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शुक्रवार, 22 मई 2020

माता जानकी ( Mata Janki )

|| राम राम जी ||

 

सीताराम सीताराम सीताराम कहिये |
जाहि विधि रखे राम ताहि विधि रहिये ||

Say Sitaram Sitaram Sitaram. Keep the law, stay Rama suggested method.

उपरोक्त भजन की पंक्तियाँ मनमोहक हैं साथ ही इनमे रहस्य भी है | वह  क्या है ?? आईये जानते  हैं |सीताराम भगवान राम के संग उनसे पहले आने वाला ये नाम माता जानकी का है | जो जनक जी की ज्येष्ठ पुत्री थी| माँ सीता मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी की धर्मपत्नी थी| माता सीता एक पतिव्रता स्त्री थी| माता सीता को माँ लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है|

The lines of the above hymn are enchanting as well as contain mystery. what is that ?? Come, let us know. Sitaram is the name of Goddess Janaki who comes before Lord Rama. Who was the eldest daughter of Janak ji. Mother Sita Maryada Purushottam was the consort of Lord Rama. Mother Sita was a loving woman. Mother Sita is also considered an incarnation of Goddess Lakshmi.

माँ लक्ष्मी का अवतार ?? क्या सच में  ?? माँ लक्ष्मीं का ध्यान करते ही क्या आता है मन में  ?? एक ऐसी तस्वीर जिसमे एक बहुत दिव्य स्त्री रूप अनेक  आभूषण धारण किये हुए  चारो और प्रकाश सोना , पन्ना , हीरे जवाहरात है ना ?? लेकिन सीता माता ?? उनके रूप का सोचे तो एक साधारण नारी गेरुए वस्त्र वन में घरेलु काम काज करती हुई कितना अंतर हैं ना ?? कल्पना करिये माता जानकी के दुःखों की राजा जनक के यहाँ पली  दशरथ की कुलवधू और जीवन का अधिकाँश समय वन में  अनेक दुखो के सहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन  जाना | उसपे भी लोगो के तानो से बचने के लिए अंत में धरती में  समां जाना | राम जी ने धर्म और मर्यादा के कीर्तिमान स्थापित किये वहीँ सीता जी के चरित्र में  हमने उन्हें सेवा, संयम, त्याग , धैर्य, शालीनता, हिम्मत, क्षमा और शांति की सीमा को पार पाया | 

Avatar of Maa Lakshmi ?? What really ?? What comes to mind as soon as we meditate on Mother Lakshmi? A picture in which a very divine woman is seen wearing various ornaments and has light gold, emerald, diamond jewels, right? But Sita mata ?? Think of their appearance, how much difference is there between an ordinary woman doing domestic work in the ocher cloth forest? Imagine Kulvadhu of Dasharatha, born in the birth of King Janaka, of the sorrows of mother Janaki, and most of his life, going to the forest to perform his duties in the face of many sorrows. In order to avoid the feelings of the people on that end, go to the earth. Ram ji established the records of religion and dignity, while in the character of Sita ji, we found him beyond the limits of service, restraint, sacrifice, patience, decency, courage, forgiveness and peace.
 
 
सीता जी की लक्ष्मी माता जैसी महिमा उनके विवाह के समय दिखाई पड़ती है। बारात के आगमन पर जनकपुर में अपने पिता की लज्जा रखने हेतु और श्रीरघुनंदन की मर्यादा के अनुकूल कुछ कार्य उन्होंने परोक्ष रूप से किया- 'जानी सियं बरात पुर आई। कहु निज महिमा प्रगटि जनाई।। हृदयं सुमिरि सब सिद्धि बुलाई। भूप पहुनई करन पठाई।। 'सीताजी सब सिद्धियों को बुलाकर राजा दशरथ एवं बारात के स्वागतार्थ भेजती हैं। सृष्टिकर्ता ब्रहमाजी जनकपुर की शोभा देखकर अचंभित हो गए, क्योंकि वहां की सजावट उनकी कृति से परे थी-'विधिहिं भयउ आचरजु विसेषी। निज रचना कहुं कतहुं न देखी।।'
The glory of Sita ji like Lakshmi Mata is seen at the time of her marriage. On the arrival of the procession, he indirectly did some work in Janakpur to take care of his father's shame and to suit the dignity of Sri Raghunandan- 'Jani siyi barat pur aayi. Kahu, His glory was revealed. Hridayin Sumiri summoned all the accomplishments. Bhup Pahunai Karan Pathai.'Sitaji summons all the siddhis and sends them to welcome King Dasharatha and Baaraat. Creator Brahmaji was astonished to see the beauty of Janakpur, because the decoration there was beyond his work - 'Vidhiin Bhayau Acharaju Visheshi. I have not seen my creations.

