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गुरुवार, 4 जून 2020

जय महर्षि विश्वामित्र ( Jai Meharishi Vishwamitra)

|| जय श्री राम ||
 
 
|| जय महर्षि विश्वामित्र || 


ज्ञान और तपस्या के बल पर साधारण मनुष्य से महाऋषि बनने की कहानी है गुरु विष्वामित्र की | तपस्या जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक है। .ब्रह्माजी तप करने पर ही सृष्टि की रचना कर सके थे। तपस्या के अंतर्गत चार प्रकार के संयम अपनाने पड़ते हैं—अर्थ संयम, समय संयम, विचार संयम और इंद्रिय संयम। विश्वामित्र जी ने १०००० वर्ष तक तपस्या की और राजऋषि कहलाये | 

Guru Vishwamitra's story of becoming a great sage from an ordinary man on the strength of knowledge and penance. Tapasya is very important for life. .Brahmaji was able to create the world only by meditating. Four types of sobriety are to be adopted under austerity - Earth sobriety, time sobriety, thought sobriety and sense sobriety. Vishwamitra did penance for 10000 years and was called Rajrishi.

 
युगों पूर्व एक शक्तिशाली एवम प्रिय क्षत्रिय राजा थे कौशिक | कौशिक एक महान राजा थे इनके संरक्षण में प्रजा खुशहाल थी | एक बार वे अपनी विशाल सेना के साथ जंगल की तरफ गये रास्ते में महर्षि वशिष्ठ का आश्रम पड़ा जहाँ रुककर उन्होंने महर्षि से भेंट की | गुरु वशिष्ठ ने राजा कौशिक का बहुत अच्छा आतिथी सत्कार किया और उनकी विशाल सेना को भर पेट भोजन भी कराया | यह देख राजा कौशिक को बहुत आश्चर्य हुआ कि कैसे एक ब्राह्मण इतनी विशाल सेना को इतने स्वादिष्ट व्यंजन खिला सकता हैं | उनकी जिज्ञासा शांत करने के लिये उन्होंने गुरु वशिष्ठ से प्रश्न किया – हे गुरुवर ! मैं यह जानने की उत्सुक हूँ कि कैसे आपने मेरी विशाल सेना के लिए इतने प्रकार के स्वादिष्ट भोजन का प्रबंध किया | तब गुरु वशिष्ठ ने बताया – हे राजन ! मेरे पास मेरी नंदिनी गाय हैं जो कि स्वर्ग की कामधेनु गया की बछड़ी हैं जिसे मुझे स्वयं इंद्र ने भेट की थी | मेरी नंदनी कई जीवो का पोषण कर सकती हैं | नंदनी के बारे में जानकर राजा कौशिक के मन में इच्छा उत्पन्न हुई और उन्होंने कहा – हे गुरुवर! मुझे आपकी नंदनी चाहिये बदले में आप जितना धन चाहे मुझसे ले ले | गुरु वशिष्ठ ने हाथ जोड़कर निवेदन किया – हे राजन ! नंदनी मुझे अत्यंत प्रिय हैं वो सदा से मेरे साथ रही हैं मुझसे बाते करती हैं मैं अपनी नंदनी का मोल नहीं लगा सकता वो मेरे लिए अनमोल प्राण प्रिय हैं | राजा कौशिक इसे अपना अनादर समझते हैं और क्रोध में आकर सेना को आदेश देते हैं कि वो बल के जरिये नंदनी को गुरु से छीन ले | आदेश पाते ही सैनिक नंदनी को हाँकने का प्रयास करते हैं लेकिन नंदनी एक साधारण गाय नहीं थी वो अपने पालक गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लेकर अपनी योग माया की शक्ति से राजा की विशाल सेना को ध्वस्त कर देती हैं और राजा को बंदी बनाकर वशिष्ठ के सामने लाकर खड़ा कर देती हैं | वशिष्ठ अपनी सेना के नाश से क्रोधित हो गुरु वशिष्ठ पर आक्रमण करते हैं  गुरु वशिष्ठ क्रोधित हो जाते हैं और राजा के एक पुत्र को छोड़ सभी को शाप देकर भस्म कर देते हैं | अपने पुत्र के इस अंत से दुखी कौशिक अपना राज पाठ अपने एक पुत्र को सौंप तपस्या के लिये हिमालय चले जाते हैं और हिमालय में कठिन तपस्या से वे भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं | भगवान शिव प्रकट होकर राजा को वरदान मांगने का कहते हैं | तब राजा कौशिक शिव जी से सभी दिव्यास्त्र का ज्ञान मांगते हैं | शिव जी उन्हें सभी शस्त्रों से सुशोभित करते हैं |

