सोमवार, 1 जून 2020

जय कैकयी माता

 || जय सिया राम || 
 
 
 
|| जय कैकयी माता || 


रानी कैकयी राजा दशरथ की तीसरी रानी थी | वह बहुत रूपवती , गुणवती  चतुर थी | कैकयी कैकया देश के नरेश राजा अश्वपति की पुत्री थी | इनके पिता राजा अश्वपति घोड़ों के भगवान थे | रानी कैकयी के सात भाई थे|  राजा दशरथ की रानी कैकयी  के प्रति विशेष स्नेह का कारण यह भी था कि वे बहुत ही चतुर तथा साहसी सारथि भी थी | देवासुर संग्राम के समय रानी कैकयी ने राजा दशरथ के प्राण बचाए थे तथा राजा दशरथ ने प्रसन्न होकर उन्हें दो वरदान दिए लेकिन कैकयी ने कहा कि इन वारदानो को संभाल कर रख लीजिए समय आने पर मैं आपसे खुद ही मांग लूंगी | 
कैकयी का स्वभाव चतुर एवं चालाक था इसी कारण अपनी मुँह लगी दासी मंथरा के बहकावे में आसानी से गई|  देवताओं ने जब देखा कि राम राजा बन जाएंगे तो रावण आदि राक्षसों का अंत कैसे होगा? तब देवी सरस्वती ने देवताओं की विनती पर दासी मंथरा की बुद्धि फेर दी तथा मंथरा ने कई प्रकार की बातें बनाकर रानी कैकयी  को भी राजा दशरथ के विरुद्ध भड़का दिया | रानी कैकयी विधि के विधान के अनुसार उस समय साधारण स्त्री की भांति सोचने लगी कि अगर मंथरा ने जो बात कही वह सत्य ना हो जाए कहीं उनकी सौतन कोशल्या उन्हें अपने पुत्र राम के राजा बनते ही दासी ना बना दे | उस कालवश राम के प्रति उनका प्रेम भी क्षीण  होता दिखा | उन्हें श्रीराम की कोमल मृदुवाणी भी असत्य के बाणों के समान तीखी लगने लगी थी | कालवश अपने पुत्र भरत के और अपने स्वार्थ को ही अपना हितेषी मानने लगी एकदम से इतना परिवर्तन और में इसलिए ही हुआ क्योंकि वे बहुत चतुर चालाक थी तथा माता कौशल्या की तरह सीधे स्वभाव की ना होना भी उनके स्वभाव परिवर्तन का कारण बना |  
 
कैकयी माँ की ममता के बिना ही पली बड़ी थी | मंथरा ने उन्हें बचपन से ही पाला था तथा मंथरा अच्छी तरह से जानती थी कि कैसे राजविलासी  कैकयी को बहकाया जा सकता है | देवप्रेरणा होने की वजह से मंथरा इसमें सफल भी हुई तथा रानी कैकयी को अपनी बातों के अंधे कुएं में ढकेल दिया | राजविलास की मारी रानी कैकयी विलासिता के लालच में आकर अनर्थ कर बैठी और भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास राजा दशरथ के हाथों दिलवा दिया | 
 
उनकी भूल उन्हीं पर इतनी भारी पड़ी कि शेष जीवन रानी कैकयी पछताती रही|  इतिहास में वह कुटील स्त्री के रूप में जानी जाती हैं किंतु इस प्रसंग को छोड़ दिया जाए तो बाकी शेष जीवन उन्होंने पश्चाताप के अश्रुओं या पति एवं सभी राजकुमारों के प्रेम अनुरूप ही व्यवहार किया था| रानी कैकयी पर मंथरा की कही बातों का मोह तब भंग हुआ जब भरत जी  अपने नाना के यहां से लौटे|  भरत जी को भी मंथरा और कैकयी ने अपनी बातों मैं बहकाना चाहा लेकिन भक्त शिरोमणि भरत कहां उनकी बातें मानने वाले थे| भरत जी ने जब अपने पिता की मृत्यु के बारे में तथा राम जी के वनवास का सुना तो  क्रोध और दुःख से भर उठे | अपनी ही माता कैकयी का क्रोध में त्याग कर दिया किन्तु माता कौशल्या के अनुरोध पर बाद में उन्हें क्षमा कर दिया | भरत जी की धर्मपरायण बांतें सुनकर उनकी आंखों का अन्धकार भी छठ गया | उन्हें अहसास हो गया कि जब तक उन्होंने कुछ नहीं मांगा तब तक वह पटरानी थी लेकिन मांगते ही भिखारी बन गयी और सब कुछ खो दिया|  जिससे मांगा गया वही पति राजा दशरथ स्वर्ग सिधार गए और जिसके लिए मांगा वही पुत्र भरत ठोकर मार कर गया| कैकयी के ऊपर दुनिया भर के लाँछन लगे यहां तक कि कई जगह राजा दशरथ की मृत्यु के लिए भी उन्हीं को राजा का काल माना गया | 
 