 


आज  कलयुग मैं लोग कहते हैं की अगर हमारे यहाँ लक्ष्मी जी हैं तो विदेश क्यूँ अमीर हैं| उन्ही तार्किक बुद्धिमानो ने  लेकिन क्या कभी सोचा की जब जब लक्ष्मीं जी नारी रूप मैं अवतरित हुई तो हमने क्या किया??  तिरस्कार, अपमान, आघात और अत्याचार के अलावा क्या दिया हमने नारी जाती को ?? उल्टा महाभारत की जड़ को द्रौपदी बताया ना  की उसका अपमान , रावण का काल सीता जी को बताया नाकि की उसकी कुटिल कुंठित अहंकार भरी बुद्धि को | सीता जी लक्ष्मी  रूप थी तभी तो वो सोने की लंका की रानी बनना अस्वीकार कर सकती थी ,  जानकी माता लक्ष्मी जी का अवतार थी तभी तो महलों के आराम को छोड़ पति के संग वनो में गयी उन्हें महलों की क्या कमी थी लेकिन मर्यादा पुरषोत्तम राम जी  का अनुसरण करते हुए ही उन्होंने अपना जीवनयापन किया | गर्भवती होते हुए भी रामजी की प्रतिष्ठा को बचाने वो वन मैं  गयी इतनी हिम्मत और शक्ति लक्ष्मी माता के अतिरिक्त और किस्मे है | राम जी चाहते थे सीता ऐसे ही रहे पर कह न सके, लेकिन अपने पति के मन की बात समझते ही उन्होंने त्याग के आदर्श स्थापित किये | रावण की राक्षसी दासियों के साथ रहने वाली सीता, त्रिजटा को अपनी माता मानने वाली सीता , वाल्मीकि आश्रम में भी अपनी शालीनता के लिए वनदेवी के रूप मैं प्रसिद्ध हुई वो माँ लक्ष्मी नहीं तो और कौन हैं | माता लक्ष्मी ही तो अग्नि परीक्षा दे सकती  थी क्यूंकि सोने परख अग्नि में ही तो होती है | 
Today in Kalyug, people say that if we have Lakshmi here, why are the foreigners rich? Those same logical intelligentsia, but have you ever thought that what did we do when Lakshmi ji emerged as a woman? Apart from disdain, insult, shock and torture, what have we given to the woman? On the other hand, the root of Mahabharata is not called Draupadi, its insult, Ravana's time was told to Sita ji and not to  Ravana's crooked frustrated ego.Sita ji was Lakshmi form then only she could refuse to become the queen of gold Lanka, Janaki's mother was the incarnation of Lakshmi ji, then she left the comfort of the palace and went to the forest with her husband, what was the lack of palaces but Maryada Purushottam Ram ji He made his living only by following. Despite being pregnant, she went to the forest to save Ramji's reputation, so much courage and strength are other than Lakshmi Mata. Ram Ji wanted Sita to remain like this but could not say it, but after understanding her husband's mind, she set the ideal of renunciation. Sita, who lives with Ravana's demonic maids, Sita, who considers Trijata as her mother, became famous as a Vanadevi for her decency even in Valmiki Ashram, who else, if not Ma Lakshmi. Goddess Lakshmi could have given the ordeal because gold is only in the fire test.

 
सीता जी की लक्ष्मी माता जैसी महिमा उनके विवाह के समय दिखाई पड़ती है। बारात के आगमन पर जनकपुर में अपने पिता की लज्जा रखने हेतु और श्रीरघुनंदन की मर्यादा के अनुकूल कुछ कार्य उन्होंने परोक्ष रूप से किया- 'जानी सियं बरात पुर आई। कहु निज महिमा प्रगटि जनाई।। हृदयं सुमिरि सब सिद्धि बुलाई। भूप पहुनई करन पठाई।। '
The glory of Sita ji like Lakshmi Mata is seen at the time of her marriage. On the arrival of the procession, he indirectly did some work in Janakpur to take care of his father's shame and to suit the dignity of Sri Raghunandan- 'Jani siyi barat pur aayi. Kahu, His glory was revealed. Hridayin Sumiri summoned all the accomplishments. Bhup Pahunai Karan Pathai. '
सीताजी सब सिद्धियों को बुलाकर राजा दशरथ एवं बारात के स्वागतार्थ भेजती हैं। सृष्टिकर्ता ब्रहमाजी जनकपुर की शोभा देखकर अचंभित हो गए, क्योंकि वहां की सजावट उनकी कृति से परे थी-'विधिहिं भयउ आचरजु विसेषी। निज रचना कहुं कतहुं न देखी।।'
Sitaji summons all the siddhis and sends them to welcome King Dasaratha and the procession. Creator Brahmaji was astonished to see the beauty of Janakpur, because the decoration there was beyond his work - 'Vidhiin Bhayau Acharaju Visheshi. I have not seen my creations.


 
 
मान्यता है कि भगवती सीता में सरस्वती, लक्ष्मी, काली की तरह सृजन-पालन-संहार की त्रिगुणात्मक शक्ति सन्निहित है। लेकिन वे जीव-मात्र पर अपना वात्सल्य लुटाती रहती हैं। तभी तो इन आद्या शक्ति की स्तुति में कहा गया है-'या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।' जो देवी सर्वत्र माता के रूप में स्थित है, उनको बारंबार नमस्कार है।

It is believed that Bhagwati Sita embodies the triggering power of creation-rearing-destruction like Saraswati, Lakshmi, Kali. But she keeps on looting her life. That is why it is said in praise of these Adya Shakti - 'or Goddess Sarvabhuteshu Matruroopen Sanstha. Namastasai namastasyaai namastasyaai namo nam:. ' The Goddess who is everywhere situated in the form of Mother, is greeted repeatedly.