Kaushik was a powerful and beloved Kshatriya king ages ago. Kaushik was a great king and the people were happy under his patronage. Once, on the way to the forest with his huge army, he had the ashram of Maharishi Vasistha where he stopped and met Maharishi. Guru Vashistha gave very good hospitality to King Kaushik and also fed his huge army with food. Seeing this, King Kaushik was very surprised that how a Brahmin can feed such a delicious dish to such a huge army. To calm his curiosity, he questioned Guru Vashist - O Guruvar! I am curious to know how you have arranged such a delicious meal for my huge army. Then Guru Vashistha said - O Rajan! I have my Nandini cow which is the calf of Kamdhenu Gaya of heaven, which was given to me by Indra himself. My Nandni can nurture many lives. Knowing about Nandni, a desire arose in King Kaushik's mind and he said - O Guruvar! I want your Nandini to take as much money as you want from me. Guru Vashistha pleaded with folded hands - O Rajan! Nandani is very dear to me, she has always been with me, I talk to me, I cannot afford my Nandni, she is dear to me. King Kaushik considers this to be disrespect and in anger, orders the army to snatch Nandni from the Guru by force. On getting the order, the soldiers try to grab Nandani, but Nandani was not an ordinary cow, she takes orders from her foster guru Vasistha and demolishes the huge army of the king with the power of her yoga maya and brings the king captive in front of Vasishtha. Makes it stand. Vashistha gets angry at the destruction of his army and attacks Guru Vashistha, Guru Vashishta gets angry and curses everyone except one son of the king and consumes him. Unhappy with this end of his son, Kaushik goes to the Himalayas for penance handed over his secret lesson to one of his sons and he pleases Lord Shiva with hard penance in the Himalayas. Lord Shiva appears and asks the king to ask for a boon. Then King Kaushik asks Shiva to have knowledge of all the divyastras. Lord Shiva adorns them with all weapons.
 

धनुर्विद्या का पूर्ण ज्ञान होने के बाद राजा कौशिक पुनः अपने पुत्रों की मृत्यु का बदला लेने के लिये वशिष्ठ पर आक्रमण करते हैं और दोनों तरफ से घमासान युद्ध शुरू हो जाता हैं | राजा के छोड़े हर एक शस्त्र को वशिष्ठ निष्फल कर देते हैं | अंतः वे क्रोधित होकर कौशिक पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं जिससे चारो तरफ तीव्र ज्वाला उठने लगती हैं तब सभी देवता वशिष्ठ जी से अनुरोध करते हैं कि वे अपना ब्रह्मास्त्र वापस ग्रहण कर ले | वे कौशिक से जीत चुके हैं इसलिए वे पृथ्वी की इस ब्रह्मास्त्र से रक्षा करें | सभी के अनुरोध और रक्षा के लिए वशिष्ठ शांत हो जाते हैं ब्रह्मास्त्र वापस ले लेते हैं | वशिष्ठ से मिली हार के कारण कौशिक राजा के मन को बहुत गहरा आघात पहुँचता हैं वे समझ जाते हैं कि एक क्षत्रिय की बाहरी ताकत किसी ब्राह्मण की योग की ताकत के आगे कुछ नहीं इसलिये वे यह फैसला करते हैं कि वे अपनी तपस्या से ब्रह्मत्व हासिल करेंगे और वशिष्ठ से श्रेष्ठ बनेंगे और वे दक्षिण दिशा में जाकर अपनी तपस्या शुरू करते हैं जिसमे वे अन्न का त्याग कर फल फुल पर जीवन व्यापन करने लगते हैं | उनकी कठिन तपस्या से उन्हें राजश्री का पद मिलता हैं | अभी भी कौशिक दुखी थे क्यूंकि वे संतुष्ट नहीं थे |
 