चारों तरफ से जब उन्हें ठुकराया गया तब अकेले भगवान् श्री राम ही  थे जिन्होंने उनका साथ दिया तथा भरत और शत्रुघ्न को पश्चाताप की अग्नि में जलती माता कैकयी की सेवा का आदेश दिया | सर्वज्ञानी भगवान राम तो जानते ही थे कि अगर अयोध्या में राजा बनकर रह जाते तो रावण का विनाश कैसे होता | माता कैकयी ही वह मार्ग खोलने का कारण बनी जिससे वह एक साधारण राजा बनने से बचे तथा तीनो लोको के स्वामी बने | कैकयी माता ने सबके अपमान को सहा किन्तु राम जी के प्रिय मधुर वचनो ने सदा उनको शीतलता प्रदान करी | राजा दशरथ की मृत्यु तो पुत्र वियोग में ही होनी थी क्योंकि उन्हें श्रवण कुमार के वध के कारण लगे श्राप का फल उन्हे मिलना ही था फिर रानी कैकयी को क्यों दोष दिया जाता है उनका दोष केवल कितना और क्यूँ है इसका हिसाब किताब परमज्ञानी लोग भी नहीं लगा सकते किंतु अगर राम बनवास ना जाते तो धर्मपालन के उपदेश जो हम आज तक सुनते आ रहे हैं क्या हमें मिलते? इस घोर कलयुग में हमें कैसे पता चलता की मर्यादा , धर्म और आदर्श का पालन करते हुए जीवन कैसे जिया जाता है ? तुलसीदासजी द्वारा लिखित रामचरितमानस की क्या विशेषता रहती अगर श्री राम एक वनवासी , योद्धा , ज्ञानी व मर्यादा के उदाहरण हमें ना देते | माता कैकयी ने लोकनिंदा लेकर भी तो जगत कल्याण हेतु राम कथा में अपना योगदान दिया है उसकी वंदना करनी चाहिए ना की निंदा | | कहा भी गया है 'ईश्वर यत करोति शोभनम एव करोति' अर्थात ईश्वर जो भी करता है भले के लिए ही करता है |  मां कभी निंदनीय नहीं हो सकती है और माता कैकयी तो भगवान राम की प्रिय माता हैं उनका अपमान भगवान का ही अपमान है | जिस बात को भगवान राम अपने भाइयों को समझाते रहे उसे हमें भी उतना ही आदर देना चाहिए और प्रभु राम की अन्य बातों के समान ही सम्मान देना चाहिए| 
 

रविवार, 31 मई 2020

जय सुमित्रा माता

|| जय सिया राम || 
 
 
|| जय सुमित्रा माता || 
 
 
राजा दशरथ की तीन रानियों में से एक माता सुमित्रा भी थी|   तीनो रानियों में से सुमित्रा जी का रामायण में बहुत ही संक्षिप्त उल्लेख मिलता है| सुमित्रा जी के बारे मैं हालाँकि अधिक नहीं कहा गया हैं किन्तु रामायण के सभी पात्रों मैं सुमित्रा जी की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी और रानियों की | कम उल्लेख होने की वजह से लगता है जैसे राजा दशरथ ने उनकी उपेक्षा की हो किन्तु ऐसा नहीं है क्यूंकि कथा के अनुसार सुमित्रा जी का व्यक्तित्व भी और रानियों अथवा माताओं की भाँती बहुत ही प्रभावशाली था | 
 
