रविवार, 26 जुलाई 2020

लव कुश (LOVE KUSH)

|| जय सिया राम || 
 



 

|| लव कुश ||
 
गुरु वाल्मीकि के आश्रम में माता सीता ने भगवान् राम के जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम गुरु वाल्मीकि ने कुश तथा लव रखा। गुरु वाल्मीकि जी के आश्रम में भगवान राम के दोनों पुत्रों ने शिक्षा ग्रहण की| गुरु वाल्मीकि जी के द्वारा ही उन्हें अस्त्र शस्त्र की विद्या प्राप्त हुई | बाल्य काल से ही लव कुश बड़े मेधावी छात्र थे | दोनों ने बड़ी लगन से रामायण अपने गुरु से सीखी और दोनों ही भगवान् राम के चरित्र से बड़े प्रभावित हुए , किन्तु माता सीता के त्याग को वो अनुचित मानते थे | दोनों ही इस सत्य से अनजान थे की उनकी माता जिन्हे वो वनदेवी के नाम से जानते हैं वास्तव में वही देवी सीता हैं और उनके पिता ही अयोधया के राजा रामचंद्र हैं | वालमीकि आश्रम में उन्होने बालयकाल में ही युद्ध एवं शास्त्र दोनों में कुशलता पा ली थी | उनकी कुशलता को देखकर गुरु वाल्मीकि जी ने उन्हें रामायण महाकाव्य का गुणगान करने के लिए अयोधया नगरी में जाने का आदेश दिया | 


लव और कुश ने अयोधया नगरी में जब रामायण का गुणगान किया तब अयोधया वासियों को बड़ा हर्ष हुआ किन्तु सीता माता के त्याग का प्रसंग आने पर सबकी आँखें भर आयी | नगरवासियों को अपनी गलती का बोध हो गया तथा उनके अश्रुओं ने इस भूल का प्रायश्चित भी किया | दोनों बालको की प्रसिद्धि जब राजमहल पहुंची तो माताओं ने और राजा राम ने उन्हें निंमंत्रण दिया की रामायण का गुणगान दोनों राजमहल में करें | उन दोनों के मुख से मधुर वाणी में रामायण का पाठ सुन सभी लोग हर्षित हो उठे | 



कुछ समय पश्चात राजा राम को गुरु वशिष्ठ ने परामर्श दिया की उन्हें अश्वमेध यज्ञ करना चाहिए | यज्ञ करने के लिए पति पत्नी दोनों को ही पूजा में बैठना होता है किन्तु माता सीता की अनुपस्थिति में यह संभव नहीं था | राजा राम को एक और विवाह करने के लिए कहा गया तो उन्होंने मर्यादा का पालन करते हुए और सीता जी के प्रति अपने प्रेम को सर्वोपरी मानते हुए मना कर दिया | तब सीता जी की स्वर्ण प्रतिमा बनवाई गयी और यज्ञ किया गया | 


अवश्मेध यज्ञ का घोड़ा जहाँ भी जाता वहां के राजा भगवान् राम के अधीन होते गए और ढेरों भेंट भी अर्पण करते गए किन्तु वापसी में ही उस घोड़े को लव और कुश ने आश्रम के समीप पकड़ के एक पेड़ से बाँध दिया | सेनापति ने बालको से घोड़े को छोड़ने का आग्रह किया किन्तु उन्होंने घोड़े पर लिखी चुनौती को स्वीकार करते हुए ऐसा करने से मना कर दिया | सेना से युद्ध में लव कुश ने ऐसा पराक्रम दिखाया की सेना भाग खड़ी हुई | भरत , लक्षमण तथा शत्रुघ्न बारी बारी से इन बालको से परास्त हो गए जो वास्तव में उनके चाचा थे | राम जी ने बजरंग बलि को युद्ध के लिए भेजा | बजरंग बलि ने उन्हें देखते ही पहचान लिया की इन बालकों का प्रभु राम से क्या सम्बन्ध है  और उन्होंने लव कुश पर कोई प्रहार नहीं किया | लव कुश ने बजरंग बलि को खेल खेल में बांध दिया | तब भगवान् राम उन बालको के समक्ष पहुंचे तभी वहां माता सीता भी आ गयी और उन्होंने लव कुश को बताया की जिनसे तुम युद्ध करने वाले हो वास्तव में वही उनके पिता हैं | लव कुश अपने पिता के चरणों में गिर गए और क्षमा मांगने लगे भगवान् राम ने उन्हें गले लगा लिया | 

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बुधवार, 22 जुलाई 2020

जटायु (Jatayu)

 || जय सिया राम  ||
 


|| वीर जटायु ||  
 

 
जटायु रामायण का एक प्रसिद्ध पात्र है। जब रावण सीता का हरण करके लंका ले जा रहा था तो जटायु ने सीता को रावण से छुड़ाने का प्रयत्न किया था। इससे क्रोधित होकर रावण ने उसके पंख काट दिये थे जिससे वह भूमि पर जा गिरा। जब राम और लक्ष्मण सीता को खोजते-खोजते वहाँ पहुँचे तो जटायु से ही सीता हरण का पूरा विवरण उन्हें पता चला। उल्लेखनीय है कि रामायण में सम्पाति और जटायु को किसी पक्षी की तरह चित्रित नहीं किया गया है, लेकिन रामचरित मानस में यह भिन्न है। रामायण अनुसार जटायु गृध्रराज थे और वे ऋषि ताक्षर्य कश्यप और विनीता के पुत्र थे। गृध्रराज एक गिद्ध जैसे आकार का पर्वत था।   राम के काल में सम्पाती और जटायु नाम के दो गरूड़ थे। ये दोनों ही देव पक्षी अरुण के पुत्र थे। दरअसल, प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे।

Jatayu is a famous character of Ramayana. When Ravana was taking Sita away to Lanka, Jatayu tried to free Sita from Ravana. Enraged by this, Ravana had cut his wings so that he fell to the ground. When Rama and Lakshmana reached there searching for Sita, they came to know the full details of Sita Haran from Jatayu itself. It is noteworthy that Sampati and Jatayu are not depicted like any bird in the Ramayana, but it is different in the Ramcharit Manas. According to Ramayana, Jatayu was Gridhraj and he was the son of sages Taksharya Kashyapa and Vinita. Gridhraj was a vulture-like mountain. There were two Garuda named Sampati and Jatayu during Rama's time. Both of them were sons of the god bird Arun. In fact, Prajapati Kashyap's wife Vinata had two sons - Garuda and Arun. Garudji went to the shelter of Vishnu and Arunji became the charioteer of Surya. Sampati and Jatayu were the sons of Arun.
 
 पुराणों के अनुसार सम्पाती और जटायु दो गरुढ़ बंधु थे। सम्पाती बड़ा था और जटायु छोटा। ये दोनों विंध्याचल पर्वत की तलहटी में रहने वाले निशाकर ऋषि की सेवा करते थे और संपूर्ण दंडकारण्य क्षेत्र विचरण करते रहते थे। एक ऐसा समय था जबकि मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में गिद्ध और गरूढ़ पक्षियों की संख्या अधिक थी लेकिन अब नहीं रही। जटायु और सम्पाती की होड़ : बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मंडल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लंबी उड़ान भरी। सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर जटायु जलने लगे तब सम्पाति ने उन्हें अपने पक्ष ने नीचे सुरक्षित कर लिया, लेकिन सूर्य के निकट पहुंचने पर सूर्य के ताप से सम्पाती के पंख जल गए और वे समुद्र तट पर गिरकर चेतनाशून्य हो गए।

According to the Puranas, Sampati and Jatayu were two Garuda brothers. Sampati was big and Jatayu was small. Both of these served Nishakar Rishi living in the foothills of Vindhyachal mountain and wandered the entire Dandakaranya region. There was a time when vulture and Garuda birds were more in Madhya Pradesh-Chhattisgarh but no more. Jatayu and Sampati competition: In childhood, Sampati and Jatayu took a long flight with the aim of touching the solar system. Disturbed by the unbearable intensity of the Sun, Jatayu started burning, then the property secured him down by his side, but on reaching near the Sun, Sampati's wings burned by the heat of the Sun and he fell on the beach and became ill-treated.

चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्री सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया।  राजा दशरथ के मित्र थे जटायु : जब जटायु नासिक के पंचवटी में रहते थे तब एक दिन आखेट के समय महाराज दशरथ से उनकी मुलाकात हुई और तभी से वे और दशरथ मित्र बन गए। वनवास के समय जब भगवान श्रीराम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे, तब पहली बार जटायु से उनका परिचय हुआ।
 
The sage named Moon treated him with pity and was blessed by the sight of the monkeys searching for Shri Sitaji in Treta to freeze their wings again. Jatayu was a friend of King Dasharatha: When Jatayu lived in the Panchavati of Nashik, he met Maharaja Dasaratha at one time during the game and since then he and Dasaratha became friends. At the time of exile, when Lord Shri Ram started living in Panchvati by making a deciduous, he was first introduced to Jatayu.
 