एक राजा थे त्रिशंकु, उनकी इच्छा थी कि वे अपने शरीर के साथ स्वर्ग जाना जाते थे जो कि पृकृति के नियमों के अनुरूप नहीं था | इसके लिए त्रिशंकु वशिष्ठ के पास गये पर उन्होंने नियमो के विरुद्ध ना जाने का फैसला लिया और त्रिशंकु को खाली हाथ लौटना पड़ा | फिर त्रिशंकु वशिष्ठ के पुत्रों के पास गये और अपनी इच्छा बताई तब पुत्रों ने क्रोधित होकर उन्हे चांडाल हो जाने का शाप दिया क्यूंकि उन्होंने ने इसे अपने पिता का अपमान समझा | फिर भी त्रिशंकु नहीं माने और विश्वामित्र के पास गये | तब विश्वामित्र ने उन्हें उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया जिस हेतु उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया और इसके लिये कई ब्राह्मणों को न्यौता भेजा जिनमे वशिष्ठ के पुत्र भी थे | वशिष्ठ के पुत्रों ने यज्ञ का तिरस्कार किया उन्होंने कहा – हम ऐसे यज्ञ का हिस्सा कतई नहीं बनेगे जिसमे चांडाल के लिए हो और किसी क्षत्रिय पुरोहित के द्वारा किया जा रहा हो | उनके ऐसे वचनों को सुन विश्वामित्र ने उन्हें शाप दे दिया और वशिष्ठ के पुत्रो की मृत्यु हो गई | यह सब देखकर अन्य सभी भयभीत हो गये और यज्ञ का हिस्सा बन गये | यज्ञ पूरा किया गया जिसके बाद देवताओं का आव्हाहन किया गया लेकिन देवता नहीं आये तब विश्वामित्र ने क्रोधित होकर अपने तप के बल पर त्रिशंकु को शारीर के साथ स्वर्ग लोक भेजा लेकिन इंद्र ने उसे यह कह कर वापस कर दिया कि वो शापित हैं इसलिये स्वर्ग में रहने योग्य नहीं हैं | त्रिशंकु का शरीर बीच में ही रह गया तब विश्वामित्र ने अपने वचन को पूरा करने के लिये त्रिशंकु के लिए नये स्वर्ग एवम सप्त ऋषि की रचना की | इस सब से देवताओं को उनकी सत्ता हिलती दिखाई दी तब उन्होंने विश्वामित्र से प्रार्थना की | तब विश्वामित्र ने कहा कि मैंने अपना वचन पूरा करने के लिए यह सब किया हैं अब से त्रिशंकु इसी नक्षत्र में रहेगा और देवताओं की सत्ता को कोई हानि नहीं होगी |
इस सबके बाद विश्वामित्र ने फिर से अपनी ब्रह्मर्षि बनने की इच्छा को पूरा करना चाहा और फिर से तपस्या में लग गए | कठिन से कठिन ताप किये | श्वास रोक कर तपस्या की | उनके शरीर का तेज सूर्य से भी ज्यादा प्रज्ज्वलित होने लगा और उनके क्रोध पर भी उन्हें विजय प्राप्त हुई तब जाकर ब्रह्माजी ने उन्हें ब्रह्मर्षि का पद दिया और तब विश्वामित्र ने उनसे ॐ का ज्ञान भी प्राप्त किया और गायत्री मन्त्र को जाना |उनके इस कठिन त़प के बाद वशिष्ठ ने भी उन्हें आलिंग किया और ब्राह्मण के रूप में स्वीकार किया | और तब जाकर इनमे कौशिक से महर्षि विश्वामित्र का नाम प्राप्त हुआ |
 
