in the land of death and God does not even have the means to get rid of the results. The cycle of Karma goes on like the cycle of time, man always suffers the sin committed in his present life in his next life or in his births. This is the law of the law, so there is no way to get rid of the work in this world, therefore God has said in the Bhagavad-gītā that go do the deeds and do not think about the fruits.