 
राजा दशरथ के आग्रह पर गुरु वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। मुनि के भक्ति सहित आहुतियाँ देने पर अग्निदेव हाथ में चरु (हविष्यान्न खीर) लिए प्रकट हुए (और दशरथ से बोले-) वशिष्ठ जी ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया। हे राजन्‌! (अब) तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो| (और दशरथ से बोले-) वशिष्ठ ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया। हे राजन्‌! (अब) तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो|  उसी समय राजा दशरथ ने अपनी प्यारी पत्नियों को बुलाया। कौसल्या आदि सब (रानियाँ) वहाँ चली आईं। राजा ने (पायस का) आधा भाग कौसल्या को दिया, (और शेष) आधे के दो भाग किए| वह (उनमें से एक भाग) राजा ने कैकेयी को दिया। शेष जो बच रहा उसके फिर दो भाग हुए और राजा ने उनको भी कौसल्या और कैकेयी के हाथ पर रखकर दिया दोनों ही रानियों ने उन दोनों भागो को सुमित्रा जी को दिया जिसके फलस्वरूप उनके दो जुड़वाँ पुत्र - लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए | इस घटना मैं अत्यंत रोचक बात यह हुए की जिस भाग 
को कौशल्या जी ने सुमित्रा जी को दिया था उसके परिणाम मैं लक्ष्मण जी ने जन्म लिया और लक्ष्मण जी सदा कौशल्या जी के पुत्र राम का अनुसरण करते रहे तथा खीर के जिस भाग को रानी केकयी ने सुमित्रा जी को दिया था उसके फलस्वरूप शत्रुघ्न जी ने जन्म लिया और सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न जी सदा केकयी पुत्र भरत जी का अनुसरण करते रहे |  
 
माता सुमित्रा भी सदा बड़ी रानी कौशल्या जी की सेवा मैं लगी रहती थी तथा सभी बालको से इतना स्नेह करती थी चारों बालक माता सीता के पास ही सोते थे | उनकी धर्मपूर्ण एवं बुद्धिमत्ता पूर्ण बातों का पता हमें तब पता चलता है जब वनवास जाने के पहले लक्ष्मण जी उनसे आज्ञा लेने आते हैं और कहते हैं की वह भी भगवान् राम के साथ वन जाना चाहते हैं तभी सुमित्रा जी बिना विलम्ब एवं हिचकिचाहट के उन्हें कहती हैं पुत्र जहाँ राम जी है वहीं अयोध्या है क्यूंकि भगवान राम सूर्य के समान हैं उनके बिना इस नगरी मैं तो अन्धकार ही अंधकार है, जहाँ राम है वहीँ उनकी निष्ठापूर्वक सेवा करना तुम्हारा कर्तव्य है प्रभु राम के बिना तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं और जब राजा राम लौटकर आते हैं तब सभी के मुख से लक्ष्मण जी की प्रशंसा सुनकर की किस प्रकार उन्होंने श्री सीताराम की सेवा की तथा घनघोर वीरता का प्रदर्शन करते हुए इंद्रजीत आदि भीषण राक्षसों का वध किया माता सुमित्रा ने गदगद होकर अपने पुत्र लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया तथा कहा की पुत्र तुमने मेरी कोख की लाज रख ली | 
 
 
सुमित्रा माता का भले ही कवियों ने कथाओं मैं कम वर्णन किया हो सुमित्रा जी की महत्वता किसी भी प्रकार से कम नहीं होती | सुमित्रा माता को सदा ही अपनी ममता, बुद्धिमता तथा धर्मपरायणता के लिए याद किया जाएगा |  
 
 
 


जय माता कौशल्या ( Jai Mata Kaushalyaa)

|| जय श्री राम || जय माता कौशल्या || 

 
 
|| जय श्री राम || 


रामायण एवं पुराणों के अनुसार कौशल्या जी कौशल देश के राजा भानुमंत की पुत्री थी | कौशल देश आज का छत्तीसगढ़ है तथा रायपुर से २५ किलोमीटर दूर चंद्रखुरी मैं ही कौशल्या जी का जनम हुआ | कालांतर में उनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ | 

According to Ramayana and Puranas, Kaushalya ji was the daughter of King Bhanumant of Kaushal. Kaushal Desh is today's Chhattisgarh and the birth of Kaushalya was in Chandrakhuri, 25 km from Raipur. Later, he was married to King Dasaratha of Ayodhya.

