|| जय सिया राम ||
|| जय कैकयी माता ||
रानी कैकयी राजा दशरथ की तीसरी रानी थी | वह बहुत रूपवती , गुणवती चतुर थी | कैकयी कैकया देश के नरेश राजा अश्वपति की पुत्री थी | इनके पिता राजा अश्वपति घोड़ों के भगवान थे | रानी कैकयी के सात भाई थे| राजा दशरथ की रानी कैकयी के प्रति विशेष स्नेह का कारण यह भी था कि वे बहुत ही चतुर तथा साहसी सारथि भी थी | देवासुर संग्राम के समय रानी कैकयी ने राजा दशरथ के प्राण बचाए थे तथा राजा दशरथ ने प्रसन्न होकर उन्हें दो वरदान दिए लेकिन कैकयी ने कहा कि इन वारदानो को संभाल कर रख लीजिए समय आने पर मैं आपसे खुद ही मांग लूंगी |
कैकयी का स्वभाव चतुर एवं चालाक था इसी कारण अपनी मुँह लगी दासी मंथरा के बहकावे में आसानी से आ गई| देवताओं ने जब देखा कि राम राजा बन जाएंगे तो रावण आदि राक्षसों का अंत कैसे होगा? तब देवी सरस्वती ने देवताओं की विनती पर दासी मंथरा की बुद्धि फेर दी तथा मंथरा ने कई प्रकार की बातें बनाकर रानी कैकयी को भी राजा दशरथ के विरुद्ध भड़का दिया | रानी कैकयी विधि के विधान के अनुसार उस समय साधारण स्त्री की भांति सोचने लगी कि अगर मंथरा ने जो बात कही वह सत्य ना हो जाए कहीं उनकी सौतन कोशल्या उन्हें अपने पुत्र राम के राजा बनते ही दासी ना बना दे | उस कालवश राम के प्रति उनका प्रेम भी क्षीण होता दिखा | उन्हें श्रीराम की कोमल मृदुवाणी भी असत्य के बाणों के समान तीखी लगने लगी थी | कालवश अपने पुत्र भरत के और अपने स्वार्थ को ही अपना हितेषी मानने लगी एकदम से इतना परिवर्तन और में इसलिए ही हुआ क्योंकि वे बहुत चतुर चालाक थी तथा माता कौशल्या की तरह सीधे स्वभाव की ना होना भी उनके स्वभाव परिवर्तन का कारण बना |
कैकयी माँ की ममता के बिना ही पली बड़ी थी | मंथरा ने उन्हें बचपन से ही पाला था तथा मंथरा अच्छी तरह से जानती थी कि कैसे राजविलासी कैकयी को बहकाया जा सकता है | देवप्रेरणा होने की वजह से मंथरा इसमें सफल भी हुई तथा रानी कैकयी को अपनी बातों के अंधे कुएं में ढकेल दिया | राजविलास की मारी रानी कैकयी विलासिता के लालच में आकर अनर्थ कर बैठी और भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास राजा दशरथ के हाथों दिलवा दिया |
उनकी भूल उन्हीं पर इतनी भारी पड़ी कि शेष जीवन रानी कैकयी पछताती रही| इतिहास में वह कुटील स्त्री के रूप में जानी जाती हैं किंतु इस प्रसंग को छोड़ दिया जाए तो बाकी शेष जीवन उन्होंने पश्चाताप के अश्रुओं या पति एवं सभी राजकुमारों के प्रेम अनुरूप ही व्यवहार किया था| रानी कैकयी पर मंथरा की कही बातों का मोह तब भंग हुआ जब भरत जी अपने नाना के यहां से लौटे| भरत जी को भी मंथरा और कैकयी ने अपनी बातों मैं बहकाना चाहा लेकिन भक्त शिरोमणि भरत कहां उनकी बातें मानने वाले थे| भरत जी ने जब अपने पिता की मृत्यु के बारे में तथा राम जी के वनवास का सुना तो क्रोध और दुःख से भर उठे | अपनी ही माता कैकयी का क्रोध में त्याग कर दिया किन्तु माता कौशल्या के अनुरोध पर बाद में उन्हें क्षमा कर दिया | भरत जी की धर्मपरायण बांतें सुनकर उनकी आंखों का अन्धकार भी छठ गया | उन्हें अहसास हो गया कि जब तक उन्होंने कुछ नहीं मांगा तब तक वह पटरानी थी लेकिन मांगते ही भिखारी बन गयी और सब कुछ खो दिया| जिससे मांगा गया वही पति राजा दशरथ स्वर्ग सिधार गए और जिसके लिए मांगा वही पुत्र भरत ठोकर मार कर गया| कैकयी के ऊपर दुनिया भर के लाँछन लगे यहां तक कि कई जगह राजा दशरथ की मृत्यु के लिए भी उन्हीं को राजा का काल माना गया |
चारों तरफ से जब उन्हें ठुकराया गया तब अकेले भगवान् श्री राम ही थे जिन्होंने उनका साथ दिया तथा भरत और शत्रुघ्न को पश्चाताप की अग्नि में जलती माता कैकयी की सेवा का आदेश दिया | सर्वज्ञानी भगवान राम तो जानते ही थे कि अगर अयोध्या में राजा बनकर रह जाते तो रावण का विनाश कैसे होता | माता कैकयी ही वह मार्ग खोलने का कारण बनी जिससे वह एक साधारण राजा बनने से बचे तथा तीनो लोको के स्वामी बने | कैकयी माता ने सबके अपमान को सहा किन्तु राम जी के प्रिय मधुर वचनो ने सदा उनको शीतलता प्रदान करी | राजा दशरथ की मृत्यु तो पुत्र वियोग में ही होनी थी क्योंकि उन्हें श्रवण कुमार के वध के कारण लगे श्राप का फल उन्हे मिलना ही था फिर रानी कैकयी को क्यों दोष दिया जाता है उनका दोष केवल कितना और क्यूँ है इसका हिसाब किताब परमज्ञानी लोग भी नहीं लगा सकते किंतु अगर राम बनवास ना जाते तो धर्मपालन के उपदेश जो हम आज तक सुनते आ रहे हैं क्या हमें मिलते? इस घोर कलयुग में हमें कैसे पता चलता की मर्यादा , धर्म और आदर्श का पालन करते हुए जीवन कैसे जिया जाता है ? तुलसीदासजी द्वारा लिखित रामचरितमानस की क्या विशेषता रहती अगर श्री राम एक वनवासी , योद्धा , ज्ञानी व मर्यादा के उदाहरण हमें ना देते | माता कैकयी ने लोकनिंदा लेकर भी तो जगत कल्याण हेतु राम कथा में अपना योगदान दिया है उसकी वंदना करनी चाहिए ना की निंदा | | कहा भी गया है 'ईश्वर यत करोति शोभनम एव करोति' अर्थात ईश्वर जो भी करता है भले के लिए ही करता है | मां कभी निंदनीय नहीं हो सकती है और माता कैकयी तो भगवान राम की प्रिय माता हैं उनका अपमान भगवान का ही अपमान है | जिस बात को भगवान राम अपने भाइयों को समझाते रहे उसे हमें भी उतना ही आदर देना चाहिए और प्रभु राम की अन्य बातों के समान ही सम्मान देना चाहिए|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें