sita लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
sita लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 10 जून 2020

मंदोदरी ( Mandodari )

|| जय सिया राम || 
 

 
|| मंदोदरी || 


 

अहल्या द्रौपदी तारा कुंती मंदोदरी तथा।
पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥

 पंचकन्या वे पाँच कन्याएँ हैं, जिनका भारत के हिन्दू सम्प्रदाय और धर्मग्रंथों में विशिष्ट स्थान है। पुराणों के अनुसार ये पाँच कन्याएँ विवाहित होते हुए भी पूजा के योग्य मानी गई हैं।मंदोदरी पंचकन्याओं में से एक थी। मंदोदरी के पिता का नाम मयासुर था| मयासुर ने ही हनुमान जी के लंका दहन के बाद लंका का पुनरनिर्माण केवल तीन दिन में कर दिया था | मंदोदरी रावण की पटरानी तथा मेघनाद और अक्षयकुमार की माता थी | मंदोदरी बहुत पतिव्रता थीं तथा हमेशा रावण को समझाती रही कि सीता जी लंका तथा रावण का काल बनकर आयीं हैं कृपया उन्हें आदर के साथ प्रभु राम को लौटा दें किन्तु रावण ने कभी उसकी बात नहीं मानी तथा उपहास में ही उसको लिया | 

Panchakanya is the five girls who have a special place in the Hindu sect and scriptures of India. According to the Puranas, these five girls are considered worthy of worship even when they are married. Mandodari was one of the Panchkanis. Mandodari's father's name was Mayasur. It was Mayasur who reconstructed Lanka in just three days after the burning of Lanka by Hanuman. Mandodari was Patarani of Ravana and mother of Meghnad and Akshaykumar. Mandodari was very virtuous and always explained to Ravana that Sita ji has come as the era of Lanka and Ravana, please return her with respect to Lord Rama but Ravana never obeyed him and took him only in derision.
 
हिन्दू पुराणों में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक बार मधुरा नामक एक अप्सरा कैलाश पर्वत पर पहुंची और देवी पार्वती को वहां ना पाकर वह भगवान शिव को आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगी। तभी देवी पार्वती वहां पहुंचती हैं और क्रोध में आकर इस अप्सरा को श्राप देती हैं कि वह 12 साल तक मेढक बनकर कुएं में रहेगी। भगवान शिव के बार-बार कहने पर माता पार्वती ने मधुरा से कहा कि कठोर तप के बाद ही वह अपने असल स्वरूप में वापस आ सकती है। 

According to a legend recorded in the Hindu Puranas, once an apsara named Madhura reached Mount Kailash and tried not to find Goddess Parvati there, she started trying to attract Lord Shiva. Then Goddess Parvati reaches there and curses this nymph in anger that she will remain in the well as a paddock for 12 years. After repeatedly asking Lord Shiva, Mata Parvati told Madhura that only after rigorous penance can she return to her true form.                               
मधुरा लंबे समय तक कठोर तप करती है। इसी दौरान असुरों के देवता, मयासुर और उनकी अप्सरा पत्नी हेमा एक पुत्री की प्राप्ति के लिए तपस्या करते हैं। इसी बीच मधुरा की कठोर तपस्या से वह श्राप मुक्त हो जाती है। एक कुएं से मयासुर-हेमा को मधुरा की आवाज सुनाई देती है। मयासुर मधुरा को कुएं से बाहर निकालते हैं और उसे बेटी के रूप में गोद ले लेते हैं। मयासुर अपनी गोद ली पुत्री का नाम मंदोदरी रखते हैं। जिनसे रावण बाद में विवाह करता है।
 
Madhura performs prolonged rigorous penance. Meanwhile, the demon god, Mayasura and his nymph wife Hema perform penance for the attainment of a daughter. In the meantime, the curse of Madhura is severely curtailed. The sound of Madhura is heard to Mayasur-Hema from a well. Mayasura drives Madhura out of the well and adopts her as a daughter. Mayasur names his adopted daughter Mandodari. Whom Ravana later marries.

 

 


अशोक वाटिका में रावण ने क्रोध में जब चन्द्रहास खड्ग द्वारा सीता जी पर वार करना चाहा तो मंदोदरी ने ही रावण को रोक दिया और कहा की सीता को क्षमा कर दीजिये क्यूंकि इस समय यह लंका में आपकी अतिथि समान है | हनुमान जी के लंका को जला देने के पश्चात मंदोदरी ने अभिमानी रावण को चेताया की देखिये जिनके एक दूत ने आपकी सोने की लंका जला दी उनकी शक्ति का विचार करिये और युद्ध का निर्णय त्याग दीजिये किन्तु रावण कहाँ मानने वाला था। वह अभिमानी एक स्त्री की बाँतों को गंभीरता से कैसे लेता और अंततः भगवान् राम ने उसका कुल सहित नाश कर दिया | 