राजा दशरथ की तीन रानियां थी- कौशल्या, सुमित्रा एवं केकयी | माता कौशल्या राजा दशरथ की पहली पत्नी तथा श्री राम की माता थी | राजा की तीन रानियां थी पर तीनों ही रानियों का आपस में बहुत ही प्रेम था|  कौशल्या माता एक आदर्श पत्नी एवं धर्मपरायण एवं ममतामयी माता थी |  राम कथा में उनका चरित्र बहुत ही गंभीर करुणामई ममतामयी  विशाल हृदया तथा पति सेवा परिणीता स्त्री के रूप में दर्शाया गया है | 

King Dasharatha had three queens - Kaushalya, Sumitra and Kekayi. Mata Kaushalya was the first wife of King Dasharatha and the mother of Shri Rama. The king had three queens, but the three queens had a lot of love among themselves. Kaushalya Mata was an ideal wife and pious and Mamatamayi mother. In Ram Katha, her character is depicted as a very serious compassionate Mamatamayi huge heart and husband Seva Parineeta woman.

कौशल्या माता को जब पता चला कि उनके पुत्र राजाराम को राज्य अभिषेक होना निश्चित हुआ है, तब उन्होंने को बहुत दान-दक्षिणा वितरित की किंतु जब राम जी ने उन्हें बताया कि राजा दशरथ के वचनों का पालन करने के लिए राम जी को वन जाना होगा तो उन्होंने सांकेतिक शब्दों में राम जी को पिता के प्रति विद्रोह के लिए बोला कौशल्या जी ने कहा कि पिता कोई अनुचित आज्ञा दे तो माता की आज्ञा  अनुसार पुत्र को पालन करना चाहिए |  यदि माता-पिता दोनों की आज्ञा हो तो पुत्र को उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए और जब राम जी ने बताया कि केकयी  माता ने भी 14 वर्ष के वनवास के वचन का अनुसरण करने को कहा है तब कौशल्या  जी ने विशाल हृदय  दिखाते हुए राम जी को वन जाने की आज्ञा दे दी | कौशल्या जी ने श्रीराम की पितृ भक्ति की भुरी भुरी सहाना की | 

When Kausalya Mata came to know that her son Rajaram was certain to be anointed the kingdom, she distributed a lot of charity but when Rama told her that Rama would have to go to the forest to follow the words of King Dasaratha. So he cried out to Ram ji in rebellion against his father, Kaushalya said that if the father gives any inappropriate orders, the son should obey the mother's orders. If both parents are commanded, then the son should obey them and when Ram ji told that Kekayi Mata also asked to follow the promise of 14 years of exile, then Kaushalya ji showed great heart Ram ji Gave permission to go to the forest. Kaushalya ji endured Shriram's paternal devotion.

उनके जीवन चरित्र मै दर्शाया गया है की पति की अकस्मात् मृत्यु तथा राम जी के वन जाने के पश्चात् वे जीवनभर दुखी रहती हैं | उनके वास्तविक अधिकार से वंचित होकर उनका जीवन दुखदायी और दयनीय हो जाता है | | राजा दशरथ को यूं तो तीनों रानियों में केकयी सबसे अधिक आकर्षित करती थी किंतु राजा दशरथ ने अपना अंतिम समय कौशल्या जी के कक्ष में ही बिताया तथा उन्ही को अपनी सेवा का अवसर प्रदान किया | धर्म का पालन करने वाली माता कौशल्या ने कभी भी राम और भरत में भेद नहीं किया जब राजा भरत ने उनसे विनती करी की राम जी को आदेश दिए कि वे राजा बने और अयोध्या लौट चलें तो उन्होंने कहा कि माता क्या करें जब दोनों पुत्र ही  माता को सौगंध देने लगें - राम जी भी तो तुम्हारी तरह से विनती करेंगे कि भरत को राजा बनने की आज्ञा दें ताकि पिता के वचनों का पालन हो तब क्या करेंगे | इन प्रसंगो से पता चलता है कि माता कौशल्या बुद्धिमता और ममता दोनों की परिकाष्ठा को पार कर चुकी थी| 

