शुक्रवार, 29 मई 2020

जय शत्रुघन जी (Shatrughana)

|| जय सिया राम || 

|| जय शत्रुघन जी || 
 
जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा॥
 
 

अर्थात् जिनके स्मरण मात्र से शत्रु का नाश होता है, उनका वेदों में प्रसिद्ध 'शत्रुघ्न' नाम है। यदि व्यक्ति सर्वप्रथम अपने शत्रु का स्मरण कर उसके बाद शत्रुघ्नजी का स्मरण कर इस चमत्कारी चौपाई का जप करता रहता है, तो शत्रुघ्नजी या तो शत्रु के हृदय से शत्रुता समाप्त कर देते हैं, या शत्रु के अत्यंत दुष्ट या आसुरी शक्ति होने पर उसे विनष्ट कर देते हैं। भगवान श्रीराम के लघु भ्राता शत्रुघ्न जी का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है- शत्रु + घ्न (नाशक) अर्थात् शत्रु का विनाश करने वाले भगवान राम के अनुज |  

That is, the name of 'Shatrughna' is famous in the Vedas, whose enemies are destroyed by mere remembrance. If a person first remembers his enemy and then keeps chanting this miraculous footstep by remembering Shatrughnaji, then Shatrughnaji either ends the enmity with the heart of the enemy, or annihilates the enemy when he has extremely evil or demonic power. Give. The name of Lord Shri Ram's short brother Shatrughan Ji is made up of two words - Shatru + Ghan (destroyer) means Lord Rama who destroys the enemy.

 
शत्रुघ्न जी का चरित्र अत्यन्त विलक्षण था।  ये राजा दःसरथ तथा सुमित्रा के पुत्र व लक्ष्मण जी के छोटे तथा जुड़वाँ भाई थे |  ये मौन सेवाव्रती थे। बचपन से भरत का अनुगमन तथा सेवा ही इनका मुख्य व्रत था। ये मितभाषी, सदाचारी, सत्यवादी, विषय-विरागी तथा भगवान श्री राम के दासानुदास थे। जिस प्रकार लक्ष्मण हाथ में धनुष लेकर राम की रक्षा करते हुए उनके पीछे चलते थे, उसी प्रकार शत्रुघ्न भी भरत के साथ रहते थे। जब भरत के मामा युधाजित भरत को अपने साथ ले जा रहे थे, तब शत्रुघ्न भी उनके साथ ननिहाल चले गये। इन्होंने माता-पिता, भाई, नव-विवाहिता पत्नी सबका मोह छोड़कर भरत के साथ रहना और उनकी सेवा करना ही अपना कर्तव्य मान लिया था।

Shatrughan's character was very unique. He was the younger and twin brother of King Dasrath and Sumitra's son and Lakshman. These were silent servicemen. Since childhood, the main fast of Bharat was his service and service. These were reticent, virtuous, truthful, subjective and Dasanudas of Lord Shri Ram. Just as Lakshman used to protect Rama with a bow in his hand and follow him, similarly Shatrughna also lived with Bharata. When Bharatha's maternal uncle Yudhjit was taking Bharat with him, Shatrughna also went with him to Nanihal.He considered it his duty to live and serve with Bharata, leaving parents, brothers, newly married wife Sabka allure.
शत्रुघ्न भी अपने अन्य भाईयों के समान ही राम से बहुत स्नेह करते थे। जब भरत के साथ ननिहाल से लौटने पर उन्हें पिता के मरण और लक्ष्मण, सीता सहित श्री राम के वनवास का समाचार मिला, तब इनका हृदय दु: और शोक से व्याकुल हो गया। उसी समय इन्हें सूचना मिली कि जिस क्रूरा और पापिनी के षड्यन्त्र से श्री राम को वनवास हुआ, वह वस्त्राभूषणों से सज-धजकर खड़ी है, तब ये क्रोध से व्याकुल हो गये। ये मन्थरा की चोटी पकड़कर उसे आँगन में घसीटने लगे। इनके लात के प्रहार से उसका कूबर टूट गया और सिर फट गया उसकी दशा देखकर भरत को दया गयी और उन्होंने उसे छुड़ा दिया। इस घटना से शत्रुघ्न की श्री राम के प्रति दृढ़ निष्ठा और भक्ति का परिचय मिलता है। चित्रकूट से श्री राम की पादुकाएँ लेकर लौटते समय जब शत्रुघ्न श्री राम से मिले, तब इनके तेज़ स्वभाव को जानकर भगवान श्री राम ने कहा- 'शत्रुघ्न! तुम्हें मेरी और सीता की शपथ है, तुम माता कैकेयी की सेवा करना, उन पर कभी भी क्रोध मत करना' रामभक्त शत्रुघ्न जी ने अपने प्रभु की मनोकामना को सिर नवाया तथा मन से उसका पालन भी किया |
 
Shatrughan loved Rama very much like his other brothers. When returning from Nanihal with Bharata, he got the news of father's death and the exile of Sri Rama along with Lakshmana, Sita, then his heart became distraught with grief and sorrow. At the same time, they received information that the crura and the conspiracy of which Shri Rama had gone into exile, is standing prostrate with robes, then he was distraught with anger. He grabbed the top of Manthara and dragged it into the courtyard.His kick broke his head and broke his head, seeing his condition, Bharata felt pity and he rescued him. This incident shows Shatrughan's steadfast loyalty and devotion to Shri Rama. While returning from Chitrakoot with the footprints of Shri Ram, when Shatrughna met Shri Ram, knowing his fast nature, Lord Shri Ram said- 'Shatrughna! My oath to you and Sita, serve you mother Kaikeyi, never be angry with them '. Rambhakt Shatrughna ji gave head to the desire of his lord and also followed him with his heart.