जब विश्वामित्र साधना में लीन थे | तब इंद्र को लगा कि वे आशीर्वाद में इंद्र लोक मांगेंगे इसलिये उन्होंने स्वर्ग की अप्सरा को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने भेजा चूँकि मेनका बहुत सुंदर थी विश्वामित्र जैसा योगी भी उसके सामने हार गया और उसके प्रेम में लीन हो गया | मेनका को भी विश्वामित्र से प्रेम हो गया | दोनों वर्षों तक संग रहे तब उनकी संतान शकुंतला ने जन्म लिया लेकिन जब विश्वामित्र को ज्ञात हुआ कि मेनका स्वर्ग की अप्सरा हैं और इंद्र द्वारा भेजी गई हैं तब विश्वामित्र ने मेनका को शाप दिया | इन दोनों की पुत्री पृथ्वी पर ही पली बड़ी और बाद में राजा दुष्यंत से उनका विवाह हुआ और दोनों की सन्तान भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा |
 
विश्वामित्र ने शस्त्रों का त्याग कर दिया था इसलिए वे स्वयं राक्षसी ताड़का से युद्ध नहीं कर सकते थे इसलिये उन्होंने अयोध्या से भगवान राम को जनकपुरी में लाकर ताड़का का वध करवाया |ताड़का रावण के मामा सूण्ड की पत्नी तथा सुबाहु तथा मारीच की माता थी |  मार्ग में उन्होंने राम तथा लक्ष्मण को "बाला-अतिचाला" नामक दो विद्या सिखायीं जिनसे भूख , प्यास, थकान , रोग तथा अचानक से शत्रु का वार आदि नहीं हो पाता | विश्वामित्र जी के मार्गदर्शन मैं भगवान् राम ने अहिल्या का उद्धार किया | इन्ही विश्वामित्र के कहने पर भगवान राम ने सीता के स्वयम्बर में हिस्सा लिया तथा शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर स्वयम्बर को जीता | 
 
 

रविवार, 31 मई 2020

जय सुमित्रा माता

|| जय सिया राम || 
 
 
|| जय सुमित्रा माता || 
 
 
राजा दशरथ की तीन रानियों में से एक माता सुमित्रा भी थी|   तीनो रानियों में से सुमित्रा जी का रामायण में बहुत ही संक्षिप्त उल्लेख मिलता है| सुमित्रा जी के बारे मैं हालाँकि अधिक नहीं कहा गया हैं किन्तु रामायण के सभी पात्रों मैं सुमित्रा जी की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी और रानियों की | कम उल्लेख होने की वजह से लगता है जैसे राजा दशरथ ने उनकी उपेक्षा की हो किन्तु ऐसा नहीं है क्यूंकि कथा के अनुसार सुमित्रा जी का व्यक्तित्व भी और रानियों अथवा माताओं की भाँती बहुत ही प्रभावशाली था | 
 
 
राजा दशरथ के आग्रह पर गुरु वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। मुनि के भक्ति सहित आहुतियाँ देने पर अग्निदेव हाथ में चरु (हविष्यान्न खीर) लिए प्रकट हुए (और दशरथ से बोले-) वशिष्ठ जी ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया। हे राजन्‌! (अब) तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो| (और दशरथ से बोले-) वशिष्ठ ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया। हे राजन्‌! (अब) तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो|  उसी समय राजा दशरथ ने अपनी प्यारी पत्नियों को बुलाया। कौसल्या आदि सब (रानियाँ) वहाँ चली आईं। राजा ने (पायस का) आधा भाग कौसल्या को दिया, (और शेष) आधे के दो भाग किए| वह (उनमें से एक भाग) राजा ने कैकेयी को दिया। शेष जो बच रहा उसके फिर दो भाग हुए और राजा ने उनको भी कौसल्या और कैकेयी के हाथ पर रखकर दिया दोनों ही रानियों ने उन दोनों भागो को सुमित्रा जी को दिया जिसके फलस्वरूप उनके दो जुड़वाँ पुत्र - लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए | इस घटना मैं अत्यंत रोचक बात यह हुए की जिस भाग 
को कौशल्या जी ने सुमित्रा जी को दिया था उसके परिणाम मैं लक्ष्मण जी ने जन्म लिया और लक्ष्मण जी सदा कौशल्या जी के पुत्र राम का अनुसरण करते रहे तथा खीर के जिस भाग को रानी केकयी ने सुमित्रा जी को दिया था उसके फलस्वरूप शत्रुघ्न जी ने जन्म लिया और सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न जी सदा केकयी पुत्र भरत जी का अनुसरण करते रहे |  
 