Her life character has shown that after the sudden death of her husband and Ram ji's going to the forest, she remains unhappy throughout her life. Deprived of their real rights, their lives become painful and miserable. | While King Dasaratha was the most attracted of the three queens, King Dasaratha spent his last time in Kaushalya's room and gave him an opportunity to serve him. Mata Kaushalya, who practiced religion, never made any distinction between Rama and Bharata. When King Bharat begged him to order Rama to become king and return to Ayodhya, he asked what to do when both sons are the mother. To give Saugandh - Ram ji will also request you to order Bharat to become king so that what will be done when father's words are followed. These episodes show that Mata Kaushalya had passed the test of wisdom and Mamta.
 
 

 माता कौशल्या जी के दिन रात राम जी के वनवास की अवधि को पूरा होने की बाट जोहते ही बीते | जब राम जी अयोध्या लोटे तो प्रेमाश्रुओं से उनका तन मन आत्मविभोर हो उठा और श्री सीताराम को उन्होने ह्रुदय से लगा लिया | एक रोचक प्रसंग भी उनके साथ जुड़ा हुआ है जिसका वर्णन आनंद रामायण में मिलता है :-

On the day of Mata Kaushalya, the night of Ram ji's exile was completed. When Ram ji returned to Ayodhya, his body of mind became self-possessed by the lovers and he took Shri Sitaram with his heart. An interesting episode is also associated with him, which is described in Anand Ramayana: -

रावण को जब पता चला की कौशल प्रदेश की राजकुमारी कौशल्या से जो  उत्पन्न होगा वही उसका काल होगा  और उनका विवाह भी अयोध्या के राजा दशरथ से निश्चित हो चूका है | रावण ने तुरंत कौशल देश पर आक्रमण कर दिया और राजा अज तब रास्ते में ही थे उन पर भी हमला बोल दिया | विशाल राक्षसी सेना ने दोनों राजाओ को परास्त किया तब उसने कौशल्या जी का अपरहण करके उन्हें एक पेटी में बंद कर दिया और महामतस्य के मुख मैं छिपा दिया | संयोगवश एक दूसरे मतस्य के आक्रमण के कारण महामतस्य ने वह पेटिका जिसमे  कौशल्या जी बंद थी को गंगा किनारे रख दिया | राजा  दशरथ भी वही देव प्रेरणा से युद्ध में बहते हुए वही पहुंच गए तथा उस पेटिका से निकली देवी कौशल्या से विवाह कर लिया | 

When Ravana came to know that the skills that would arise from Kaushalya, the princess of the state, would be his period and his marriage was also confirmed to King Dasaratha of Ayodhya. Ravana immediately attacked Kaushal country and King Aja was on the way and attacked him too. The huge demonic army defeated both the kings, then he killed Kaushalya and locked them in a box and hid in the face of Mahamatasya. Incidentally, due to the attack of another opinion, Mahamatasya put the box in which Kaushalya ji was closed, on the banks of the Ganges. King Dasharatha too reached the same place with the same God inspiration while flowing in the war and married Goddess Kaushalya who came out of that box.
 
उपरोक्त प्रसंगो से पता चलता है की कौशल्या माता धैर्यवान , करुणामयी , ममतामयी व धर्मविदुषि थी|  भगवान् मर्यादापुर्षोत्तम श्री राम की जननी को कोटि कोटि प्रणाम | 

The above episodes show that Kaushalya Mata was patient, compassionate, Mamtamayi and religious scholar. Best regards to the mother of Lord Maryadapurshottam Shri Ram.