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बुधवार, 10 जून 2020

विभीषण (Vibhishana )

|| जय सिया राम || 
 
 
 
विभीषण 

घर का भेदी लंका ढाए अर्थात विभीषण ?? क्या विभीषण सच में इस अनादर का पात्र है यह बात समझने एवं जानने योग्य है | विभीषण को कुलद्रोही और आस्तीन का साँप कहना कहाँ तक उचित है | विभीषण तो प्रभु भक्त था तो भी जगत में उसका अनादर क्यूँ ?

Piercing the house in Lanka ie Vibhishan ?? Is Vibhishan really worthy of this disrespect, it is worth understanding and knowing. To what extent is it appropriate to call Vibhishan as a pillar and sleeve snake? Vibhishan was a devotee even if he was disrespected in the world.

रामायण में विभीषण राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी राम भक्त थे। राक्षस रावण के छोटे भाई विभीषण बचपन से ही नारायण भक्त थे, जब तीनों भाइयों रावण, कुंभकरण और विभीषण ने ब्रह्मा जी की तपस्या की तो विभीषण ने उनसे भक्ति का आशीर्वाद मांगा। रावण के सानिध्य  में रहने के बाद भी उन्होंने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी।विभीषण राक्षस होते हुए भी प्रभु की भक्ति में लीन रहते थे | तपस्या में जहाँ बाकि भाइयों ने शक्तियाँ मांगी विभीषण ने प्रभु भक्ति माँगी , इसलिए ही उन्हे प्रभु भक्ति का फल मिला और श्री राम प्रभु ने बिना मांगे एक क्षण में उन्हें लंका का राजा बना दिया|  

Rama was a devotee even after being born in the Vibhishana demon clan in Ramayana. Vibhishan, the younger brother of the demon Ravana, was a Narayan devotee since childhood, when all the three brothers Ravana, Kumbhakaran and Vibhishana did penance to Brahma Ji, Vibhishana sought blessings of devotion from him. Even after being in the company of Ravana, he did not give up his devotion. Despite being a demon, he used to indulge in devotion to the Lord. In austerities where the remaining brothers asked for powers, Vibhishana asked for devotion to God, that is why he got the fruits of Bhakti and Shri Ram Prabhu made him king of Lanka in an instant without asking.
 

रावण ने जब सीता जी का हरण किया, तब विभीषण ने परायी स्त्री के हरण को महापाप बताते हुए सीता जी को श्री राम को लौटा देने की उसे सलाह दी। किन्तु रावण ने उस पर कोई ध्यान न दिया। श्री हनुमान जी सीता की खोज करते हुए लंका में आये। उन्होंने श्री रामनाम से अंकित विभीषण का घर देखा। घर के चारों ओर तुलसी के वृक्ष लगे हुए थे। सूर्योदय के पूर्व का समय था, उसी समय श्री राम-नाम का स्मरण करते हुए विभीषण जी की निद्रा भंग हुईं। राक्षसों के नगर में श्री रामभक्त को देखकर हनुमान जी को आश्चर्य हुआ। दो रामभक्तों का परस्पर मिलन हुआ। श्री हनुमान जी का दर्शन करके विभीषण भाव विभोर हो गये। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि श्री रामदूत के रूप में श्री राम ने ही उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया है। श्री हनुमान जी ने उनसे पता पूछकर अशोक वाटिका में माता सीता का दर्शन देकर कृतार्थ किया है। श्री हनुमान जी ने उनसे पता पूछकर अशोकवाटिका में माता सीता का दर्शन किया। अशोकवाटिका विध्वंस और अक्षयकुमार के वध के अपराध में रावण हनुमान जी को प्राणदण्ड देना चाहता था। उस समय विभीषण ने ही उसे दूत को अवध्य बताकर हनुमान जी को कोई और दण्ड देने की सलाह दी। रावण ने हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने की आज्ञा दी और अशोक वाटिका तथा विभीषण के मन्दिर समान घर को छोड़कर सम्पूर्ण लंका जलकर राख हो गयी। भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। विभीषण ने पुन: सीता को वापस करके युद्ध की विभीषिका को रोकने की रावण से प्रार्थना की। इस पर रावण ने इन्हें लात मारकर निकाल दिया। सभी राजदरबारी तथा मेघनाद हसने लगे तब विभीषण बोले की ये तुम नहीं तुम्हारा काल तुम्हारे सर पर चढ़ के हँस रहा है | अपनी माता कैकसी से परामर्श करने के पश्चात ये श्री राम के शरणागत हुए। श्री राम ने पहली ही भेंट में उन्हें लंकापति कहकर पुकारा तो वह आश्चर्य चकित रह गए | प्रभु ने अपने भक्त को पहली नज़र में पहचाना तथा भक्त ने भी जाना की वह कितने कृपालु हैं | विभीषण ने अगर ऐसे दयालु स्वामी के लिए भातृद्रोह किया तो उसमे गलत क्या है | रावण ने तो लात मारकर खुद ही अपने भाई को निकाला फिर तो पहला दोष रावण का ही है | रावण ही क्या उसके भतीजे इंद्रजीत ने भी कभी अपने चाचा का सम्मान नहीं किया तथा लंका में सबने उसका तिरस्कार ही किया | ऐसे में अगर वह अधर्म को त्याग कर धर्म का साथ ना देता तो क्या करता |