माता सुमित्रा भी सदा बड़ी रानी कौशल्या जी की सेवा मैं लगी रहती थी तथा सभी बालको से इतना स्नेह करती थी चारों बालक माता सीता के पास ही सोते थे | उनकी धर्मपूर्ण एवं बुद्धिमत्ता पूर्ण बातों का पता हमें तब पता चलता है जब वनवास जाने के पहले लक्ष्मण जी उनसे आज्ञा लेने आते हैं और कहते हैं की वह भी भगवान् राम के साथ वन जाना चाहते हैं तभी सुमित्रा जी बिना विलम्ब एवं हिचकिचाहट के उन्हें कहती हैं पुत्र जहाँ राम जी है वहीं अयोध्या है क्यूंकि भगवान राम सूर्य के समान हैं उनके बिना इस नगरी मैं तो अन्धकार ही अंधकार है, जहाँ राम है वहीँ उनकी निष्ठापूर्वक सेवा करना तुम्हारा कर्तव्य है प्रभु राम के बिना तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं और जब राजा राम लौटकर आते हैं तब सभी के मुख से लक्ष्मण जी की प्रशंसा सुनकर की किस प्रकार उन्होंने श्री सीताराम की सेवा की तथा घनघोर वीरता का प्रदर्शन करते हुए इंद्रजीत आदि भीषण राक्षसों का वध किया माता सुमित्रा ने गदगद होकर अपने पुत्र लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया तथा कहा की पुत्र तुमने मेरी कोख की लाज रख ली | 
 
 
सुमित्रा माता का भले ही कवियों ने कथाओं मैं कम वर्णन किया हो सुमित्रा जी की महत्वता किसी भी प्रकार से कम नहीं होती | सुमित्रा माता को सदा ही अपनी ममता, बुद्धिमता तथा धर्मपरायणता के लिए याद किया जाएगा |  
 
 
 


गुरुवार, 21 मई 2020

राम राम जी ( Rama - The God of peace & dignity )

|| जय श्रीराम || 

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ||
 
 
 
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥1॥

भावार्थ:-शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥


Meaning: - Shanta, Sanatana, Irrepressible (beyond proofs), sinless, salvation-giving peace, serving continuously from Brahma, Shambhu and Sheshaji, knowable by Vedanta, omnipresent, the greatest of gods, appearing in human form from Maya , Who defeats all sins, mine of compassion, I praise the Jagadishwar, who is exalted in Raghukul and is called Shiromani Ram of kings.

पतित पावन सीताराम अर्थात पापियों को भी पवित्र करने वाली कथा है भगवान् राम की रामायण जिसमे मर्यादा पुरषोत्तम राम और उनकी पत्नी जनक पुत्री जानकी अर्थात सीता जी ने संसार को धर्म के मार्ग पर चलते हुए जीवन जीना सिखाया है |

 The story of the Purifier Sitaram, that purifies even sinners, is the Ramayana of Lord Rama, in which Maryada Purushottam Ram and his wife Janaka's daughter Janaki means Sita Ji have taught the world to live on the path of religion.
 