जब रघुनाथ 14 वर्षों तक वनवास पे थे तब शत्रुघ्न ने भरत जी का अयोध्या में पूरा साथ दिया क्यूंकि भरत जी भी श्री राम  जी की चरन पादुका को सिंघासन पे रख के दूर नंदीग्राम कुटिया में  वनवासी के रूप में जीवन यापन करने लगे थे।  वो शत्रुघ्न ही थे जिन्होंने अयोध्या में रहते हुए राज्य के कार्य को सुचारु रूप से चलने में सहायता की एक निडर  सिपाही की तरह  राज्य की रक्षा की और अपनी सभी माताओं को अन्य तीन भाइयों के होने की कमी नहीं महसूस होने दी।
When Raghunath was on exile for 14 years, Shatrughan supported Bharat ji in Ayodhya because Bharat ji also started living as a forest dweller in Nandigram Kutia, away from the shrine of Shri Ram ji to Singhasan. It was Shatrughna who, while living in Ayodhya, helped the state function smoothly as a fearless soldier and did not let all his mothers feel the absence of the other three brothers.
शत्रुघ्न का शौर्य भी अनुपम था। सीता-वनवास के बाद एक दिन ऋषियों ने भगवान श्री राम की सभा में उपस्थित होकर लवणासुर के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। शत्रुघ्न ने भगवान श्री राम की आज्ञा से वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुर का वध किया और मधुपुरी बसाकर वहाँ बहुत दिनों तक शासन किया। लवणासुर अत्यंत बलशाली था तथा उसके पास शंकर जी का अमोघ त्रिशूल का प्रतिबिम्ब था जिसमे भगवान् शंकर की ही शक्ति थी जिसके होते हुए उसे मारना असंभव था | शत्रुघ्न जी ने बड़ी ही चतुराई दिखाई तथा जब लवणासुर त्रिशूल के बिना ही अपने नगर से निकला तब शत्रुघ्न जी ने लवणासुर को अकेले ही युद्ध के लिए ललकारा और उसका वध किया | भगवान राम जी ने तो विभीषण की ही भांति उनका राजतिलक कर उन्हें पहले ही मथुरा का राजा बना दिया था | मथुरा जाते समय वाल्मीकि जी ने बिना उन्हें बताये प्रभु राम के पुत्रों लव-कुश के जनम के समय उचित पूजा अर्चना उनके चाचा शत्रुघ्न जी से ही करवाई | 
 
Shatrughan's valor was also unique. One day after Sita-Vanvas, the sages, present in the meeting of Lord Shri Rama, described the atrocities of Lavanasura and prayed for the salvation of their atrocities by killing him. Shatrughan went there and killed the mighty Lavanasura, and ruled there for a long time after settling Madhupuri. Lavanasura was very powerful and he had the image of Shankara ji's unfathomable trident, which had the power of Lord Shankar, due to which it was impossible to kill him.Shatrughan ji showed very cleverness and when Lavanasura left his city without a trident, Shatrughan ji challenged Lavanasura to battle alone and killed him. Lord Rama had ruled him just like Vibhishan and made him king of Mathura earlier. On his way to Mathura, Valmiki did proper worship at the time of the birth of Lord Rama's sons Lav-Kush without offering them to his uncle Shatrughan.
 
भगवान श्री राम के परमधाम पधारने के समय मथुरा में अपने पुत्रों का राज्यभिषेक करके शत्रुघ्न अयोध्या पहुँचे। श्री राम के पास आकर और उनके चरणों में प्रणाम करके इन्होंने विनीत भाव से कहा- 'भगवन! मैं अपने दोनों पुत्रों को राज्यभिषेक करके आपके साथ चलने का निश्चय करके ही यहाँ आया हूँ। आप अब मुझे कोई दूसरी आज्ञा देकर अपने साथ चलने की अनुमति प्रदान करें।' भगवान श्री राम ने शत्रुघ्न की प्रार्थना स्वीकार की और वे श्री रामचन्द्र के साथ ही साकेत पधारे।

Shatrughna reached Ayodhya by enthroning his sons in Mathura at the time of the arrival of Lord Rama. Coming to Shri Rama and bowing at his feet, he said in a polite manner - 'Lord! I came here only after having coronated my two sons and decided to go with you. Now allow me to walk with you by not giving me any other command. ' Lord Shri Ram accepted Shatrughan's prayer and he came to Saket along with Shri Ramchandra.