In Ashoka Vatika, when Ravana wanted to attack Sita ji by Chandrahas Khadg in anger, Mandodari stopped Ravana and said that forgive Sita because at this time it is your guest in Lanka. After Hanuman ji burnt Lanka, Mandodari warned the arrogant Ravana, look at the power of one of his messengers who burned your gold Lanka and abandon the decision of war, but where Ravana was going to believe. How would he take the arrogance of a proud woman seriously and eventually Lord Rama destroyed her clan as well.
रावण के वध के बाद मंदोदरी रणभूमि पर पहुंचती हैं। यहां पति-पुत्र के साथ-साथ अपनों के शव देखकर शोक में डूब जाती हैं। यहां श्रीराम उन्हें याद दिलाते हैं कि वे अब भी लंका की महारानी और अत्यंत बलशाली रावण की विधवा हैं। इसके बाद मंदोदरी लंका वापस लौट जाती हैं।एक किवदंती के अनुसार पति-पुत्र के दुख में मंदोदरी खुद को महल में कैद कर लेती हैं। वे पूरी तरह से बाहरी दुनिया से संपर्क तोड़ लेती हैं। इस दौरान विभीषण लंका का राजपाट संभालते हैं। कई सालों बाद मंदोदरी फिर से अपने महल से बाहर निकलती हैं और विभीषण से विवाह करने के लिए तैयार हो जाती हैं। विवाह के बाद मंदोदरी ने विभीषण के साथ मिलकर लंका के साम्राज्य को सही दिशा में आगे बढ़ाया।

After Ravana's slaughter, Mandodari arrives at the battlefield. Here the husband and son as well as their dead bodies are immersed in mourning. Here Shri Ram reminds her that she is still the Queen of Lanka and the widow of the extremely powerful Ravana. After this Mandodari returns to Lanka. According to a legend, Mandodari imprisons herself in the palace in the grief of husband and son. They completely cut off contact with the outside world. During this, Vibhishan takes over the reins of Lanka. Many years later Mandodari again exits her palace and agrees to marry Vibhishan. After marriage, Mandodari, along with Vibhishan, pushed the kingdom of Lanka in the right direction.
 

मंगलवार, 9 जून 2020

राजा जनक (Raja Janak)

|| जय सिया राम || 
 
 
|| राजा जनक || 


राजा जनक का असली नाम सीरध्वज था | जनकपुरी के राजा होने के कारण इनका नाम राजा जनक कहलाया | सीरध्वज की दो कन्याएँ सीता तथा उर्मिला हुईं जिनका विवाह, राम तथा लक्ष्मण से हुआ। कुशध्वज की कन्याएँ मांडवी तथा श्रुतिकीर्ति हुईं जिनके व्याह भरत तथा शत्रुघ्न से हुए। श्रीमद्भागवत में दी हुई जनकवंश की सूची कुछ भिन्न है, परंतु सीरध्वज के योगिराज होने में सभी ग्रंथ एकमत हैं। इनके अन्य नाम 'विदेह' अथवा 'वैदेह' तथा 'मिथिलेश' आदि हैं। मिथिला राज्य तथा नगरी इनके पूर्वज निमि के नाम पर प्रसिद्ध हुए।
 
The real name of King Janak was Sirdhavaj. Due to being the king of Janakpuri, he was called Raja Janak. Sirdha and Urmila were the two daughters of Sirdhwaj who were married to Rama and Lakshmana. The girls of Kushadhwaja were Mandvi and Shrutikirti, who were married to Bharata and Shatrughna. The list of Janaka dynasty given in Srimad Bhagwat is slightly different, but all the texts are unanimous in the belief that Sirdhvaj is a Yogiraj. Their other names are 'Videha' or 'Vaideh' and 'Mithilesh' etc. Mithila state and city became famous in the name of their ancestor Nimi.

जनक और याज्ञवल्क्य का बृहदारण्यक उपनिषद् में भी उल्लेख हुआ है, किंतु वहाँ याज्ञवल्क्य शिष्यत्व छोड़कर गुरु का स्थान प्राप्त कर लेते हैं और स्वयं जनक उनसे परलोक, ब्रह्म और आत्मा के विषय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक और कौषीतकि उपनिषदों तथा शांखायन आरण्यक से यह तो सिद्ध होता ही है कि जनक विदेह और याज्ञवल्क्य समकालीन थे, यह भी ज्ञात होता है कि श्वेतकेतु आरुणेय और काशी के प्रसिद्ध दार्शनिक राजा अजातशत्रु भी उन्हीं के समय में हुए थे। एक विद्वान् ने काशी के अजातशत्रु के मगध के अजातशत्रु से मिलाते हुए जनक का समय ई.पू. छठी शती में निश्चित करने का प्रयत्न किया है, जो स्पष्टत: अस्वीकार्य है। ब्राह्मणों और जनक का उल्लेख करनेवाले उन प्राचीन उपनिषदों का समय निश्चय ही बुद्ध युग के बहुत पूर्व था। अत: जनक को भी उस युग के पूर्व का ही मानना होगा, किंतु उनका ठीक समय सफलतापूर्वक निश्चित नहीं किया जा सकता।

Janaka and Yajnavalkya are also mentioned in the Brihadaranyaka Upanishad, but there Yajnavalkya leaves the discipleship and takes the place of Guru and Janaka himself learns about the hereafter, Brahma and Atma. From the Satapatha Brahmins, Brihadaranyakas and Kaushitaki Upanishads and Shankhayan Aranyakas, it is proven that Janaka Videha and Yajnavalkya were contemporaries, it is also known that Shvetketu Arunayya and the famous philosopher King Ajatashatru of Kashi were also in their time. A scholar, while shaking with Ajatashatru of Magadha of Ajatshatru of Kashi, was born in BC. Have tried to make sure in the sixth century, which is clearly unacceptable. The time of those ancient Upanishads referring to Brahmins and Janaka was certainly long before the Buddha era. Therefore, Janak also has to believe before that era, but his exact time cannot be successfully determined.