एक सच्चा भक्त कब तक अपने प्रभु तथा उनकी भार्या सीता जी का अपमान सहता क्यूंकि विभीषण जैसे धर्मात्मा को तो भक्ति के सिवा कुछ आता ही नहीं था | एक राम भक्त का अपमान हमारे प्रभु का ही अपमान है लेकिन बहुत लोग अज्ञानवश ऐसा करते रहे हैं | 

When Ravana killed Sita, Vibhishan advised Sita to return Sita to Sri Rama, calling the alien woman's haranas a great sin. But Ravana paid no attention to him. Sri Hanuman ji came to Lanka searching for Sita. He saw the house of Vibhishana inscribed with Sri Ramnam. Tulsi trees were planted around the house. It was time before sunrise, at the same time Vibhishan ji's sleep was disturbed while remembering Shri Ram's name. Hanuman ji was surprised to see Shree Rambhakta in the city of demons. The two Rambhaktas got together. Vibhishan Bhav became enamored by seeing Shri Hanuman ji. It seemed to him that Shri Rama as Shri Ramdoot has shown his gratitude by giving him darshan. Shri Hanuman ji asked for his address and gave his gratitude by giving darshan of Mata Sita in Ashoka Vatika. Shri Hanuman Ji asked her address and saw Mata Sita in Ashokwatika. Ravana wanted to kill Hanuman ji in the crime of Ashokwatika demolition and the murder of Akshaykumar. At that time, Vibhishan advised him to punish Hanuman ji by telling him the messenger was impracticable. Ravana ordered Hanuman ji to set fire to the tail and the whole of Lanka became ashes by leaving the house like Ashoka Vatika and Vibhishan's temple. Lord Sri Rama marched on Lanka. Vibhishana again returned to Sita and prayed to Ravana to stop the catastrophe of the war. On this Ravana kicked them out. When all the courtiers and Meghnad started laughing, Vibhishan said that it is not you but your time is laughing by climbing on your head. After consulting with his mother Kaikasi, he took refuge in Shri Ram. Shri Rama called him as a Lankapati on the very first meeting, and he was surprised. God recognized his devotee at first sight and the devotee also knew how kind he is. If Vibhishan has committed treason to such a merciful master, what is wrong with him? Ravana kicked and pulled out his brother on his own, and then the first blame is for Ravana. Did Ravana not even his nephew Indrajit ever respect his uncle and everyone in Lanka despised him. In such a situation, what would he do if he did not renounce iniquity and support religion?
How long did a true devotee bear the insult of his lord and his gentleman Sita ji, because a god like Vibhishan did not know anything except devotion. Insulting a Ram devotee is an insult to our Lord, but many people have been doing this in ignorance


