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गुरुवार, 11 जून 2020

वानरवीर अंगद ( Vaanarveer Angad )

|| जय श्री राम || 

|| वानरवीर अंगद || 




अंगद बालि के पुत्र थे। बालि इनसे सर्वाधिक प्रेम करता था। ये परम बुद्धिमान, अपने पिता के समान बलशाली तथा भगवान श्रीराम के परम भक्त थे। अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी और सर्वस्व हरण करने के अपराध में भगवान श्रीराम के हाथों बालि की मृत्यु हुई। मरते समय बालि ने भगवान राम को ईश्वर के रूप में पहचाना और अपने पुत्र अंगद को उनके चरणों में सेवक के रूप में समर्पित कर दिया। प्रभु राम ने बालि की अन्तिम इच्छा का सम्मान करते हुए अंगद को स्वीकार किया। सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य मिला और अंगद युवराज बनाये गये। सुग्रीव के भाई बालि के पुत्र अंगद की माता का नाम तारा था जो एक अप्सरा थीं।जब प्रभु श्रीराम ने अंगद के पिता वानरराज बालि का वध कर दिया था तो बालि ने मरते वक्त अपने पुत्र को पास बुलाकर उसे ज्ञान की तीन बातें बताई थी। बालि ने कहा, पहली बात ध्यान रखना देश, काल और परिस्थितियों को हमेशा समझकर कार्य करना। दूसरी बात यह कि किसके साथ कब, कहां और कैसा व्यवहार करें, इसका सही निर्णय लेना।

Angad was the son of Bali. Bali loved them the most. He was supremely intelligent, as powerful as his father, and an ardent devotee of Lord Shri Ram. Bali died at the hands of Lord Shri Ram in the guilt of killing his younger brother Sugriva and all. While dying, Bali recognized Lord Rama as God and dedicated his son Angad as a servant at his feet. Lord Ram accepted Angad while respecting Bali's last wish. Sugriva got the kingdom of Kishkindha and Angad was made the crown prince. The mother of Angad, the son of Sugriva's brother Bali, was Tara who was an nymph. When Lord Sriram killed Angad's father Vanararaj Bali, Bali called his son near and told him three things of wisdom when he died. Bali said, the first thing to keep in mind is to always work by understanding the country, time and circumstances. The second is to make the right decision with whom, when, where and how to behave.


अंत में बालि ने तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात कही कि पसंद-नापसंद, सुख-दु:ख को सहन करना और क्षमाभाव के साथ जीवन व्यतीत करना। यही जीवन का सार है। बालि ने अपने पुत्र अंगद से ये बातें ध्यान रखते हुए कहा कि अब से तुम सुग्रीव के साथ रहो और हमेशा प्रभु श्रीराम की शरण में रहना वे त्रैलोक्यपति हैं। बालि के कहने पर ही अंगद ने सुग्रीव के साथ रहकर प्रभु श्रीराम की सेवा की। अंगद ने प्रभु श्री राम के द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को बखूबी संभाला। बालि वध के बाद सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य मिला और अंगद युवराज बनाए गए। सीता की खोज में वानरी सेना का नेतृत्व युवराज अंगद ने ही किया। सम्पाती से सीता के लंका में होने की बात जानकर अंगद समुद्र पार जाने के लिये तैयार हो गये, किन्तु दल का नेता होने के कारण जामवन्त ने इन्हें जाने नहीं दिया और हनुमान लंका गये।

In the end, Bali said the third most important thing is to like, dislike, tolerate happiness and sorrow and lead a life of forgiveness. This is the essence of life. Bali said this to his son Angad, keeping in mind that from now on you stay with Sugriva and always remain in the shelter of Lord Shri Ram, he is the Trilokyapati. Angad served Lord Shree Ram by staying with Sugriva at the behest of Bali.After the Bali slaughter Sugriva got the kingdom of Kishkindha and Angad was made the crown prince. Yuvraj Angad led the forestry army in search of Sita. Knowing that Sita was in Lanka from Sampathi, Angad agreed to go across the sea, but being the leader of the party, Jamwant did not let him go and Hanuman went to Lanka.
 
 
हनुमान, अंगद और जामवंत जैसे कई विद्वान प्राण विद्या में पारंगत थे। राम ने अंगद से कहा कि हे अंगद! रावण के द्वार जाओ। कुछ सुलह हो जाए, उनके और हमारे विचारों में एकता आ जाए, जाओ तुम उनको शिक्षा दो। 

Many scholars like Hanuman, Angad and Jamwant were proficient in Pran Vidya. Ram said to Angad, O Angad! Go to Ravana's door. Let there be some reconciliation, there should be unity between them and our thoughts, go teach them.

जब अंगद रावण की सभा में पहुंचे तो वहां नाना प्रकार के वैज्ञानिक भी विराजमान थे, वण और उनके सभी पुत्र विराजमान थे। रावण ने कहा कि आओ! तुम्हारा आगमन कैसे हुआ? अंगद ने कहा कि प्रभु मैं इसलिए आया हूं कि राम और तुम्हारे दोनों के विचारों में एकता आ जाए। तुम्हारे यहां संस्कृति के प्रसार में अभाव आ गया है, अब मैं उस अभाव को शांत करने आया हूं। चरित्र की स्थापना करना राजा का कर्त्तव्य होता है, तुम्हारे राष्ट्र में चरित्र हीनता आ गई है, तुम्हारा राष्ट्र उत्तम प्रतीत नहीं हो रहा है इसलिए मैं आज यहां आया हूं। रावण ने कहा कि यह तो तुम्हारा विचार यथार्थ है परन्तु मेरे यहां क्या सूक्ष्मता है?अंगद वहां श्रीराम का संदेश लेकर राजदूत बनकर जाते हैं लेकिन जब रावण उन्‍हें बैठने के लिए आसन नहीं देता है तो वे स्‍वयं की पूंछ का आकार बढ़ाकर उसी का आसन बनाकर वहीं बैठ जाते हैं। यह आसन रावण के आसन से भी ऊंचा होता है। यह देख रावण सहित समस्‍त असुर हतप्रभ रह जाते हैं।

When Angad reached the assembly of Ravana, there were many types of scientists sitting there, Vana and all his sons were sitting. Ravana said come! How did you arrive Angad said that Lord I have come so that the thoughts of both Rama and you may come together. There has been a lack of spread of culture here, now I have come to calm that deficiency.Ravana said that this is your idea of ​​reality but what is fine with me? Angad goes there as an ambassador with the message of Shri Ram, but when Ravana does not give him the seat to sit, he increases the size of his tail and makes it his own posture. Sit there. This posture is also higher than the posture of Ravana. Seeing this, all the demons including Ravana are shocked.
 
अब अंगद बोले तुम्हारे यहां चरित्र की सूक्ष्मता है। राजा के राष्ट्र में जब चरित्र नहीं होता तो संस्कृति का विनाश हो जाता है। संस्कृति का विनाश नहीं होना चाहिए, संस्कृति का उत्थान करना है। संस्कृति यही कहती है कि मानव के आचार व्यव्हार को सुन्दर बनाया जाए, महत्ता में लाया जाए, एक दूसरे की पुत्री की रक्षा होनी चाहिए। वह राजा के राष्ट्र की पद्धति कहलाती है।

Now Angad said, you have a subtlety of character here. When there is no character in the king's nation, the culture is destroyed. Culture should not be destroyed, culture has to be uplifted. Culture says that the behavior of human beings should be made beautiful, brought in importance, each other's daughter should be protected. He called the nation down the king.
 
रावण ने पूछा क्या मेरे राष्ट्र में विज्ञान नहीं? अंगद बोले कि हे रावण! तुम्हारे राष्ट्र में विज्ञान है परन्तु विज्ञान का क्या बनता है? एक मंगल की यात्रा कर रहा है परन्तु मंगल की यात्रा का क्या बनेगा, जब तुम्हारे राष्ट्र में अग्निकांड हो रहे हैं। हे रावण! तुम सूर्य मंडल की यात्रा कर रहे हो, उस सूर्य की यात्रा करने से क्या बनेगा, जब तुम्हारे राष्ट्र में एक कन्या का जीवन सुरक्षित नहीं। तुम्हारे राष्ट्र का क्या बनेगा?

Ravana asked, Is there no science in my nation? Angad said that O Ravan! There is science in your nation, but what is made of science? One is traveling to Mars, but what will become of the journey to Mars, when there are fireballs in your nation. Hey Ravana! You are traveling to the solar system, what will happen when you travel to that sun, when a girl's life is not safe in your nation. What will happen to your nation?
 
रावण ने कहा कि यह तुम क्या उच्चारण कर रहे हो, तुम अपने पिता की परंपरा शांत कर गए हो। अंगद ने कहा कदापि नहीं, में इसलिए आया हूं कि तुम्हारे राष्ट्र और अयोध्या दोनों का समन्वय हो जाए।

Ravana said what are you saying, you have calmed down your father's tradition. Angad said, no, I have come so that both your nation and Ayodhya can be coordinated.
 
इस पर रावण मौन हो गया। नरायान्तक बोले कि भगवन! इसको विचारा जाए, यह दूत है, यह क्या कहता है? अंगद बोले यदि भगवन! राम से तुम अपने विचारों का समन्वय कर लोगे तो राम माता सीता को लेकर चले जाएंगे।

Ravan became silent on this. Narayanatak said that God! Consider it, this is the messenger, what does it say? Angad said if God If you coordinate your thoughts with Rama, then Rama will go with Mother Sita.
 
रावण ने कहा कि यह क्या उच्चारण कर रहा है? मैं धृष्ट नहीं हूं। अंगद बोले यही धृष्टता है संसार में, किसी दूसरे की कन्या को हरण करके लाना एक महान धृष्टता है। तुम्हारी यह धृष्टता है कि राजा होकर भी परस्त्रीगामी बन गए हो। जो राजा किसी स्त्री का अपमान करता है उस राजा के राष्ट्र में अग्निकाण्ड हो जाते हैं।

Ravana said what is it chanting? I am not reckless. Angad said that this is the audacity in the world, it is a great audacity to take away another girl. It is your audacity that even after being a king, you have become transcendental. The king who insults a woman gets set on fire in that king's nation.
 
रावण ने कहा कि यह कटु उच्चारण कर रहा है। अंगद ने कहा कि मैं तुम्हें प्राण की एक क्रिया निश्चित कर रहा हूं, यदि चरित्र की उज्ज्वलता है तो मेरा यह पग है इस पग को यदि तुम एक क्षण भी अपने स्थान से दूर कर दोगे तो मैं उस समय में माता सीता को त्याग करके राम को अयोध्या ले जाऊंगा। अंगद ने प्राण की क्रिया की और उनका शरीर विशाल एवं बलिष्‍ठ बन गया।
Ravana said that it is bitter. Angad said that I am making you an action of life, if there is a brightness of the character, this is my foot, if you remove this step from your place even for a moment, then I will abandon Mother Sita in that time Ram Will take you to Ayodhya Angad performed the life of Pran and his body became huge and athletic.
 
राजसभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है। रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया।

There was no sacrifice in the Rajya Sabha that could take away his foot from his position even for a moment. When Angad's foot did not go away for a moment, Ravana went on his own at that time, but as soon as Ravana came, he said that it is the sovereign, it is not beautiful to take the steps from the authorities. He appointed his foot in his place and said, O Ravana! It is useless for you to touch my feet. If you touch the feet of Rama, you can be benefited. Ravana sat silently at his place.

शनिवार, 6 जून 2020

वानरराज बाली (Vaanar Raaj Baali)


|| जय सिया राम || 



| |  वानरराज बाली  | | 


 
 
वानरराज बाली और सुग्रीव दोनों ही भाई थे | बाली किष्किंधा का राजा था तथा इंद्र का पुत्र था | भगवान विष्णु के अवतार श्री राम ने उसका वध करके उसका उद्धार किया तथा वानरलोक में सुग्रीव को राजा बनाकर धर्म की स्थापना में अपना योगदान दिया |  बाली की पत्नी का नाम तारा था तथा उसके पुत्र का नाम अंगद था | बाली को  अपने पिता इंद्रदेव से एक दिव्य स्वर्णहार प्राप्त हुआ था जो ब्रह्मा जी ने अभिमंत्रित  करके इंद्रदेव को दिया था | उस स्वर्ण हार को पहनकर बाली जब भी किसी शत्रु के सामने जाता था तो उसके शत्रु की शक्ति क्षीण हो जाती थी तथा आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी | बाली भी रावण की तरह ही परम पराक्रमी और बलशाली होने के साथ-साथ अभिमान या दुराचारी था | एक बार उसने तो दुंदुभि नामक राक्षस का वध करके उसके शव को हवा में उछाल कर दूर फेंका | राक्षस शव के रक्त की कुछ बूंदें महर्षि मतंग के आश्रम में गिरी जो ऋषिमुख पर्वत में स्थित था | क्रोधित हो मतंग ऋषि ने बाली को शाप दिया कि उनके आश्रम के एक योजन के दायरे में अगर बाली आएगा तो वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा|  एक बार छली कपटी रावण ने देव मुनि नारद के भड़काने पर बाली पर पीछे से वार किया, किंतु बाली ने रावण को अपनी पूंछ में लपेटकर उसे बगल में दबा दिया तथा विश्व भर में घुमाता रहा ताकि सबको दिखा सकी रावण से डरने की जरूरत नहीं है  केवल बाली ही सर्वशक्तिशाली है | रावण ने अपनी हार मानकर बाली से क्षमा मांगी तथा मित्रता का हाथ बढ़ाया और बाली ने स्वीकार कर लिया | इस तरह दोनों दुराचारी और अभिमानी  एक हो गए |

King Janaka's guru was Ashtavakra. King Janaka was a spiritual and knowledgeable of the great Vedas. The conversation between King Janaka and Guru Ashtavakra is called the Ashtavakra Gita. Only after this great conversation, King Janak got answers to the questions of his inquisitive mind and attained enlightenment. Mithila was very lucky to have a ruler like King Janak. King Janaka loved Rama like Sita ji. Bali, like Ravana, was arrogant or vicious as well as being extremely powerful and powerful. Once he slaughtered a demon named Dundubhi and threw his body away in the air. A few drops of blood of the demon corpse fell in the ashram of Maharishi Matang, which was located in Rishimukh mountain. Enraged, Matang Rishi cursed Bali that if Bali comes within the scope of a plan of his ashram, he will die. Once the fraudulent Ravana attacked Bali on the instigation of Dev Muni Narada, but Bali wrapped Ravana in his tail and pressed him in the side and rotated around the world to show everyone that there is no need to fear Ravana. Only Bali is omnipotent. Ravana, accepting his defeat, apologized to Bali and extended a hand of friendship and Bali accepted. In this way both the vicious and arrogant became one.
 
 
दुंदुभि के वध के बाद के कुछ समय बाद उसके भाई मायावी ने बाली को ललकारा | दोनों में घनघोर युद्ध हुआ तथा मायावी  खुद को  पराजित होता देख भाग खड़ा हुआ , बाली उसे कहां छोड़ने वाला था | बाली भी दौड़ पड़ा  उसके पीछे पीछे और सुग्रीव बाली के पीछे पीछे भागे |  मायावी राक्षस डरकर एक गुफा में घुस गया तथा बाली ने अपने छोटे भाई सुग्रीव को आदेश दिया कि जब तक मैं बाहर ना आ जाऊं , तुम इस गुफ़ा के द्वार की रखवाली करना|  बाली गुफा में राक्षस को मारने चला गया और सुग्रीव अपने बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए भाग खड़े रहा | खड़े खड़े सुग्रीव पूरे एक साल तक गुफा के द्वार पर खड़ा इंतजार करता रहा 1फिर एक दिन के गुफा में उसे चीख सुनायी दी तथा रक्त की धारा अंदर से बाहर तक आई , सुग्रीव को लगा की उस मायावी राक्षस ने छल से बाली  भैया को मार दिया है| अब अगर मायावी राक्षस बाहर आ गया तो वह भी मारा जाएगा यह सोचकर सुग्रीव ने गुफा का मुंह पत्थर से बंद कर दिया|  वापस आकर जब उसने सभी परिवार जनों को यह बात बताई तो सबने उसे किष्किंधा का राजा बन जाने को कहा| राज्याभिषेक के समय ही बाली वापस आ गया और सुग्रीव का राजतिलक होता देख क्रोध में उसे पीटने लगा|  सुग्रीव ने बहुत समझाया पर बाली कहां मानने वाला था | बाली ने सुग्रीव को मारने की कोशिश की तो सुग्रीव वहां से भागकर ऋषिमुख पर्वत पर जाकर रहने लगा | मतंग मुनि के शाप के कारण वहां नहीं जा सकता था लेकिन दुराचारी बाली ने सुग्रीव की पत्नी रुमा को जबरदस्ती अपनी पत्नी बना लिया | रावण के समान बाली भी पराई स्त्रियों का हरण कर लेता था उसका वध भी बहुत ही जरूरी था | सुग्रीव ऋषि मुख पर्वत पर अपने कुछ मंत्रियों, हनुमान जी तथा जामवंत आदी के साथ रहने लगे | 
 
 Shortly after Dundubhi's slaughter, her brother Mayavi challenged Bali. A fierce battle ensued between the two and the elusive, seeing himself defeated, ran away, where was Bali to leave him. Bali also ran after him and Sugriva ran behind Bali. Fearing the elusive demon, he entered a cave and Bali ordered his younger brother Sugriva to guard the gate of this cave until I come out. Bali went to kill the demon in the cave and Sugriva kept running away, following the orders of his elder brother. Sugriva stood and waited at the entrance of the cave for a whole year. Then one day he heard a scream in the cave and a stream of blood came from inside to outside, Sugriva felt that the elusive monster killed Bali Bhaiya with deceit. Is Now if the elusive monster comes out, thinking that he will be killed, Sugriva closed the mouth of the cave with stone. When he came back and told this to all the family members, everyone asked him to become the king of Kishkindha. At the time of the coronation, Bali returned and after seeing Sugriva's coronation, he started beating him in anger. Sugriva explained a lot but where was Bali supposed to be? When Bali tried to kill Sugriva, Sugriva ran away from there and started living on Mount Rishimukh. Due to the curse of Matang Muni, he could not go there, but the vicious Bali forced Sugriva's wife Ruma to be his wife. Like Ravan, Bali also killed foreign women, her slaughter was also very important. Sugriva lived with some of his ministers, Hanuman ji and Jamwant Aadi, on the Rishi Mukh mountain.
 