राम दुनिया का एक मात्र नाम जिसे सुनते ही मन को मिलता है विश्राम | यह नाम मात्र एक शब्द नहीं बल्कि येह अपने आप मैं एक मंत्र है जिसका जाप सदाशिव भोले शंकर सहित ब्रह्माण्ड के सभी सत्संगी साधुओं, देवी -देवताओं , नर -नारी यहाँ तक की पशु-पक्षियों ने भी  किया है | राम का अर्थ है प्रकाश या तेज़ (भीतर का प्रकाश) | 'रा ' का अर्थ आभा या कान्ति है और 'म' का अर्थ है मैं या स्वयं | 'ॐ ' का अर्थ बहना या विस्तार होना है | ओंकार ध्वनि के १०० से अधिक अर्थ हैं | 'ॐ राम' का अर्थ है खुद के तेज का विस्तार |'ॐ राम" परस्पर जुड़ते हैं तो अपने आपमें आध्यात्मिकता की ऊचाइयों  और भक्ति की गहराईयों को छूने में सक्षम हैं | इसलिए भगवान शिव के लिए राम पूज्यनीय थे और भगवान् राम के लिए महादेव भोले शंकर |

Ram is the only name of the world that the mind gets rest on hearing. This name is not just a word but it is a mantra in its own right, which is chanted by Sadashiv Bhole Shankar, all the satsangi sadhus, goddesses, gods and goddesses and even birds and animals. Rama means light or fast (inner light). 'Ra' means Aura or Kanti and 'M' means I or myself. 'ॐ' means to flow or expand. Omkar sound has more than 100 meanings. 'ॐ Rama' means the expansion of one's own glory. "ॐ Rama" is able to touch the heights of spirituality and the depths of devotion in themselves. So Rama was revered for Lord Shiva and Mahadev for Lord Rama. Bhole Shankar

राम कथा में दर्शाया गया है की कैसे एक साधारण मनुष्य भी मर्यादा का पालन करते हुए देवताओं के समान पूजनीय हो जाता है | भगवान् राम ने अनेक कष्टों का दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए हम साधारण लोगो को असाधारण उदाहरण दिए ताकि हम भी उनकी भांति अपने दुखो का सामना करते हुए और मुस्कुराते हुए इस भवसागर को पार पा सके | 
 
Ram Katha depicts how an ordinary person also worships dignity and becomes revered like the gods. Lord Rama faced many sufferings strongly and gave extraordinary examples to ordinary people so that we, like him, could overcome this bhavasagar while facing our sufferings and smiling.
 
 
राम कथा अनेक प्रकार से अनेक महात्माओं ने व् लोगो ने लिखी, कही और सुनी | ऐसा क्या है इनकी कथा में की युगो से चलती आ रही इस कथा को आज भी लोग ह्रदय  से लगा कर सुनते है , ऐसा क्यों है की अनेक हिन्दू देवी देवताओं के मध्य में केवल श्री राम की कथा ही सबसे अधिक लोकप्रिय है | कदापि इसकी वजह यह तो नहीं  की हम आज भी  खुद को  श्री राम जी  की कथा से जोड़कर  देखते हैं , क्यूंकि उन्होंने भगवान होते  हुए भी साधारण मनुषय की भांति अनेक दुखो के होते हुए भी मर्यादा मैं जीवन जिया |   
 
Ram Katha was written and said and heard by many Mahatmas in many ways. What is it that in this story, people continue to listen to this story going on from Yugo even today, why is it that the story of Shri Ram is the most popular among many Hindu deities. May it not be the reason that even today, we see ourselves associated with the story of Shri Ram ji, because he, despite being God, lived life in dignity in spite of many sorrows like ordinary humans.
 
राम नाम शांति ही नहीं शक्ति का भी प्रतीक है क्यूंकि यह नाम पत्थरो को भी पानी मैं तैरा देता  है | वीर हनुमान इन्हीं  का नाम ले के ही समुन्द्र लाँघ गए | जिनके चरण छूते ही एक पत्थर देवी अहिल्या बन स्वर्ग चली गयी , जिनके वन मैं जाते ही  दशरथ जी  के प्राण ही  छूट गए और भी कई  उदाहरण हैं जो राम नाम की महिमा का बखान करते है| इसी से जुडी एक रोचक कथा का वर्णन करते हुए हर्ष होता है :-
 
