रविवार, 31 मई 2020

जय सुमित्रा माता

|| जय सिया राम || 
 
 
|| जय सुमित्रा माता || 
 
 
राजा दशरथ की तीन रानियों में से एक माता सुमित्रा भी थी|   तीनो रानियों में से सुमित्रा जी का रामायण में बहुत ही संक्षिप्त उल्लेख मिलता है| सुमित्रा जी के बारे मैं हालाँकि अधिक नहीं कहा गया हैं किन्तु रामायण के सभी पात्रों मैं सुमित्रा जी की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी और रानियों की | कम उल्लेख होने की वजह से लगता है जैसे राजा दशरथ ने उनकी उपेक्षा की हो किन्तु ऐसा नहीं है क्यूंकि कथा के अनुसार सुमित्रा जी का व्यक्तित्व भी और रानियों अथवा माताओं की भाँती बहुत ही प्रभावशाली था | 
 
 
राजा दशरथ के आग्रह पर गुरु वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। मुनि के भक्ति सहित आहुतियाँ देने पर अग्निदेव हाथ में चरु (हविष्यान्न खीर) लिए प्रकट हुए (और दशरथ से बोले-) वशिष्ठ जी ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया। हे राजन्‌! (अब) तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो| (और दशरथ से बोले-) वशिष्ठ ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया। हे राजन्‌! (अब) तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो|  उसी समय राजा दशरथ ने अपनी प्यारी पत्नियों को बुलाया। कौसल्या आदि सब (रानियाँ) वहाँ चली आईं। राजा ने (पायस का) आधा भाग कौसल्या को दिया, (और शेष) आधे के दो भाग किए| वह (उनमें से एक भाग) राजा ने कैकेयी को दिया। शेष जो बच रहा उसके फिर दो भाग हुए और राजा ने उनको भी कौसल्या और कैकेयी के हाथ पर रखकर दिया दोनों ही रानियों ने उन दोनों भागो को सुमित्रा जी को दिया जिसके फलस्वरूप उनके दो जुड़वाँ पुत्र - लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए | इस घटना मैं अत्यंत रोचक बात यह हुए की जिस भाग 
को कौशल्या जी ने सुमित्रा जी को दिया था उसके परिणाम मैं लक्ष्मण जी ने जन्म लिया और लक्ष्मण जी सदा कौशल्या जी के पुत्र राम का अनुसरण करते रहे तथा खीर के जिस भाग को रानी केकयी ने सुमित्रा जी को दिया था उसके फलस्वरूप शत्रुघ्न जी ने जन्म लिया और सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न जी सदा केकयी पुत्र भरत जी का अनुसरण करते रहे |  
 
माता सुमित्रा भी सदा बड़ी रानी कौशल्या जी की सेवा मैं लगी रहती थी तथा सभी बालको से इतना स्नेह करती थी चारों बालक माता सीता के पास ही सोते थे | उनकी धर्मपूर्ण एवं बुद्धिमत्ता पूर्ण बातों का पता हमें तब पता चलता है जब वनवास जाने के पहले लक्ष्मण जी उनसे आज्ञा लेने आते हैं और कहते हैं की वह भी भगवान् राम के साथ वन जाना चाहते हैं तभी सुमित्रा जी बिना विलम्ब एवं हिचकिचाहट के उन्हें कहती हैं पुत्र जहाँ राम जी है वहीं अयोध्या है क्यूंकि भगवान राम सूर्य के समान हैं उनके बिना इस नगरी मैं तो अन्धकार ही अंधकार है, जहाँ राम है वहीँ उनकी निष्ठापूर्वक सेवा करना तुम्हारा कर्तव्य है प्रभु राम के बिना तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं और जब राजा राम लौटकर आते हैं तब सभी के मुख से लक्ष्मण जी की प्रशंसा सुनकर की किस प्रकार उन्होंने श्री सीताराम की सेवा की तथा घनघोर वीरता का प्रदर्शन करते हुए इंद्रजीत आदि भीषण राक्षसों का वध किया माता सुमित्रा ने गदगद होकर अपने पुत्र लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया तथा कहा की पुत्र तुमने मेरी कोख की लाज रख ली | 
 
 
सुमित्रा माता का भले ही कवियों ने कथाओं मैं कम वर्णन किया हो सुमित्रा जी की महत्वता किसी भी प्रकार से कम नहीं होती | सुमित्रा माता को सदा ही अपनी ममता, बुद्धिमता तथा धर्मपरायणता के लिए याद किया जाएगा |  
 
 
 


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