एक बहुत ही रोचक प्रसंग बाली और भक्त शिरोमणि हनुमान जी के मध्य घटित हुआ उस का संक्षिप्त वर्णन  है :-
 
 A very interesting incident happened between Bali and devotee Shiromani Hanuman ji is a brief description of that: -
एक बार मदमस्त हाथी की भांति अपनी शक्ति के मद में चूर बाली वनों में घूम रहा था तब उसने हनुमान जी को देखा जो राम का नाम जाप करने में लगे हुए थे | घमंडी बाली ने हनुमान जी से कहा किस का जप करते रहते हो ,मैं ही सबसे शक्तिशाली हुँ किसी दिन बुला लाओ अपने प्रभु राम को उन्हें भी देखूं लूंगा बस इतना सुनते ही हनुमान जी ने कहा कि पहले प्रभु के भक्त को हरा कर दिखाओ तब उनको ललकारना | तय हुआ की दोनों में युद्ध होगा तो  युद्ध के ठीक पहले ब्रह्मा जी हनुमान जी के पास गए और बोले कि आप तो बहुत ही शांतिप्रिय भक्ति में लीन रहने वाले महाबली हो आपको बाली से युद्ध करने की आवश्यकता नहीं, वैसे भी उसके पास स्वर्णहार है जिस से बाली सामने वाले की आधी  शक्ति छीन लेता है  |  हनुमान जी बोले मेरे बारे बाली कुछ कहता तो कोई बात नहीं थी पर उसने मेरे प्रभु के बारे में अपशब्द कहे हैं इस अवस्था में अगर मैंने उसको सबक सिखाया तो मेरे प्रभु और मेरा अपयश होगा | ब्रह्मा देव ने समझ लिया की अब बाली की खैर नहीं और उनके द्वारा अभिमंत्रित स्वर्णहार भी निष्फल ना होजाये | कुछ विचारकर ब्रह्मा जी ने  कहा कि आप अपनी शक्ति का दसवां भाग लेकर उसके सामने जाइएगा और तथा बाकी शक्ति अपने प्रभु को अर्पण  कर दीजिए|  बजरंगबली ने ऐसा ही किया अपनी शक्ति का दसवां भाग अपने प्रभु भगवान् राम को अर्पण करके बाली के सामने पहुंचे | युद्ध शुरू होते ही बाली ने उनकी दसवीं का आधा भाग याने की पांचवा भाग अपने शरीर में खींचना शुरू किया किन्तु बाली हनुमान जी की शक्ति का पांचवा भाग भी सहन कर सका | हनुमान जी की शक्ति का अंश बाली में प्रविष्ट होते ही उसके शरीर में कंपन होने लगा, नसें फटने सी लगी, सर घूमने लगा तब उसने ब्रह्मा जी को पुकारा कि प्रभु आप का वरदान विफल क्यों हो रहा है? यह मुझे अपनी पीड़ा क्यों हो रही है? आपका वरदान विफल कैसे हो सकता है तब ब्रह्माजी प्रकट हुए उन्होंने अभिमानी बाली को समझाया कि बाली तुम शक्तिशाली होते हुए भी हनुमान जी की शक्ति को धारण नहीं कर सकते उनकी शक्तियां अनंत है| तुम इस योग्य नहीं की हनुमान जी की शक्ति का तिनका भी सह सको वो तो तुम्हारे प्राणों की रक्षा हेतु ही सिर्फ दसवां भाग ही बजरंग बलि धारण किये हुए हैं | अब  तुरंत यहां से दूर चले जाओ वरना तुम्हारे प्राण संकट में सकते हैं ब्रह्मा जी की बात सुनते ही बाली तुरंत वहां से भाग गया | 