The name Ram is not only a symbol of peace but also of power because this name also swims in stones in water. Veer Hanuman went to the sea after taking his name only. On touching whose feet, a stone became Goddess Ahilya and went to heaven, as soon as I went to the forest, I lost the life of Dasharatha ji and there are many examples which speak of the glory of Rama's name. It is delightful to describe an interesting story related to this: -
 
एक गुरु युवा बालकों के एक समूह को विष्णु सहस्त्रनाम सिखा रहे थे। गुरु ने श्लोक दोहराया:

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥
फिर उन्होंने लड़कों से कहा, अगर तुम तीन बार राम नाम का जाप करते हो तो यह सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या १००० बार ईश्वर के नाम का जाप करने के बराबर है।

उनमें से एक लड़का अध्यापक से सहमत नहीं था। उसने शिक्षक से प्रशन किया, गुरूजी! ३ बार = १००० बार कैसे हो सकता है? मुझे इसका तर्क समझ में नहीं आया। ३ नाम = १००० नाम कैसे?

A guru was teaching Vishnu Sahasranama to a group of young boys. The Guru repeated the verse:
Shri Ram Ram Rameti Ramay Ramay Manorama.
Sahasranama Tattulya Ramnam Varanane॥

Then he told the boys, if you chant the name of Rama thrice, it is equivalent to chanting the complete Vishnu Sahastranam or the name of God 1000 times. One of the boys did not agree with the teacher. He questioned the teacher, Master! How can 3 times = 1000 times? I do not understand the logic of this. 3 names = 1000 names how?

ज्ञानी तथा निपुण गुरु, जो भगवान राम के एक महान भक्त थे, ने अति सरलता से समझाया, भगवान शिव कहतें हैं कि भगवान राम का नाम सभी शब्दों से अधिक मधुर है और इस नाम का जाप, सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु के १००० नामों के जाप के समतुल्य है।

The learned and accomplished guru, who was a great devotee of Lord Rama, explained very simply, Lord Shiva says that Lord Rama's name is more melodious than all words and the chanting of this name, the complete Vishnu Sahastranama or 1000 names of Vishnu. Is equivalent to chanting.

इस बात की पुष्टि करने के लिए कि ३ बार राम नाम का जाप = १००० बार या सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम के जाप के बराबर है, यहाँ एक दिलचस्प संख्यात्मक गणना है-
राम के नाम में संस्कृत के दो अक्षर हैं- र एवं म

To confirm that 3 times the name of Rama is equal to 1000 times or the entire Vishnu Sahasranama recitation, here is an interesting numerical calculation- Ram has two Sanskrit letters in his name - R and M

र (संस्कृत का द्वितीय व्यंजन : य, र, ल, व, स, श)
म (संस्कृत का पाँचवा व्यंजन : प, फ, ब, भ, म)
र और म के स्थान पर २ तथा ५ रखने से राम = २* ५= १०
अतः तीन बार राम राम राम बोलना = २ * ५* २* ५* २* ५ = १० * १० * १० = १०००
इस प्रकार ३ बार राम नाम का जाप १००० बार के बराबर है।

R (Second consonant of Sanskrit: Y, R, L, V, S, SH) M (fifth Sanskrit consonant: p, f, b, b, m) By placing 2 and 5 in place of R and M, Ram = 2 * 5 = 10 So three times Ram Ram Ram speak = 2 * 5 * 2 * 5 * 2 * 5 = 10 * 10 * 10 = 1000 Thus chanting of Ram Naam 3 times is equal to 1000 times


बालक इस उत्तर से प्रसन्न हुआ और उसने पूरी एकाग्रता और निष्ठा से विष्णुसहस्त्रनाम सिखना शुरू कर दिया।

The child was pleased with this answer and started learning Vishnushastranama with full concentration and devotion.
 