 
अनेक प्रकार से समय समय पर प्रभु राम की सहायता की तथा अपने अर्जित  भक्ति के वरदान के अनुरूप ही कार्य किये |विभीषण की पत्नी गन्धर्व कन्या सरमा थी और पुत्री का नाम त्रिजटा था | त्रिजटा अशोक वाटिका में मुख्य पद पर थी तथा अपने पिता की तरह राम भक्त थी | अशोक वाटिका में देवी सीता को कभी भी त्रिजटा ने हतोत्साहित नहीं होने दिया |  विभीषण का एक गुप्तचर था, जिसका नाम 'अनल' था। उसने पक्षी का रूप धारण कर लंका जाकर रावण की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया और इसकी सूचना भगवान श्रीराम को दी थी। विभीषण के गुप्तचरों ने ही इंद्रजीत के यज्ञ के बारे में राम-लक्ष्मण को अवगत कराया | लक्ष्मण विभीषण की अगुवाई में ही मेघनाद का वध कर सके | राम -रावण युद्ध के समय भी जब रावण के सर बार बार कट के फिर जुड़ जाने लगे तब विभीषण ने ही भगवान् राम को रावण की नाभि में अग्नि बाण मारने को कहा ताकि उसकी नाभि में मौजूद अमृत कुंड सूख जाए | रावण सपरिवार मारा गया। भगवान श्री राम ने विभीषण को लंका का नरेश बनाया और विभीषण भी भगवान् राम के साथ पुष्पक विमान में बैठ कर अयोध्या आए | भगवान् राम के राजतिलक में वह भी शामिल हुए | विभीषण जैसा निर्भीक राम भक्त और कौन होगा जो लंका में रहते हुए भी नारायण जाप में लगे रहते थे | रावण के दरबार में भी सत्य कहने से नहीं चुके यह तो रावण का अभिमान ही था जो उसे ले डूबा विभीषण तो एक निमित्त मात्र है | विभीषण ने वही किया जो एक भक्त को करना चाहिए था उसने पूर्ण समर्पण से भगवान् राम का साथ दिया | 

 In many ways, he helped Lord Rama from time to time and acted according to his gift of devotion. Vibhishan's wife Gandharva was the daughter of Sarma and daughter's name was Trijata. Trijata was in the main position in Ashoka Vatika and Ram was a devotee like her father. In the Ashoka Vatika, the Goddess Sita was never discouraged by the Trijata. Vibhishan had a detective named 'Anal'. Taking the form of a bird, he went to Lanka and discovered Ravana's defense system and military power and gave information to Lord Shri Ram. Vibhishan's spies informed Rama-Laxman about Indrajit's yajna. Lakshman was able to kill Meghnad under the leadership of Vibhishan. Even during the Rama-Ravana war, when Ravana's head started to be re-inserted again and again, Vibhishan asked Lord Rama to fire fire arrows in Ravana's navel so that the nectar pool in his navel would dry up. Ravana's family was killed. Lord Sri Rama made Vibhishan the king of Lanka and Vibhishan also came to Ayodhya with Lord Rama in a Pushpak plane. He also joined the coronation of Lord Rama. Who else would be a fearless Rama devotee like Vibhishan, who, while living in Lanka, used to be engaged in chanting Narayana. Even in the court of Ravana, who had not told the truth, it was Ravan's pride that took him away and Vibhishan is just an instrument. Vibhishan did what a devotee should have done, he supported Lord Rama with complete dedication.