Once, like a mad elephant, roaming in the Chur Bali forests under his power, he saw Hanuman ji, who was engaged in chanting the name of Rama. The arrogant Bali said to Hanuman ji that you keep chanting, I am the most powerful one day I will call my lord Rama to see him too. Just after listening to this, Hanuman ji said that first show the Lord's devotee by defeating him. Shout. It was decided that if there would be war between the two, Brahma Ji went to Hanuman ji just before the war and said that you are a Mahabali, who is living in very peaceful devotion. Takes away half the power of the front. Hanuman ji said that there was nothing to say about Bali to me, but he has said abusive words about my lord, in this stage if I taught him a lesson, then my lord and I will be in love. Brahma Dev understood that now Bali is not well and the goldsmiths invited by him should not fail. After some thought, Brahma Ji said that you will take one tenth of your power and go before him And offer the rest of the power to your lord. Bajrangbali did this by offering one-tenth of his power to his lord Lord Rama and reached in front of Bali. As soon as the war started, Bali started to draw half of his tenth in his body, but Bali could not bear even a fifth of Hanuman's power. As part of the power of Hanuman ji, his body started vibrating as soon as he entered Bali, the veins started bursting, the head started to rotate, then he called Brahma Ji, why is Lord's blessing failing? Why is this my pain? How could your boon fail, then Brahmaji appeared and explained to the arrogant Bali that Bali, despite being powerful, you cannot hold the power of Hanuman ji, his powers are infinite. You are not able to bear the straw of Hanuman's power, he is wearing only one tenth part of Bajrang sacrifice to protect your life. Now immediately go away from here or else your life may come in trouble, Bali immediately ran away from there on hearing Brahma ji.
 
किष्किंधा काण्ड के अनुसार भगवान् राम ने बाली के द्वारा प्रताड़ित 
सुग्रीव से मित्रता की | प्रभु राम के आश्वासन देने पर वह अपने मित्र की सहायता हेतु बाली का वध करेंगे , सुग्रीव ने बाली को ललकारा | बालि किष्किंधा नगरी के बाहर आया दोनों में घमासान युद्ध हुआ क्योंकि दोनों भाइयों का मुख् तथा शरीर एक सा था  इसी असमंजस में श्री राम जी ने बाण नहीं चलाया | बाली से अपनी जान बचाकर सुग्रीव घायलावस्था में प्रभु  श्री राम जी के पास गया और बोला प्रभु आपने ऐसा क्यों किया ? श्री राम जी ने जैसे ही सुग्रीव के सर पर हाथ रखा सुग्रीव के सारे जख्म भर गए तथा उसका  शरीर फिर से वज्र के समान हो गया | राम जी ने उसको दोबारा से युद्ध के लिए  बोला तथा लक्ष्मण जी द्वारा सुग्रीव को पुष्पमाला पहना दी ताकि दोबारा कोई संदेह ना हो | जब बाली ने दोबारा युद्ध सुग्रीव की ललकार सुनी तो उसके क्रोध का ठिकाना ना रहा |  सुग्रीव को दोबारा ललकारते हुए जानकर बाली की पत्नी तारा को शंका हुई | तारा  को  इस बात का आभास  हो गया था कि सुग्रीव को राम का संरक्षण हासिल है क्योंकि अकेले तो सुग्रीव बाली को दोबारा लड़ने की हिम्मत कदापि नहीं करता | तारा ने बाली को सावधान किया और उसने कहा कि सुग्रीव को किष्किंधा का युवराज घोषित कर बाली उसके साथ संधि कर ले |  किंतु बाली ने सुग्रीव का पक्ष लेने पर तारा को दुत्कार दिया | दोनों भाइयों में द्वंद युद्ध शुरू हुआ लेकिन इस बार राम जी ने दोनों को पहचानने में कोई गलती नहीं करी और बाली पर पेड़ की ओट से बाण चला दिया | बाण ने बाली के हृदय को भेद दिया तथा बाली  धराशाई होकर जमीन पर गिर गया गया | भगवान राम ने बाली पर छुपकर बाण चलाया और बाली को यह बात अनुचित लगी तब बाली ने उनसे कारण पूछा | 

According to the Kishkindha scandal, Lord Ram tortured by Bali Befriended Sugriva. On assuring Lord Rama that he would kill Bali to help his friend, Sugriva challenged Bali. Bali came out of the city of Kishkindha, there was a fierce battle between the two brothers, because the face and body of the two brothers were the same, in the same confusion Shri Ram Ji did not shoot an arrow. After saving his life from Bali, Sugriva went to Lord Shree Rama Ji in an injured condition and said why did you do this? As soon as Shri Ram ji placed his hand on Sugriva's head, all the wounds of Sugriva were filled and his body again became like a thunderbolt. Ram ji again asked him for war and Laxman ji gave Sugriva a wreath so that there is no doubt again. When Bali again heard the war cry of Sugriva, there was no trace of his anger. Bali's wife Tara doubted knowing Sugriva again. Tara was aware that Sugriva enjoys the protection of Rama because Sugriva alone does not dare to fight Bali again. Tara cautioned Bali and he said that by declaring Sugriva as the crown prince of Kishkindha, Bali should make a treaty with him. But Bali rebuked Tara for favoring Sugriva. Duel war started between the two brothers, but this time Ram ji made no mistake in identifying both and fired an arrow with a tree on the earring. Baan pierced Bali's heart and Bali fell and fell to the ground. Lord Rama hid the arrow on Bali and Bali found this to be inappropriate, then Bali asked him the reason.