राम जी सदियों से भारतवर्ष तथा हिन्दुओं के आदर्श नायक रहें हैं और सदा रहेंगे| पिछले कुछ समय से लोग नए नए प्रेरक वक्ता तथा प्रेरक कथा कहानियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं जबकि भगवान् राम जैसा प्रेरक तो किसी से भी अछुता नहीं | जीवन के हर पहलु को भगवान् राम ने आदर्श रूप में खुद जिया तथा हम लोगो के लिए उत्कृष्ट उदहारण बने | जीवन के उतार चढ़ाव को निष्काम भाव से जीना प्रभु राम से अच्छा कौन सीखा सकता है | कभी सुख में बहुत खुश नहीं होना चाहिए ना ही दुःख के समय खुद का संयम खोना चाहिए ऐसा जीवन जी  भगवान राम ने हम लोगो के लिए आदर्श स्थापित किये | राजा बनते बनते एक राजकुमार को वनवासी बना दिया गया किन्तु भगवान् राम बोले मुझे तो तीनो लोको का राजा बना दिया मेरे माता पिता ने , भाई भरत के प्रेम को सर्वोपरि मानते हुए भगवान् राम ने राज्य स्वीकार तो किया किन्तु कहा की पिता का वचन झूठा ना हो इसलिए राजकाज तुम ही देखो  और खुद १२ वर्ष तक वन में कंद मूल खाते रहे , पत्नी का हरण हुआ फिर भी संयम ना खोया पहले सुग्रीव से मित्रता निभाते हुए उसे उसकी पत्नी दिलवाई फिर अपनी मदद करने की याद दिलाई, समुद्र को एक बाण से सूखा सकते थे किन्तु तीन दिन तक उसे पूजा पाठ से मनाते रहे , खुद नंगे पैर थे पर विभीषण को लंका का राजा क्षण भर में बना दिया , मेघनाद जिसने उन्हे नागपाश में बांधा तथा लक्ष्मण को मूर्छित किया उसके शव को सम्मान के साथ लंका भिजवा दिया, महाकपटी रावण को मारा पर मृत्युशैया पर बैठे रावण का  निरादर नहीं किया अंतिम समय भी लक्षमण जी को रावण का मान रखने के लिए उसके पास राजनीती सीखने भेज दिया विकट परिस्थितियों में भी अपना संयम ना खोकर ही राम जी मर्यादापुर्षोत्तम कहलाये | 
 
Ram Ji has been the ideal hero of India and Hindus for centuries and will always be. People have been getting attracted to new inspirational speakers and inspiring stories from the past few times, whereas motivators like Lord Ram are not untouched by anyone. Lord Ram himself lived every aspect of life in the ideal form and we became excellent examples for people.Who can teach life to the ups and downs of life better than Lord Rama? One should never be very happy in happiness, nor should we lose our self-control in times of grief, Lord Ram set such a life for us.On becoming a king, a prince was made a forest dweller, but Lord Ram said that he has made me the king of all the three locos. My parents, considering the love of brother Bharat as paramount, Lord Ram accepted the kingdom but said that the father's word is not false So you look at the kingdom and keep eating tuber root in the forest for 12 years itself, wife is not lost, yet lost control, first befriended Sugriva and reminded him to help his wife, and then help her,You could dry the sea with an arrow, but for three days kept him from worshiping him, he himself was barefoot, but made Vibhishana the king of Lanka in a moment, Meghnad who tied him in Nagpash and made Lakshman to honor his dead body. Sent Lankan with, Mahakapati killed Ravan but did not disrespect Ravana sitting on the mortuary, even at the last time, Laxman ji was sent to him to learn politics by keeping him in the form of Ravana, in spite of not losing his restraint even under difficult circumstances, Ram ji was called Maryadapurshottam.

 
भगवान् राम ने यह धर्मयुद्ध केवल अपनीं पत्नी के लिए नहीं बल्कि संसार की सभी नारियों के सम्मान के लिए लड़ा ताकि रावण का उदाहरण देकर दुष्टों को अपने पापों के लिए सचेत किया जा सके |
 
Lord Rama fought this crusade not only for his wife but for the honor of all the women of the world so that by giving the example of Ravana, the wicked could be warned of their sins.

                    Link: https://youtu.be/6KejDHNefiM