राजा जनक के गुरु अष्टावक्र थे | राजा जनक आत्मज्ञानी तथा महान वेदों के ज्ञाता थे | राजा जनक तथा गुरु अष्टावक्र के बीच जो वार्तालाप हुआ उसे ही अष्टावक्र गीता कहा जाता है | इस महान वार्तालाप के बाद ही राजा जनक को अपने जिज्ञासु मन के प्रश्नो के उत्तर मिले तथा आत्मज्ञान प्राप्त हुआ|  मिथिला बहुत भाग्यशाली थी जो उन्हें राजा जनक जैसे शासक मिले | राजा जनक को सीता जी के समान राम भी उन्हे बहुत प्रिय थे | 

King Janaka's guru was Ashtavakra. King Janaka was a spiritual and knowledgeable of the great Vedas. The conversation between King Janaka and Guru Ashtavakra is called the Ashtavakra Gita. Only after this great conversation, King Janak got answers to the questions of his inquisitive mind and attained enlightenment. Mithila was very lucky to have a ruler like King Janak. King Janaka loved Rama like Sita ji.

गुरुवार, 4 जून 2020

जय महर्षि विश्वामित्र ( Jai Meharishi Vishwamitra)

|| जय श्री राम ||
 
 
|| जय महर्षि विश्वामित्र || 


ज्ञान और तपस्या के बल पर साधारण मनुष्य से महाऋषि बनने की कहानी है गुरु विष्वामित्र की | तपस्या जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक है। .ब्रह्माजी तप करने पर ही सृष्टि की रचना कर सके थे। तपस्या के अंतर्गत चार प्रकार के संयम अपनाने पड़ते हैं—अर्थ संयम, समय संयम, विचार संयम और इंद्रिय संयम। विश्वामित्र जी ने १०००० वर्ष तक तपस्या की और राजऋषि कहलाये | 

Guru Vishwamitra's story of becoming a great sage from an ordinary man on the strength of knowledge and penance. Tapasya is very important for life. .Brahmaji was able to create the world only by meditating. Four types of sobriety are to be adopted under austerity - Earth sobriety, time sobriety, thought sobriety and sense sobriety. Vishwamitra did penance for 10000 years and was called Rajrishi.

 
युगों पूर्व एक शक्तिशाली एवम प्रिय क्षत्रिय राजा थे कौशिक | कौशिक एक महान राजा थे इनके संरक्षण में प्रजा खुशहाल थी | एक बार वे अपनी विशाल सेना के साथ जंगल की तरफ गये रास्ते में महर्षि वशिष्ठ का आश्रम पड़ा जहाँ रुककर उन्होंने महर्षि से भेंट की | गुरु वशिष्ठ ने राजा कौशिक का बहुत अच्छा आतिथी सत्कार किया और उनकी विशाल सेना को भर पेट भोजन भी कराया | यह देख राजा कौशिक को बहुत आश्चर्य हुआ कि कैसे एक ब्राह्मण इतनी विशाल सेना को इतने स्वादिष्ट व्यंजन खिला सकता हैं | उनकी जिज्ञासा शांत करने के लिये उन्होंने गुरु वशिष्ठ से प्रश्न किया – हे गुरुवर ! मैं यह जानने की उत्सुक हूँ कि कैसे आपने मेरी विशाल सेना के लिए इतने प्रकार के स्वादिष्ट भोजन का प्रबंध किया | तब गुरु वशिष्ठ ने बताया – हे राजन ! मेरे पास मेरी नंदिनी गाय हैं जो कि स्वर्ग की कामधेनु गया की बछड़ी हैं जिसे मुझे स्वयं इंद्र ने भेट की थी | मेरी नंदनी कई जीवो का पोषण कर सकती हैं | नंदनी के बारे में जानकर राजा कौशिक के मन में इच्छा उत्पन्न हुई और उन्होंने कहा – हे गुरुवर! मुझे आपकी नंदनी चाहिये बदले में आप जितना धन चाहे मुझसे ले ले | गुरु वशिष्ठ ने हाथ जोड़कर निवेदन किया – हे राजन ! नंदनी मुझे अत्यंत प्रिय हैं वो सदा से मेरे साथ रही हैं मुझसे बाते करती हैं मैं अपनी नंदनी का मोल नहीं लगा सकता वो मेरे लिए अनमोल प्राण प्रिय हैं | राजा कौशिक इसे अपना अनादर समझते हैं और क्रोध में आकर सेना को आदेश देते हैं कि वो बल के जरिये नंदनी को गुरु से छीन ले | आदेश पाते ही सैनिक नंदनी को हाँकने का प्रयास करते हैं लेकिन नंदनी एक साधारण गाय नहीं थी वो अपने पालक गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लेकर अपनी योग माया की शक्ति से राजा की विशाल सेना को ध्वस्त कर देती हैं और राजा को बंदी बनाकर वशिष्ठ के सामने लाकर खड़ा कर देती हैं | वशिष्ठ अपनी सेना के नाश से क्रोधित हो गुरु वशिष्ठ पर आक्रमण करते हैं  गुरु वशिष्ठ क्रोधित हो जाते हैं और राजा के एक पुत्र को छोड़ सभी को शाप देकर भस्म कर देते हैं | अपने पुत्र के इस अंत से दुखी कौशिक अपना राज पाठ अपने एक पुत्र को सौंप तपस्या के लिये हिमालय चले जाते हैं और हिमालय में कठिन तपस्या से वे भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं | भगवान शिव प्रकट होकर राजा को वरदान मांगने का कहते हैं | तब राजा कौशिक शिव जी से सभी दिव्यास्त्र का ज्ञान मांगते हैं | शिव जी उन्हें सभी शस्त्रों से सुशोभित करते हैं |