 
वानरराज बाली के प्रश्नों का प्रभु श्री राम जी धर्मानुसार उत्तर  दिया  ने तब प्रभु के प्रवचनों को सुनकर बाली का अभिमान टूटा और बाली को संतोष हुआ | बाली अपने अंतिम क्षणों में प्रभु की प्रभुता पहचान गया तथा प्रभु राम के चरणों में गिर पड़ा |बाली ने अपनी पत्नी तारा एवं पुत्र अंगद को भी भगवान राम का अनुसरण करने को कहा | 

Lord Rama answered the questions of Vanararaj Bali as per religion, then upon hearing the discourses of Lord, the pride of Bali was broken and Bali was satisfied. Bali recognized the sovereignty of the Lord in his last moments and fell at the feet of Lord Rama. Bali also asked his wife Tara and son Angad to follow Lord Rama.


 
 
बाली तथा श्री राम संवाद
 
 
बाली :- प्रभु आपने धर्म की रक्षा केलिए पृथ्वी पर अवतार लिया किन्तु मुझे इस तरह छिपकर क्यों मारा ? क्या यह धर्मविरुद्ध नहीं ?

Bali: Lord, you took incarnation on earth to protect religion, but why did I hide and hide me like this? Is this not unethical?
  
प्रभु श्री राम :- बाली अपनी मृत्यु शैया पर तुम वानर होकर धर्म-अधर्म की बात करते हो तो अचरज होता है|   जो भी तुम्हारी शक्ति है तुमने तपस्या या ज्ञान से अर्जित नहीं की अपितु अपने पिता इन्द्र से पाई है | वास्तविकता में धर्म क्या है तुम जैसा अभिमानी पशु क्या जाने जो अपने अनुज भाई सुग्रीव की पत्नी रूमा के साथ दुराचार कर चुका हो | तथा जहां तक छिपकर बाण चलाने का प्रश्न है पशु आखेट तो ऐसे ही किया जाता है और क्षत्रिय होने के कारण मैं ऐसा कर सकता हूँ | और सिर्फ तुम्हें मानने के लिए किष्किंदा के दूसरे वानरों की हत्या में नहीं करना चाहता था जो कि निर्दोष है| 
(यहाँ वास्तव में प्रभु नहीं जताना चाहते की वह कौन हैं उनका विचार था की यदि  इंद्र का वरदान मेरे सामने आने पर विफल हो जाता इसलिए मेरा सामने ना आना ही उचित है )

Prabhu Shri Ram: - When you talk about righteousness and unrighteousness on your deathbed, Bali is astonishing. Whatever your power is, you have not gained from austerity or knowledge, but from your father Indra. What is religion in reality, what can a proud animal like you, who has misbehaved with Ruma, the wife of his estranged brother Sugriva? And as far as the shooting of the arrow is concerned, the animal shooting is done in this way and I can do it because of being a Kshatriya. And just to believe you, I did not want to kill Kishkinda's other apes, which is innocent.
( Here Lord does not really want to show who he is. He thought that if Indra's boon fails when he comes in front of me, then it is only right that I do not come in front of him)

 
 
 बाली :- प्रभु मेरी तो आपसे कोई भी शत्रुता नहीं फिर आपने मुझे क्यों मारा ?

Bali: - Lord, there is no enmity with you, then why did you hit me?
 
  प्रभु श्री राम :- तुम्हारी  दुश्मनी मुझसे सीधी तरह से तो  नहीं लेकिन मेरे मित्र सुग्रीव से है इस प्रकार हे बाली मेरे मित्र का शत्रु भी मेरा शत्रु है | 

Prabhu Shri Ram: - Your enmity is not directly related to me, but my friend is from Sugriva, thus, O Bali, my friend's enemy is also my enemy.
 
 
बाली :- प्रभु मैं आपकी मदद कर सकता था सीता जी को ढूंढने के लिए आकाश पाताल एक कर देता | रावण क्या चीज है उसे तो मैं बगल में दबाकर पृथ्वी की परिक्रमा कर चुका हूं | मैं सुग्रीव से अधिक बलशाली हूँ तथा राजा हूँ |

Bali: - Lord, I could have helped you, to find Sita ji, Akash would have done one thing. I have revolved around the earth by pressing what is Ravan. I am stronger than Sugriva and I am the king. 
 