जटायु का बलिदान : रावण जब सीताजी का हरण कर लेकर आकाश में उड़ गया तब सीताजी का विलाप सुनकर जटायु ने रावण को रोकने का प्रयास किया लेकिन अन्त में रावण ने तलवार से उनके पंख काट डाले। जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े और रावण सीताजी को लेकर लंका की ओर चला गया। सीता की खोज करते हुए राम जब रास्ते से गुजर रहे थे तो उन्हें घायल अवस्था में जटायु मिले। जटायु मरणासन्न थे। जटायु ने राम को पूरी कहानी सुनाई और यह भी बताया कि रावण किस दिशा में गया है। जटायु के मरने के बाद राम ने उसका वहीं अंतिम संस्कार और पिंडदान किया।

Jatayu's Sacrifice: When Ravana took away Sitaji and flew into the sky, upon hearing Sitaji's moan, Jatayu tried to stop Ravana but in the end Ravana cut his wings with a sword. Jatayu collapsed on the ground and Ravana went towards Lanka with Sitaji. While Ram was going through the path while searching for Sita, he found Jatayu in an injured state. Jatayu was dead. Jatayu narrated the whole story to Rama and also told in which direction Ravana has gone. After Jatayu's death, Rama performed his last rites and pindadan there.

छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में जटायु का मंदिर है। मान्यता अनुसार यह वह स्थान है जब सीता का अपहरण कर रावण पुष्पक विमान से लंका जा रहा था, तो सबसे पहले जटायु ने ही रावण को रोका था। राम की राह में जटायु पहले शहीद थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। जटायु की राम से पहली मुलाकाता पंचवटी (नासिक के पास) हुई थी जहां वे रहते थे। लेकिन उनकी मृत्यु दंडकारण्य में हुई।

There is a temple of Jatayu in Dandakaranya, Chhattisgarh. According to belief, this is the place when Sita was kidnapped and Ravana was being carried by Pushpak Vimana, then Jatayu was the first to stop Ravana. Jatayu was the first martyr in the path of Rama. According to local belief, Ravana and Jatayu fought in the sky of Dandakaranya and some parts of Jatayu fell in Dandakaranya. Jatayu's first encounter with Rama was at Panchavati (near Nashik) where he lived. But he died in Dandakaranya.
 
जटायु का तप स्थल जटाशंकर : मध्यप्रदेश के देवास जिले की तहसील बागली में 'जटाशंकर' नाम का एक स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि जटायु वहां तपस्या करते थे। कुछ लोगों के अनुसार यह ऋषियों की तपोभूमि भी है और सबमें बड़ी खासियत की यहां स्थित पहाड़ के ऊपर से शिवलिंग पर अनवरत जलधारा बहती हुई नीचे तक जाती है जिसे देखकर लगता है कि शिव की जटाओं से धारा बह रही है। संभवत: इसी कारण इसका नाम जटा शंकर पड़ा होगा। बागली के पास ही गिदिया खोह है जहां कभी हजारों की संख्‍या में गिद्ध रहा करते थे। दुर्गम जंगल से घिरा यह क्षेत्र हमें मंत्र मुग्ध कर देता है।
 
Jatashankar, the austerity site of Jatayu: There is a place named 'Jatashankar' in Tehsil Bagali of Dewas district of Madhya Pradesh, about which Jatayu used to do penance there. According to some people, it is also the taphobhoomi of the sages and among them, the main feature of this is the continuous flow of water from the top of the mountain to the bottom of the Shivalinga which goes down to the bottom, which seems that the stream is flowing from the jaws of Shiva.
 
यहां पहुंचते ही सच में ही लगता है कि हम किसी ऋषि की तपोभूमि में आ गए हैं। किंवदंती हैं कि जटायु के बाद यह स्थल कई ऋषियों का तप स्थल रहता आया है। बागली के बियाबान जंगल में बसे इस स्थान पर वैसे तो कम ही लोग आते-जाते हैं लेकिन यहां हर श्रावण मास में भजन, पूजन और भंडारे का आयोजन किया जाता है।
 
Jatashankar, the austerity site of Jatayu: There is a place named 'Jatashankar' in Tehsil Bagali of Dewas district of Madhya Pradesh, about which Jatayu used to do penance there. According to some people, it is also the taphobhoomi of the sages and among them, the main feature of this is the continuous flow of water from the top of the mountain to the bottom of the Shivalinga which goes down to the bottom, which seems that the stream is flowing from the jaws of Shiva.