Kaushik was a powerful and beloved Kshatriya king ages ago. Kaushik was a great king and the people were happy under his patronage. Once, on the way to the forest with his huge army, he had the ashram of Maharishi Vasistha where he stopped and met Maharishi. Guru Vashistha gave very good hospitality to King Kaushik and also fed his huge army with food. Seeing this, King Kaushik was very surprised that how a Brahmin can feed such a delicious dish to such a huge army. To calm his curiosity, he questioned Guru Vashist - O Guruvar! I am curious to know how you have arranged such a delicious meal for my huge army. Then Guru Vashistha said - O Rajan! I have my Nandini cow which is the calf of Kamdhenu Gaya of heaven, which was given to me by Indra himself. My Nandni can nurture many lives. Knowing about Nandni, a desire arose in King Kaushik's mind and he said - O Guruvar! I want your Nandini to take as much money as you want from me. Guru Vashistha pleaded with folded hands - O Rajan! Nandani is very dear to me, she has always been with me, I talk to me, I cannot afford my Nandni, she is dear to me. King Kaushik considers this to be disrespect and in anger, orders the army to snatch Nandni from the Guru by force. On getting the order, the soldiers try to grab Nandani, but Nandani was not an ordinary cow, she takes orders from her foster guru Vasistha and demolishes the huge army of the king with the power of her yoga maya and brings the king captive in front of Vasishtha. Makes it stand. Vashistha gets angry at the destruction of his army and attacks Guru Vashistha, Guru Vashishta gets angry and curses everyone except one son of the king and consumes him. Unhappy with this end of his son, Kaushik goes to the Himalayas for penance handed over his secret lesson to one of his sons and he pleases Lord Shiva with hard penance in the Himalayas. Lord Shiva appears and asks the king to ask for a boon. Then King Kaushik asks Shiva to have knowledge of all the divyastras. Lord Shiva adorns them with all weapons.
 

धनुर्विद्या का पूर्ण ज्ञान होने के बाद राजा कौशिक पुनः अपने पुत्रों की मृत्यु का बदला लेने के लिये वशिष्ठ पर आक्रमण करते हैं और दोनों तरफ से घमासान युद्ध शुरू हो जाता हैं | राजा के छोड़े हर एक शस्त्र को वशिष्ठ निष्फल कर देते हैं | अंतः वे क्रोधित होकर कौशिक पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं जिससे चारो तरफ तीव्र ज्वाला उठने लगती हैं तब सभी देवता वशिष्ठ जी से अनुरोध करते हैं कि वे अपना ब्रह्मास्त्र वापस ग्रहण कर ले | वे कौशिक से जीत चुके हैं इसलिए वे पृथ्वी की इस ब्रह्मास्त्र से रक्षा करें | सभी के अनुरोध और रक्षा के लिए वशिष्ठ शांत हो जाते हैं ब्रह्मास्त्र वापस ले लेते हैं | वशिष्ठ से मिली हार के कारण कौशिक राजा के मन को बहुत गहरा आघात पहुँचता हैं वे समझ जाते हैं कि एक क्षत्रिय की बाहरी ताकत किसी ब्राह्मण की योग की ताकत के आगे कुछ नहीं इसलिये वे यह फैसला करते हैं कि वे अपनी तपस्या से ब्रह्मत्व हासिल करेंगे और वशिष्ठ से श्रेष्ठ बनेंगे और वे दक्षिण दिशा में जाकर अपनी तपस्या शुरू करते हैं जिसमे वे अन्न का त्याग कर फल फुल पर जीवन व्यापन करने लगते हैं | उनकी कठिन तपस्या से उन्हें राजश्री का पद मिलता हैं | अभी भी कौशिक दुखी थे क्यूंकि वे संतुष्ट नहीं थे |
 
एक राजा थे त्रिशंकु, उनकी इच्छा थी कि वे अपने शरीर के साथ स्वर्ग जाना जाते थे जो कि पृकृति के नियमों के अनुरूप नहीं था | इसके लिए त्रिशंकु वशिष्ठ के पास गये पर उन्होंने नियमो के विरुद्ध ना जाने का फैसला लिया और त्रिशंकु को खाली हाथ लौटना पड़ा | फिर त्रिशंकु वशिष्ठ के पुत्रों के पास गये और अपनी इच्छा बताई तब पुत्रों ने क्रोधित होकर उन्हे चांडाल हो जाने का शाप दिया क्यूंकि उन्होंने ने इसे अपने पिता का अपमान समझा | फिर भी त्रिशंकु नहीं माने और विश्वामित्र के पास गये | तब विश्वामित्र ने उन्हें उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया जिस हेतु उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया और इसके लिये कई ब्राह्मणों को न्यौता भेजा जिनमे वशिष्ठ के पुत्र भी थे | वशिष्ठ के पुत्रों ने यज्ञ का तिरस्कार किया उन्होंने कहा – हम ऐसे यज्ञ का हिस्सा कतई नहीं बनेगे जिसमे चांडाल के लिए हो और किसी क्षत्रिय पुरोहित के द्वारा किया जा रहा हो | उनके ऐसे वचनों को सुन विश्वामित्र ने उन्हें शाप दे दिया और वशिष्ठ के पुत्रो की मृत्यु हो गई | यह सब देखकर अन्य सभी भयभीत हो गये और यज्ञ का हिस्सा बन गये | यज्ञ पूरा किया गया जिसके बाद देवताओं का आव्हाहन किया गया लेकिन देवता नहीं आये तब विश्वामित्र ने क्रोधित होकर अपने तप के बल पर त्रिशंकु को शारीर के साथ स्वर्ग लोक भेजा लेकिन इंद्र ने उसे यह कह कर वापस कर दिया कि वो शापित हैं इसलिये स्वर्ग में रहने योग्य नहीं हैं | त्रिशंकु का शरीर बीच में ही रह गया तब विश्वामित्र ने अपने वचन को पूरा करने के लिये त्रिशंकु के लिए नये स्वर्ग एवम सप्त ऋषि की रचना की | इस सब से देवताओं को उनकी सत्ता हिलती दिखाई दी तब उन्होंने विश्वामित्र से प्रार्थना की | तब विश्वामित्र ने कहा कि मैंने अपना वचन पूरा करने के लिए यह सब किया हैं अब से त्रिशंकु इसी नक्षत्र में रहेगा और देवताओं की सत्ता को कोई हानि नहीं होगी |
इस सबके बाद विश्वामित्र ने फिर से अपनी ब्रह्मर्षि बनने की इच्छा को पूरा करना चाहा और फिर से तपस्या में लग गए | कठिन से कठिन ताप किये | श्वास रोक कर तपस्या की | उनके शरीर का तेज सूर्य से भी ज्यादा प्रज्ज्वलित होने लगा और उनके क्रोध पर भी उन्हें विजय प्राप्त हुई तब जाकर ब्रह्माजी ने उन्हें ब्रह्मर्षि का पद दिया और तब विश्वामित्र ने उनसे ॐ का ज्ञान भी प्राप्त किया और गायत्री मन्त्र को जाना |उनके इस कठिन त़प के बाद वशिष्ठ ने भी उन्हें आलिंग किया और ब्राह्मण के रूप में स्वीकार किया | और तब जाकर इनमे कौशिक से महर्षि विश्वामित्र का नाम प्राप्त हुआ |
 
जब विश्वामित्र साधना में लीन थे | तब इंद्र को लगा कि वे आशीर्वाद में इंद्र लोक मांगेंगे इसलिये उन्होंने स्वर्ग की अप्सरा को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने भेजा चूँकि मेनका बहुत सुंदर थी विश्वामित्र जैसा योगी भी उसके सामने हार गया और उसके प्रेम में लीन हो गया | मेनका को भी विश्वामित्र से प्रेम हो गया | दोनों वर्षों तक संग रहे तब उनकी संतान शकुंतला ने जन्म लिया लेकिन जब विश्वामित्र को ज्ञात हुआ कि मेनका स्वर्ग की अप्सरा हैं और इंद्र द्वारा भेजी गई हैं तब विश्वामित्र ने मेनका को शाप दिया | इन दोनों की पुत्री पृथ्वी पर ही पली बड़ी और बाद में राजा दुष्यंत से उनका विवाह हुआ और दोनों की सन्तान भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा |
 
विश्वामित्र ने शस्त्रों का त्याग कर दिया था इसलिए वे स्वयं राक्षसी ताड़का से युद्ध नहीं कर सकते थे इसलिये उन्होंने अयोध्या से भगवान राम को जनकपुरी में लाकर ताड़का का वध करवाया |ताड़का रावण के मामा सूण्ड की पत्नी तथा सुबाहु तथा मारीच की माता थी |  मार्ग में उन्होंने राम तथा लक्ष्मण को "बाला-अतिचाला" नामक दो विद्या सिखायीं जिनसे भूख , प्यास, थकान , रोग तथा अचानक से शत्रु का वार आदि नहीं हो पाता | विश्वामित्र जी के मार्गदर्शन मैं भगवान् राम ने अहिल्या का उद्धार किया | इन्ही विश्वामित्र के कहने पर भगवान राम ने सीता के स्वयम्बर में हिस्सा लिया तथा शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर स्वयम्बर को जीता | 
 
 

मंगलवार, 2 जून 2020

रावण (RAAVANA)

|| जय श्री राम || 
 
 
 
रावण
 
रावण का अर्थ दूसरों को रुलाने वाला | रावण ने अपने जीवन काल में अपनी आसुरी शक्तियों के बल पर सबको रुलाने के अलावा कुछ नहीं किया | रावण के पिताजी विश्रवा जो ब्रह्मा जी के पौत्र तथा मुनि पुलत्स्य के पुत्र थे ने उसके पैदा होते भगवान को दुहाई दी की मुझसे क्या अनर्थ हो गया क्योंकि पैदा होते ही उसके आसुरी अटटहास ने धरती को हिला दिया तथा अशुभ संकेत होने लगे | 
उसी दुष्ट रावण को आज कलयुग में महापंडित कहकर महामंडित किया जा रहा है, किंतु क्या सच में रावण इस आदर के योग्य है? उस रावण की दुष्ट विशेषताओं को अपनाने से पहले या उनको महा मंडित करने से पहले विस्तारपूर्वक रावण को जानना बहुत जरूरी है | 

Ravan means to make others cry. Ravana did nothing but make everyone cry on the strength of his demonic powers during his lifetime. Ravana's father Vishrava, who was the grandson of Brahma and son of Muni Pulatsya, prayed to the Lord when he was born, what was wrong with me because his devilish laugh shook the earth and ominous signs began to occur. The same wicked Ravana is being glorified in the Kalyug today as Mahapandit, but is Ravana really worthy of this honor? It is very important to know Ravana in detail before adopting the evil characteristics of that Ravana or before making him great.
 
 रावण के नाना सोमाली बहुत कपटी राक्षस था | राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य के साथ मिलकर वह सदा राक्षसों को अधिक ताकतवर बनाने के विचार  तथा टोटके करता रहता था | सुमाली इतना धूर्त था की उसने अपनी पुत्री कैकसी को पुलतस्य मुनि के पुत्र विश्रवा को रिझाने के लिए भेजा  | कैकसी ने छल कपट से अपना परिचय छुपाया और मायावी स्वांग किया | विश्रवा मुनी होते हुए भी अपने संयम को संभाल ना सके और उन्होंने कैकसी से गन्धर्व विवाह कर लिया | विश्रवा मुनी के तेज़ से ही रावण , कुंभकर्ण तथा विभीषण का जन्म हुआ | नाना सुमाली को रावण सबसे प्रिय था तथा विश्रवा मुनी के तीनों पुत्रों में रावण ही में ही आसुरी शक्तियां बहुत प्रबल थी | कैकसी ने अपने पुत्रों की उत्पत्ति के पश्चात ही ऋषि को बताया कि वह राक्षस कुल से है तब विश्वास को बहुत ग्लानि हुई और कालांतर में तपस्या के लिए चले गए | ऋृषि के प्रताप से रावण बुद्धिमान था तथा कैकसी की आसुरी माया के कारण मायावी तथा दुष्ट प्रकृति का भी था | अपने नाना सुमाली की छत्रछाया में रावण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके अनेक सिद्धियाँ प्राप्त करीं | गुरु शुक्राचार्य जो राक्षसों के गुरु थे सुमाली उन्हीं का अनुसरण करता था और रावण सुमाली का अनुसरण करता था| प्रचंड  शक्तियों के स्वामी रावण का अभिमान दिन--दिन बढ़ता चला गया और उसी  अभिमान के कारण ही उसकी मृत्यु हुई | रावण ने साधु-संतों , देवी-देवताओं को अपने दुराचार अत्याचार से बहुत दुखी किया | सुमाली की कुटिल योजना सफल होती चली गई और राक्षसों का वर्चस्व बढ़ता चला गया | 

Somali, Rana's maternal grandfather, was a very insidious monster. Together with Shukracharya, the guru of the demons, he always kept thinking and tricks to make the demons more powerful. Sumali was so cunning that he sent his daughter Kaikasi to placate Vishvarava, the son of Pulatasya Muni. Kaikasi hid his intro with deceit and pretended to be elusive. Despite Vishwa Muni not being able to handle his sobriety and he married Gandharva with Kaikasi. Ravana, Kumbhakarna and Vibhishan were born by Vishwa Muni fast. Rana was loved by Nana Sumali and among all the three sons of Vishrava Muni, Ravana itself had very strong demonic powers. After the birth of his sons, Kaikasi told the sage that he belonged to the demon clan, then the faith became very defiant and later went to penance. Ravan was intelligent due to the greatness of the sage and was also elusive and evil in nature due to the devilish Maya of Kaikasi. Under the umbrella of his maternal grandfather Sumali, Ravana pleased Brahma and attained many achievements. Guru Shukracharya, the guru of demons, Sumali followed him and Ravana followed Sumali. The pride of Ravana, the lord of great powers, grew day by day and due to that pride he died. Ravana made the sadhus and saints, gods and goddesses very sad with their misconduct and tyranny. Sumali's devious plan went on succeeding and the domination of the demons increased.
 
वैसे तो रावण बहुत शक्तिशाली था किन्तु त्रेता युग में और भी शक्तिशाली विभूतियाँ थीं | रावण से भी शक्तिशाली सहस्त्रबाहु और वानर राज बाली ने उसे परास्त किया था | इसी कारण बार-बार अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए वह उसने अनेक बार तपस्या की | ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के पश्चात और शक्तियां प्राप्त करने के उद्देश्य से वह भगवान शंकर की शरण में गया और घनघोर तपस्या के द्वारा शंकर जी से पाशुपात अस्त्र तथा अनेक सिद्धियों को प्राप्त किया | 

Although Ravan was very powerful, but there were more powerful personalities in Treta Yuga. Powerful Sahastrabahu and monkey Raj Bali defeated him even more than Ravana. That is why he did penance several times to increase his power repeatedly. After pleasing Brahma ji and with the aim of attaining powers, he went to the shelter of Lord Shankar and through fierce austerity received Pashupat weapon and many siddhis from Shankar ji.
 
राक्षसी शक्तियों के बल पर रावण ने अपने ही सौतेले भाई कुबेर से लंका तथा पुष्पक विमान को छीन लिया और तीनों लोगों में हाहाकार मचा दिया | यहां तक कि रावण ने अपने भतीजे नल कुबेर की पत्नी अप्सरा रंभा का भी यौनाचार किया तथा जब नल कुबेर को पता चला कि तो नल कुबेर ने रावण को शाप दिया कि रावण फिर कभी किसी स्त्री के साथ ऐसा दुस्साहस करे तो उसके सर के सौ टुकड़े हो जाएंगे | बलात्कारी रावण ने इससे पहले भी वेदवती नामक तपस्वनी के साथ यौनाचार करना चाहा तब वेदवती ने उसकी नियत को भांपकर अपनी तपस्या के बल पर खुद को भस्म कर लिया और श्राप दिया की एक स्त्री ही तपस्वनी रूप मैं तेरा काल बनकर पृथ्वी पर जन्म लेगी | रावण ने कभी स्त्री जाती का सम्मान नहीं किया अनेको स्त्रियों का उसने हरण किया तथा यहाँ तक की समय समय पर अपनी माता कैकसी और पत्नी मंदोदरी को धिक्कारता रहा | स्त्री जाती के अपमान के कारण ही उसे मृत्यु प्राप्त हुई | 

On the strength of demonic powers, Ravana snatched the Lanka and Pushpak aircraft from his own half-brother Kubera and created a ruckus among the three people. Even Ravana sexualized his nephew Nal Kubera's wife Apsara Rambha and when Nal Kubera came to know that Nal Kubera cursed Ravana that if Ravan ever dared to do such a thing with a woman again, then a hundred pieces of his head Will be done. Even before the rapist Ravana wanted to have sex with a ascetic named Vedavati, then Vedavati devoured her destiny and devoured herself on the strength of her penance and cursed that a woman will be born on earth as a ascetic. Ravana never respected the female caste, he killed many women, and even from time to time, his mother Kaikasi and wife Mandodari continued to curse. She died due to insult to the woman.
 
 
मायावी रावण राक्षस प्रवृति का होने के कारण छलि कपटी भी था जिसके कारण वह लंका को कुबेर से छीनने में तथा माता सीता के हरण मैं सफल हुआ | मायावी मारीच की वजह से ही वो सीता जी को हरण करने मैं सफल रहा वर्ना वह तो लक्ष्मण जी की लक्ष्मण रेखा को भी न लांघ पाया था | रावण ने वृद्ध और निहत्थे जटायु को भगवान् शिव के द्वारा दी गयी मायावी तलवार चन्द्रहास से मारकर उनके दिए अस्त्र का दुरूपयोग भी किया | यहाँ तक की रावण ने अपनी ही बहिन सूर्पनखा के पति विधुतजिव्ह की ह्त्या की थी तथा सूर्पनखा ने मन ही मन सोच रखा था की रावण के अंत का कारण वही बनेगी | 

Because of the demon Ravana's demon nature, Chali was also a fraud, due to which he was successful in snatching Lanka from Kubera and killing Maa Sita. It was because of the elusive maricha that he succeeded in defeating Sita ji or else he could not even cross Laxman Rekha's Laxman Rekha.Ravana also misused his weapon by killing the aged and unarmed Jatayu with the elusive sword Chandrahas given by Lord Shiva. Even Ravana killed his own sister Surpanakha's husband Vidutajivah and Surpanakha had thought in his mind that the cause of Ravana's end will be the same.
 
रावण विद्वान तथा प्रकांड पंडित तो था किन्तु राक्षस कुल का होने से और अत्यधिक शक्तियों को प्राप्त करने के पश्चात वह अभिमानी होता चला गया | ब्रह्मा जी से मांगे वरदान मैं भी वानर और मनुष्य को छोड़ के उसने बाकी सभी वर्णो से अपने लिए सुरक्षा मांग ली थी | उसे क्या पता था की साधारण मानव तथा वानर ही उसका काल बन जाएंगे जिन्हे वह कीड़े मकोड़ो की भांति तुच्छ समझता था | वरदान के कारण देवी देवता गन्धर्व किन्नर तथा यक्ष भी उसे परास्त नहीं कर सकते थे इसलिए विष्णु भगवान् ने मानव अवतार लेकर प्रभु राम के रूप में दुष्टता के प्रतीक रावण का वध किया तथा कुल समेत संहार करके सम्पूर्ण मानव जाती तथा तीनो लोको का उद्धार किया| 

Ravana was a scholar and a scholar, but after becoming a demon clan and after acquiring immense powers, he became arrogant. I also asked for a boon from Brahma ji, except the monkey and man, he had asked for protection from all the other characters. What did he know that only ordinary humans and apes would become his era, which he despised like insects Makodo. Goddess Gandharva Kinnar and Yaksha also could not defeat him due to boon, so Vishnu God took Ravana as the symbol of wickedness in the form of Lord Rama by taking a human incarnation and killing the family and saving the entire human race.
 
विद्वान लोग भी अपने कर्मो और उसके परिणामो का विचार नहीं कर पाते ऐसा ही कुछ रावण के साथ हुआ | भगवान् शिव के द्वारा प्राप्त शक्तियों के बल पर अभिमान में वह कैलाश समेत उन्हे लंका ले जाने की चेष्टा करने लगा किन्तु कैलाश के टेढ़ा होने से माता सती फिसलने लगी तब सती ने लंका के जल के काला होने का श्राप दिया और भगवान शंकर ने अपने अंगूठे से कैलाश को दबाया तो लंकापति रावण दबने लगा और उसका घमंड चूर चूर हो गया | अपने दसों सिर तथा बीस भूजाओं के होने का अभिमान टूटते ही चतुर रावण ने तांडव स्त्रोत की रचनाकार भगवान् शंकर की स्तुति की भगवान् शंकर प्रसन्न हो गए तथा अपना भार कम करके रावण को कैलाश पर्वत के नीचे दबने से बचा लिया | रावण की अभिलाषा जानकार शिवजी ने उसे अपने प्रतिबिम्ब के रूप में एक शिवलिंग दिया तथा कहा कि अगर लंका जाते समय तुमने इसे भूमि पर रखा तो यह जहां भी होगा वहीं स्थापित हो जाएगा | वह शिवलिंग लंका को ले जाते समय उसे लघु शंका लगने पर उसने वह शिवलिंग रास्ते में एक गडरिए को देखकर उसको  पकड़ा दिया तब शंकरजी ने शिवलिंग का भार बढ़ा दिया | गड़रिये को शिवलिंग भूमि पर रखना पड़ा रावण शिवलिंग को पूरी शक्ति लगाकर भी नहीं उखाड़ पाया तथा  समझ गया कि शंकर जी उसके साथ लंका जाना ही नहीं चाहते |

Even the learned people are unable to think about their actions and its consequences, something similar happened with Ravana. In awe of the powers gained by Lord Shiva, he tried to take them along with Kailash to Lanka, but due to the curiosity of Kailash, Mother Sati started sliding, then Sati cursed the water of Lanka becoming black and Lord Shankar put his thumb When he pressed Kailash from it, Lankapati Ravan started to get suppressed and his pride was crushed. As the pride of his ten heads and twenty arms broke, the clever Ravana praised Lord Shankar, the creator of the Tandava source, Lord Shankar was pleased and reduced his weight and saved Ravana from being buried under Mount Kailash. Shivaji, knowing the wishes of Ravana, gave him a Shivling as his own image and said that if you put it on the ground while going to Lanka, it will be installed wherever it is. While taking Shivalinga to Lanka, when he felt a small doubt, he caught him by seeing a shepherd on the Shivlinga way, then Shankarji increased the weight of Shivlinga. The shepherd had to keep the Shivling on the ground, Ravana could not overthrow the Shivling with full power and understood that Shankar ji does not want to go to Lanka with him.
 
रावण ने अपनी शक्ति के अहंकार में अनेक स्त्रियों का हरण किया व अनेक साधु संतों का वध किया जिसके फलस्वरूप श्री हरि भगवान विष्णु को प्रभु श्रीराम के रूप में उसका संहार करना पड़ा | रावण के पापों का कोई अंत ना था प्रभु श्री राम ने उसके पापों का घड़ा भरा देख दंभ, झूठ, छल , कपट , अराजकता , दुराचार और अभिमान के प्रतीक बन चुके रावण का कुलसमेत संहार किया | 

Ravana killed many women in the ego of his power and killed many saintly saints, as a result of which, Shri Hari, Lord Vishnu had to kill him in the form of Lord Shri Ram. There was no end to the sins of Ravana, Lord Shri Rama saw the pitcher of his sins filled with arrogance, lies, deceit, treachery, chaos, misconduct and pride.
 
 
रावण हमेशा पाप पर पुण्य, असत्य पर सत्य तथा अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक रहा है और रहेगा|  मेरा अनुरोध भक्त जनों से केवल इतना है कि पाप को कभी भी महामंडित ना करें अगर हम पाप को इसी प्रकार हम प्रोत्साहित करेंगे तो पुण्य की महिमा कम होती जाएगी और हमारी आने वाली पीढ़ी हमें कभी क्षमा ना करेगी | विद्वान तो आज के आतंकवादी भी हैं तो क्या हम उन्हें हतोत्साहित नहीं करना चाहिए ? हमारी युवा पीढ़ी को जागरूक बनाये रखना क्या हमारा कर्त्तव्य नही ? कौन पिता रावण जैसा पुत्र चाहेगा या कौन सी स्त्री ऐसे पति या भाई का सम्मान  करेगी ?  ज्ञान होना तथा ज्ञान देना सही है किंतु ऐसा ज्ञान किस काम का जो हमें और हमारे भविष्य को पछतावे के कुँए में धकेल दे | रावण के वध से हमें पाप पर पुण्य की विजय का महत्व और सन्देश का विस्तार अत्यंत जरुरी है | हमें आने वाली पीढ़ियों को कर्म ही प्रधान है समझाना ज़रूरी है क्यूंकि जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान् , जो महान हैं और रहेंगे वो हैं भगवान् श्री राम और उनके परम भक्त हनुमान | 

Ravana has always been and will remain a symbol of the victory of virtue over sin, truth over untruth and light over darkness. My request to devotees is only to never glorify sin. If we encourage sin in this way, then the glory of virtue will decrease and our future generations will never forgive us. Scholars are also terrorists of today, so should we not discourage them? Is it not our duty to keep our young generation aware? Who would want a son like father Ravana or which woman would respect such a husband or brother? It is right to have knowledge and to give knowledge, but what is the use of such knowledge that will push us and our future into the well of regret. With the slaughter of Ravana, we need the importance of the victory of virtue over sin and the expansion of the message. We need to explain to future generations that karma is the main thing because God will give the fruit as karma will do, those who are great and will live are Lord Shree Rama and his supreme devotee Hanuman.