 
प्रभु श्री राम :- जो खुद किसी और की पत्नी का हरण और परायी स्त्रियों के साथ अनाचार करता हो उससे मैं अपनी पत्नी को पानी के लिए सहायता कैसे मांग सकता हूँ | रावण की भाँती तुम भी पथभ्रष्ट हो ऐसा मैं समझता हूं एक अधर्मी का साथ में कभी नहीं दे सकता ना ही उसका साथ ले सकता हूँ | सुग्रीव भले ही तुम्हारी तरह बलशाली नहीं किन्तु उसने कभी धर्म आचरण नहीं छोड़ा तो उससे तुम्हारी तुलना व्यर्थ है | 
 
Prabhu Shri Ram: - How can I ask my wife for help from someone who herself abducts someone else's wife and abuses them with foreign women. Like Ravan, you too are misguided, I understand that you can never support a wrongdoer or take him along. Even though Sugriva is not as powerful as you, but he has never given up his religious conduct, your comparison with him is meaningless.
 
 बाली :- प्रभु में तो वानर जाती से हूं मेरी खाल तथा मांस भी आप किसी काम का नहीं, तो मेरा वध क्यों करा ?

Bali: - I am a monkey from the forest, my skin and flesh are also of no use to you, so why kill me?
 
प्रभु श्री राम:- मैं क्षत्रिय हूँ तथा वन में पशुओं का आखेट करना मेरा अधिकार है और यह धर्म विरुद्ध भी नहीं क्योंकि तुम पशु ही हो |

Lord Shri Ram: - I am a Kshatriya and it is my right to hunt animals in the forest and it is not even against religion because you are an animal.
 
बाली :- प्रभु में आपकी प्रजा भी नहीं हूं फिर मुझे दंड देने का अधिकार आपको  नहीं है क्योंकि आप अयोध्या के राजा हैं किष्किंधा के नहीं  फिर आप मेरा वध कैसे कर सकते हैं ?

Bali: - I am not your subject even in God, then you do not have the right to punish me because you are the king of Ayodhya, not of Kishkindha, then how can you kill me?
 
प्रभु श्री राम:- इस भूलोक पर सूर्यवंश का ही राज्य है सूर्यवंश का राजा होने के नाते तथा रघुवंशियो की परम्परानुसार मेरा अधिकार है कि मैं जो भी यहां अधर्म करें मैं उसको दंड दूं हमारे राज्य की सीमा के बाहर  भी अगर कोई ऐसा अधर्म करता है तो भी अपने मित्र की रक्षा के लिए मैं उसका वध कर सकता हूँ | 

Prabhu Shri Ram: - On this land, only the kingdom of Suryavansh is being the king of Suryavansh and according to the tradition of Raghuvanshi, I have the right to punish whoever commits wrong here, even outside the limits of our state, if anyone commits such wrongdoing. Even then I can kill my friend to protect him.
 
 
विष्णु जी के अवतार राम जी ने वास्तव में बाली का वध करके उद्धार किया था | यहाँ तक की प्रभु ने अपने अगले अवतार में बाली को अवसर दिया की वह उनकी इसी प्रकार हत्या कर सके | द्वापर युग में भगवान् राम ने श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया तथा बाली ने भील रूप में उनकी हत्या की इस प्रकार भगवान हमें बताते हैं की मृत्युलोक में अपने कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है तथा कर्मफल से  मुक्ति का उपाए भगवान् के पास भी नहीं| कर्म चक्र सदा समय के चक्र समान चलता रहता है मनुष्य अपने वर्तमान जन्म में किये गए पाप को अपने अगले जन्म में या जन्मो में भुगतता ही है | यही विधि का विधान है इसलिए तो इस संसार में कर्मजाल से मुक्ति का कोई उपाय नहीं इसलिए भगवान् ने भगवद गीता में यही कहा है की कर्म किये जाओ और फल की चिंता में ना सोचो |  

Lord Rama, the incarnation of Vishnu, actually saved Bali by killing him. Even the Lord in his next incarnation gave an opportunity to Bali to kill him in this way. In the Dwapar Yuga, Lord Rama was born as Shri Krishna and Bali killed him in a Bhil form, thus God tells us that one has to bear the fruits of our deeds in the land of death and God does not even have the means to get rid of the results. The cycle of Karma goes on like the cycle of time, man always suffers the sin committed in his present life in his next life or in his births. This is the law of the law, so there is no way to get rid of the work in this world, therefore God has said in the Bhagavad-gītā that go do the deeds and do not think about the fruits.