रविवार, 7 जून 2020

कुंभकरण (Kumbhkarna)


||जय सिया राम || 
 
 
कुम्भकर्ण

कुम्भकर्ण ऋषि व्रिश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र तथा लंका के राजा रावण का छोटा भाई था। कुम्भ अर्थात घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण इसका नाम कुम्भकर्ण रखा गया था। यह विभीषण और शूर्पनखा का बड़ा भाई था। बचपन से ही इसके अंदर बहुत बल था, तथा खाता इतना था  कि एक बार में यह जितना भोजन करता था उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे। कुम्भकर्ण अपनी निद्रा और अत्‍यधिक भोजन करने की प्रवृत्ति के लिए जाना जाता था| रामायण के अनुसार कुंभकरण भले ही दैत्‍य था, लेकिन वह बेहद बुद्धिमान, बहादुर धर्मज्ञाता , बलवान और निष्‍ठावान था. यही वजह है कि देवताओं के राजा इंद्र को  भी उसकी शक्तियों से डर लगता था | खर, दूषण, कुम्भिनी, अहिरावण और कुबेर कुंभकरण के सौतेले भाई थे।कुंभकर्ण की पत्नी वरोचन की कन्या वज्रज्वाला थीं। उसकी एक दूसरी पत्नी का नाम कर्कटी था। कुंभपुर के महोदर नामक राजा की कन्या तडित्माला से भी कुंभकर्ण का विवाह हुआ। कुंभकर्ण के एक पुत्र का नाम मूलकासुर था जिसका वध माता सीता ने किया था। दूसरे का नाम भीम था। कहते हैं कि इस भीम के कारण ही भीमाशंकर नामक ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई थी।
 
Kumbhakarna was the son of sage Vrishrava and the demonic Kaikasi and younger brother of Ravana, the king of Lanka. Kumbh means pitcher and Karna means ear, it was named Kumbhakarna due to having large ears since childhood. He was the elder brother of Vibhishan and Shurpanakha. Since childhood, there was a lot of force inside it, and the food was so much that even the food of many cities could not do it together in one meal. Kumbhakarna was known for his sleep and tendency to overeat. According to the Ramayana, Kumbhakaran was a monster, but he was very intelligent, brave theologian, strong and loyal. This is the reason why Indra, the king of the gods, was afraid of his powers. Khar, Dushan, Kumbhini, Ahiravana and Kubera were the half brothers of Kumbhakaran. Kumbhakarna's wife was Vajrajwala, the daughter of Varochan. His second wife's name was Kirkati. Kumbhakarna was also married to Taditmala, the daughter of a king named Mahodar of Kumbhapur. Kumbhakarna had a son named Moolakasura who was slaughtered by Mother Sita. The other name was Bhima. It is said that it was due to this Bhima that a Jyotirlinga named Bhimashankar was established.
 
 अपने भाइयों रावण और विभिषण के साथ कुंभकरण ने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्‍या की थी. इन्द्र आदि देवताओं ने ब्रह्मा तथा शंकर जी से विनती की इन राक्षसों को सोच विचार कर ही वरदान दें | इसके बाद शिव जी ने और ब्रह्मा जी ने विशालकाय कुम्भकर्ण को देखकर सोचा कि यह अगर रोज भोजन करेगा तो पृथ्वी को नाश हो जायेगा।  तपस्‍या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी ने उससे वर मांगने के लिए कहा तभी मां सरस्‍वती उसकी जिह्वा पर जाकर बैठ गईं|  फिर क्‍या था उसे मांगना तो था 'इंद्रासन' लेकिन देवी सरस्‍वती के बैठे होने के कारण वह 'निद्रासन' मांग बैठा|

Kumbhakaran, along with his brothers Ravana and Vibhishana, did hard penance to please Brahma. The Gods of Indra and others pleaded with Brahma and Shankar ji to give blessings to these demons only after thinking. After this, Lord Shiva and Brahma Ji, seeing the giant Kumbhakarna, thought that if it would eat every day, the earth would be destroyed. Pleased with penance, when Lord Brahma asked him to ask for a bride, then mother Saraswati sat on his tongue. Then what was it that he had to ask for 'Indrasana' but due to the sitting of Goddess Saraswati, he sat asking for 'sleepless'.


ब्रह्मा के वरदान से कुंभकरण छह-छह महीने सोता रहता था| छह महीने लगातार सोने के बाद जब वह उठता था तो उसे इतनी ज्‍यादा भूख लगी रहती थी कि उसके सामने जो कुछ भी आता था वो उसे खा जाता था, चाहे वो इंसान ही क्‍यों न हों|
जब रावण युद्ध के मैदान में गया तब उसे श्री राम और उनकी सेना के सामने शर्मिंदा होना पड़ा. तब रावण ने फैसला किया कि मुश्किल की इस घड़ी में उसे अपने भाई कुंभकरण का साथ चाहिए. लेकिन उस वक्‍त कुंभकरण सो रहा था. उसे नींद के बीच से उठाना इतना आसान नहीं था. उसे उठाने के लिए अनेक तरह के यत्‍न किए गए. लेकिन वह तब भी नहीं उठा. आखिरकार उसके ऊपर एक हजार हाथी चलवाए गए
विभन्न प्रक्रार के व्यंजन , मदिरा तथा भैंसे उसके पास लाकर रख दिए गए | भोजन की सुंगंध से वह उठा और उठते ही अनेक भैसे सैकड़ो घड़े , मदिरा और वयंजनो को खा गया | उसके बाद क्रोधित हुआ की उसको समय से पहले क्यों जगाया गया | 
कुंभकरण को जब राम-रावण युद्ध के बारे में पता चला तब उसने अपने भाई को समझाने की बहुत कोशिश की. उसने रावण को बताया कि श्री राम साक्षात् नारायण के अवतार हैं और ऐसे में उनसे युद्ध में नहीं जीता जा सकता. वहीं, सीता मां लक्ष्‍मी का रूप हैं इसलिए उनका हरण करने का विचार भी मन में कैसे आ सकता है. कुंभकरण ने रावण को बताया कि वह गलत कर रहा है और उसे अपना हठ  छोड़कर सीता को श्रीराम के पास वापस भेज देना चाहिए. रावण ने कुंभकरण की एक न सुनी. रावण ने कुंभकरण को बताया कि वह उसका भाई है ऐसे में उसका धर्म उसकी तरफ से युद्ध के मैदान में जाना है. यह जानते हुए भी रावण गलत है इसके बावजूद कुंभकरण ने उसकी बात मानी और वह अपने भाई के प्रति निष्‍ठा का पालन करते हुए युद्ध लड़ने चला गया. 

Kumbhakaran used to sleep for six months with the blessings of Brahma. When he woke up after sleeping for six months continuously, he used to get so hungry that whatever he came in front of him would eat him, even if he was a human being. When Ravana went to the battlefield, he had to be embarrassed in front of Shri Ram and his army. Then Ravana decided that in this hour of difficulty he should support his brother Kumbhakaran. But Kumbhakaran was sleeping at that time. It was not so easy to lift him from the middle of sleep. Various efforts were made to lift it. But he still did not get up. Eventually a thousand elephants were carried over him Various types of dishes, wines and buffaloes were brought to him. He woke up from the smell of food and as soon as he got up he ate hundreds of buffaloes, wines and dishes. After that he was angry as to why he was awakened ahead of time. When Kumbakaran came to know about the Ram-Ravana war, he tried a lot to convince his brother. He told Ravana that Shri Rama is the incarnation of Sakshat Narayan and in such a situation he cannot be won in battle. At the same time, Sita is the form of Maa Lakshmi, so how can the idea of ​​killing her come to mind. Kumbhakaran tells Ravana that he is doing wrong and that he should leave his stubbornness and send Sita back to Shri Ram. Ravana did not listen to Kumbhakaran. Ravana told Kumbhakaran that he is his brother, so his religion has to go to the battlefield on his behalf. Despite knowing that Ravana is wrong, Kumbhakaran obeyed him and he went to fight the war, following his loyalty to his brother.
 
कुंभकरण ने रण क्षेत्र में पहुंचकर श्री राम की वानर सेना को कुचल दिया, श्री हनुमान को चोटिल कर दिया और सुग्रीव को मूर्छित कर उसे बंदी बना लिया. जब वह सुग्रीव को ले जा रहा था तभी श्री राम ने उसका वध कर दिया. रामायण के अनुसार कुंभकरण के दो बेटे कुंभ और निकुंभ थे. उसके बेटों ने राम के खिलाफ युद्ध लड़ा और वे भी मारे गए. 

Kumbhakaran reached the battlefield and crushed Shree Rama's monkey army, injured Shree Hanuman and imprisoned Sugriva. While he was taking Sugriva, Shri Ram killed him. According to Ramayana, Kumbhakaran had two sons, Kumbha and Nikumbh. His sons fought a war against Rama and were also killed.


वैसे रामायण के ज्‍यादातर चरित्र ऐसे हैं जो या तो अच्‍छाई के साथ हैं या बुराई के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं. लेकिन कुंभकरण का चरित्र अधिक जटिल है|  वह नीति-अनीति, धर्म-अधर्म का भेद जानता है|  वह कभी खुलकर रावण का विरोध नहीं करता, हालांकि वह रावण को समय-समय पर बहुत समझाता है.| यह जानते हुए भी कि रावण गलत है तब भी वह उसका साथ देता है|  रण क्षेत्र में जब कुंभकरण और विभिषण का आमना-सामना होता है तब दोनों बेहद भावुक हो उठते हैं|  विभिषण अपने बड़े भाई कुंभकरण को अधर्म का साथ छोड़कर श्री राम की शरण लेने के लिए कहता है|  कुंभकरण उसकी अवहेलना करते हुए उसे ही यह कहते हुए अधर्मी बता देता है कि उसने अपने भाई को धोखा दिया है|  जब दोनों भाई एक-दूसरे को नहीं समझा पाते और विदा लेते हैं तब कुंभकरण की आंखों से आंसू बहने लगते हैं| 
 इतना ही नहीं कुंभकरण को यह भी पता था कि युद्ध का क्‍या परिणाम होगा| अपने भाई विभिषण से अंत में वह यही कहता है कि उनके मरने के बाद पूरे विधि-विधान से रावण और उसका अंतिम संस्‍कार करे|  कुंभकरण कहता है कि इस युद्ध में विभिषण ही जिंदा बचेगा, जबकि रावण और उसकी मौत हो जाएगी. विभीषण को ही सबका अंतिम संस्कार करना होगा | 

 
By the way, most of the characters of Ramayana are those who are either with good or appear to be in favor of evil. But the character of Aquarius is more complex. He knows the difference between ethics, immorality, religion and unrighteousness. He never openly opposes Ravana, although he explains Ravana a lot from time to time. Even after knowing that Ravana is wrong, he still supports him. When Kumbhkaran and Vibhishan are confronted in the battle field, both of them get very emotional. Vibhishan asks his elder brother Kumbhakaran to take refuge with Shree Rama and take shelter. Kumbhakaran disregards him and tells him to be unrighteous, saying that he has cheated his brother. When both brothers are unable to explain to each other and leave, then tears start flowing from the eyes of Aquarius. Not only this, Kumbhkaran also knew what the outcome of the war would be. In the end he says to his brother Vibhishan that after his death, Ravana and his last cremation should be done with complete law. Kumbhakaran says that in this war, Vibhishan will remain alive, while Ravana and his death will die. Vibhishan will have to perform the last rites of all.